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उत्तराखंड: सवालों के पहाड़

05:54 AM Nov 15, 2023 IST | Aditya Chopra
उत्तराखंड  सवालों के पहाड़

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा धंस जाने से उसमें फंसे 40 मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए राहत एवं बचाव कार्य जारी है। इस हादसे में न केवल उत्तराखंड में बल्कि सभी पहाड़ी राज्यों में चल रहे विकास परियोजनाओं और पहाड़ों को काट-काट कर किए जा रहे निर्माण को लेकर कई सवाल फिर से उठ खड़े हुए हैं। इसी साल मार्च महीने में भी इसी टनल का कुछ हिस्सा धंस गया था लेकिन इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ था। यह सुरंग ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा है जो गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ती है। इस सुरंग के बनने के बाद यात्रियों के लिए 26 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि पहाड़ी राज्यों में नई सड़कें बनने से राज्य के आर्थिक प्रगति के मार्ग खुलते हैं। नई सड़कों से जिन्दगी की रफ्तार तेज होती है। पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती है आैर स्थानीय लोगों को कारोबार तथा रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होते हैं। उत्तराखंड में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है और इसके चलते लोग पलायन कर दूसरे राज्यों में चले गए हैं। राज्य के लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए ही अनेक विकास परियोजनाएं शुरू की गईं। निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित किया गया। बड़े पैमाने पर होटल खुले, पर्यटन बढ़ा। लोगों को रोजगार भी मिला लेकिन पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने इन विकास परियोजनाओं का काफी विरोध किया था। उनका कहना है कि इनसे पहाड़ों पर भू-स्खलन बढ़ेगा। मामला अदालतों तक भी पहुंचा था लेकिन विकास परियोजनाएं जारी रहीं। जिस तरह से सड़कों के ​िनर्माण और पन बिजली योजनाओं के लिए सुरंगों का निर्माण किया गया। उनसे पहाड़ पहले ही काफी कमजोर हो चुके हैं। तेज बारिश हो या हल्का सा कम्पन, पहाड़ ढहने लगते हैं।
सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड में 66 नई बड़ी सुरंगें बनाने के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में पहाड़ काटकर कम से कम 19 नई बड़ी सुरंगें बनाई जा रही हैं। अगर अभी चल रही सुरंगों की बात करें तो उत्तराखंड में 18 बड़ी सुरंगें संचालित हैं। हिमाचल प्रदेश में एक सुरंग अटल टनल अभी चल रही है। सुरंगें पहाड़ को खोद कर ही बनाई जा सकती हैं। सुरंगें और नई सड़कें कनेक्टिविटी तो बेहतर कर देती हैं लेकिन इनकी बहुत बड़ी कीमत पहाड़ को चुकानी पड़ती है और पहाड़ ये कीमत अकेले नहीं चुकाता इस कीमत में इंसानों की भी हिस्सेदारी है।
आपको इस साल जनवरी के महीने में उत्तराखंड के जोशीमठ से आई तबाही की तस्वीरें जरूर याद होंगी। हजारों साल पुराने उत्तराखंड के ऐतिहासिक शहर जोशीमठ के 561 घरों में दरारें आ गई थीं। जोशीमठ के लोगों ने तब भी जमीन धंसने के पीछे विकास और हाइड्रो प्रोजेक्ट को जिम्मेदार ठहराया था लेकिन अब तो बारिश की एक-एक बूंद जोशीमठ को तबाह करने पर तुली है। दरारों से दरकने का खतरा सिर्फ जोशीमठ तक नहीं है, उत्तराखंड के उत्तरकाशी से लेकर देहरादून तक के घर दरक रहे हैं। भारी बारिश के बाद पुल ढहने से उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग के मध्य महेश्वर धाम में दर्शन करने आए 25 श्रद्धालु फंस गए। उनकी जिंदगी बचाने के लिए हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया लेकिन धाम में लैंडिंग की जगह नहीं थी। मुश्किल वक्त में स्थानीय महिलाएं आगे आई और उन्होंने कुछ ही घंटों में वहां हेलिकॉप्टर उतरने लायक जगह साफ कर दी। तब जाकर फंसे लोगों को रेस्क्यू किया गया। कहा जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों पर अब तक की सबसे बड़ी तबाही का खतरा मंडरा रहा है।
पहाड़ों पर कोहराम मचा हुआ है। घर, सड़क, मंदिर, स्कूल और पहाड़ कांच के टुकड़ों की तरह बिखर रहे हैं। पहाड़ी का पोर-पोर टूट रहा है। पहाड़ी राज्यों में ऐसे खौफनाक मंजर दिख रहे हैं जिनसे रुह कांप जाती है। पहाड़ी राज्यों में कई शहरों के वजूद पर संकट खड़ा हुआ है। प्रश्नों का पहाड़ हमारे सामने है। सवाल उठ रहा है कि विकास का जो मॉडल अपनाया जा रहा है क्या वह सही है। अगर हम पर्यावरणीय चुनौतियों को नजरंदाज करके या पर्वतीय शर्तों को भूलकर विकास करेंगे तो खतरे राक्षस की तरह व्यवहार करेंगे। वास्तव में विकास परियोजनाएं पहाड़ों की प्राथमिकताओं को समझ नहीं पातीं। मामला सिर्फ सड़कों और सरंगें बनाने का नहीं बल्कि पहाड़ी परिवेश को बचाते हुए पर्वतीय विकास का भी है। विशेषज्ञ और सरकार भी यह महसूस करते हैं कि परियोजनाओं में कुछ आधारभूत परिवर्तन किए जाने चाहिए। अगर ऐसी आपदाएं आती रहीं और जान-माल की क्षति होती रही तो सवाल उठेगा ही कि इन परियोजनाअों से आखिर स्थानीय लोगों को क्या हासिल होगा। सुरंगें खोदने के लिए जिस तरह से भारी मशीनों का उपयोग किया जाता है उनके कम्पन को पहाड़ सहन नहीं कर पा रहे हैं। जरूरी है कि परियोजनाओं को लेकर नए सिरे से विचार किया जाए ताकि भविष्य में लोगों का जीवन सुरक्षित रहे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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