एशियाई खेलों में ‘हाकी स्वर्ण
एशियाई खेलों में ‘हाकी स्वर्ण’ भारत हाकी के जादूगर ‘मेजर ध्यान चन्द’ का देश है जिन्होंने अपने खेल कौशल से अपने जमाने में पूरी दुनिया के खेल प्रेमियों को चौंका दिया था और सिद्ध किया था कि भारतीय उप महाद्वीप की जमीन से उपजी हाकी में भारतीयों के रणकौशल को दुनिया के दूसरे देश आसानी से चुनौती नहीं दे सकते हैं। चीन में चल रहे एशियाई खेलों में भारत ने इस बार हाकी में स्वर्ण पदक जीत कर पुराने गौरव को लौटाने का प्रयास किया है परन्तु अभी इसके सामने ‘पेरिस ओलिम्पिक’ खेलों की मंजिल है जिसे पार करके इसे अपनी प्रतिष्ठा को स्थापित करना होगा। हाकी के साथ ही भारत ने एशियाई खेलों में इस बार पदक जीतने की झड़ी लगा दी है और इस बार यह संख्या 107 को छू गई है। भारत कुल 107 पदक जीत कर चौथे नम्बर पर पहुंचा है परन्तु यह रिकार्ड 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों से एक पायदान नीचे हैं जब भारत सभी देशों में तीसरे स्थान पर था। एशियाई खेलों का भारत के सन्दर्भ में विशेष महत्व है क्योंकि इनकी शुरूआत भारत ने ही आजादी मिलते ही कराई थी और प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रमंडलीय खेलों के मुकाबले यह खेल महोत्सव साम्राज्यावाद के निशानों से बाहर आने की प्रेरणा के तहत प्रारम्भ किया था।
पहले एशियाई खेल दिल्ली में हुए थे और उस समय भारत जैसे गरीब देश के लिए इनका आयोजन करना एक अजूबा माना जा रहा था। इनका आयोजन राष्ट्रमंडल खेलों के मुकाबले में जानबूझ कर किया गया था क्योंकि राष्ट्रमंडल खेलों में केवल वे देश ही शामिल होते हैं जो कभी न कभी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहे हैं अतः पं. नेहरू ने एशिया महाद्वीप की खेल प्रतिभा को चमकाने की दृष्टि से इनको शुरू कराया था। वर्तमान में एशियाई खेलों की प्रतिष्ठा ओलिम्पिक खेलों के बाद की जाती है जिसमें से प्रतिभावान खिलाड़ी निकल कर ओलिम्पिक खेलों में अपने करतब दिखाते हैं।
भारत ने जिस प्रकार एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में अपना दबदबा कायम किया है उससे यही सिद्ध होता है कि इस देश की माटी में जमीन से जुड़े खेलों में महारथ हासिल करने की प्रतिभा बिखरी पड़ी है केवल उसे पहचानने की जरूरत है। इनमें से अधिकतम खेल जन साधारण के खेल समझे जाते हैं जिनके साथ किसी प्रकार की शहरी चकाचौंध नहीं जुड़ी हुई है। चाहे तीरन्दाजी हो या कबड्डी, भाला फेंक हो या गोला फेंक सभी में भारतीय खिलाड़ियों का आगे आना बताता है कि भारत केवल ‘क्रिकेट के बुखार’ का देश ही नहीं है बल्कि यह मिट्टी से जन्मे खेलों की भी पुण्यभूमि बन सकती है। यदि वास्तव में देखा जाये तो क्रिकेट को निठल्लों का खेल कहा जाता है और इसका प्रचलन केवल ब्रिटिश दासता में रहे चन्द देशों में ही है जिसे अंग्रेजों ने ‘जेंटलमैन गेम’ से नवाज कर इसे ऊंचा रुतबा दिया परन्तु इस खेल में भी भारत की ग्रामीण पृष्ठभूमि से जिस तरह के प्रतिभावान खिलाड़ी उभर रहे हैं उनका संज्ञान लिया जाना चाहिए। पदकों का शतक बना लेने को निश्चित रूप से उपलब्धि कह सकते हैं परन्तु दक्षिण कोरिया व जापान जैसे भौगोलिक स्तर में इससे छोटे देश अभी भी हमसे ऊपर हैं अतः एशियाई देशों में इसका मुकाबला केवल चीन से ही बनता है और चीन को पछाड़ना ही भविष्य में लक्ष्य भी होना चाहिए। इसके साथ ही भारत की महिला खिलाड़ियों ने जिस प्रकार निशानेबाजी से लेकर घुड़सवारी तक में पदक जीते हैं उससे पता लगता है कि भारत की महिलाएं भी खेल की हर विधा में अपना कौशल दिखा सकती हैं। भारत ने इन खेलों में कुल 635 खिलाडि़यों व प्रशिक्षकों व सहायक कर्मियों का दल भेजा था। इन सभी के समन्वित प्रयास से भारत यह गौरव हासिल करने में समर्थ हुआ है अतः सभी सदस्य सम्मान के पात्र हैं परन्तु हाकी में स्वर्ण पदक जीतना भारत के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि 1962 तक यह निर्विवाद रूप से ओलिम्पिक चैम्पियन रहा था परन्तु इस वर्ष हुए तोक्यो ओलिम्पिक में इससे यह गौरव पाकिस्तान ने छीन लिया था परन्तु इसके बाद तो यूरोपीय देशों यथा जर्मनी आदि तक ने स्वर्ण पदक प्राप्त करने में सफलता हासिल कर ली जिससे हाकी से भारतीय उपमहाद्वीप का दबदबा समाप्त हो गया। इसके बावजूद बीच-बीच में ओलिम्पिक खेलों में भारत स्वर्ण पदक जीतता रहा मगर अपना अधिपत्य कायम नहीं रख सका। एशियाई खेलों को हमें सफलता का प्रथम चरण समझना चाहिए और लक्ष्य ओलिम्पिक खेलों पर होना चाहिए क्योंकि भारत अब दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन चुका है। अतः यह बेवजह नहीं है कि एशियाई खेलों में भारतीय दल के मुखिया भूपेन्द्र सिंह बाजवा ने कहा कि अब हमारी निगाह ‘पेरिस खेलों’ की तरफ रहेगी और भारतीय खिलाड़ी कुछ दिन आराम करने के बाद उसकी तैयारी में जुट जायेंगे। जरूरत इस बात की भी है कि हाकी की तरह फुटबाल को भी भारत में लोकप्रिय बनाने के प्रयास जमीनी स्तर से शुरू हों क्योंकि भारत की जमीन से उपजे खेलों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये खिलाड़ियों के शरीर को हष्ट-पुष्ट रखने के साथ ही मानसिक रूप से भी उनमें आगे बढ़ने का बल प्रदान करते हैं। कुल मिला कर एशियाई खेलों में भारत का प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा है और इस विधा में पूर्ण पारंगत होने का मार्ग प्रशस्त करता दिखता है। इस बार जितनी पदक संख्या भारत ने जीती है वह पांच साल पहले हुए जकार्ता खेलों के 70 रिकार्ड के मुकाबले काफी अधिक है परन्तु अभी इसे शीर्ष पर पहुंचना है और चीन को पछाड़ना है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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