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उत्तर भारत में चुनावी रण शुरू

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में चुनाव की घोषणा होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने अपने कुछ प्रत्याशियों की घोषणा करके सीधे चुनावी बिगुल बजा दिया है।

12:56 AM Aug 19, 2023 IST | Aditya Chopra

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में चुनाव की घोषणा होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने अपने कुछ प्रत्याशियों की घोषणा करके सीधे चुनावी बिगुल बजा दिया है।

उत्तर भारत में चुनावी रण शुरू
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में चुनाव की घोषणा होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने अपने कुछ प्रत्याशियों की घोषणा करके सीधे चुनावी बिगुल बजा दिया है। हालांकि इन राज्यों में चुनाव नवम्बर महीने से शुरू होने हैं मगर ऐसा करके भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने अपनी राज्य इकाइयों को सन्देश दिया है कि वह इन चुनावों को साधारण चुनावों की तरह न लें। हकीकत यह है कि मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जिसमें भाजपा अपने पहले के जनसंघ स्वरूप में 1967 के चुनावों में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी थी। उस समय छत्तीसगढ़ राज्य भी इसमें समाहित था। इसी वर्ष पहली बार भाजपा (जनसंघ) को राज्य में शासन में आने का मौका भी ‘संयुक्त विधायक दल’ की सरकार में शामिल होने पर मिला था जिसके मुख्यमन्त्री कांग्रेस से विद्रोह करने वाले स्व.गोविन्द नारायण सिंह थे। उनकी सरकार में जनसंघ के नेता वीरेन्द्र कुमार सखलेचा उपमुख्यमन्त्री बने थे। यह वह दौर था जब जनसंघ ग्वालियर नगर निगम में अपने महापौर शेजवलकर की जीत का जश्न ढोल-नगाडों के साथ मनाया करती थी। मगर 1971 के आते-आते कांग्रेस पार्टी ने स्थिति को पूरी तरह बदल कर रख दिया था और उसके बाद 1980 में जनसंघ का नया नामकरण भाजपा होने के बाद राज्य में 1990 के बाद से कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा की सरकारें बनती रहीं।
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मगर 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के अलग हो जाने के बाद 2003 में कांग्रेस की जो पराजय श्री दिग्विजय सिंह के मुख्यमन्त्री रहते हुई वह असाधरण थी क्योंकि तब 230 सदस्यीय विधानसभा में अभी तक की सबसे कम 38 सीटें ही कांग्रेस जीत पाई थी। तब भाजपा की कमान सुश्री उमा भारती संभाले हुई थीं। इसके बाद केवल 2018 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने श्री कमलनाथ के नेतृत्व में करवट ली और इसे 114 सीटें मिलीं जबकि भाजपा के खाते में 109 सीटें गईं। मगर श्री कमलनाथ की सरकार को मार्च 2020 में कांग्रेस के ही ग्वालियर संभाग के नेता कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिन्धिया ने विद्रोह करके 20 से अधिक विधायकों का इस्तीफा दिलवा कर गिरवा दिया और श्री शिवराज सिंह को पुनः मुख्यमन्त्री बना दिया। अतः 2023 के चुनावों की घोषणा होने से पहले ही 39 प्रत्याशियों की घोषणा करके भाजपा अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी को गंभीरता से लेने का संकेत दे रही है और अपने कार्यकर्ताओं को सन्देश दे रही है कि चुनावी विजय के लिए कड़ा संघर्ष जरूरी है। निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी में यह कमलनाथ की शख्सियत ही है जो भाजपा को कड़ी मशक्कत करने के लिए उकसा रही है क्योंकि उस ग्वालियर नगर निगम पर 57 साल बाद अब कांग्रेस का कब्जा है जहां से भाजपा ने मध्य प्रदेश विजय की शुरूआत की थी। वैसे भी पिछले दिनों हुए ग्राम पंचायतों, नगर परिषदों व नगर निगमों के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी और ग्रामीण इलाकों मंे इसका पलड़ा ऊंचा ही रहा था।
छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस स्व. अजीत जोगी के बाद पिछले चुनावों में पहली बार सत्ता में आयी थी। पिछले चुनावों में 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को 68 सीटें मिली थीं और भाजपा केवल 15 सीटों पर ही विजय प्राप्त कर पाई थी। अतः यह राज्य भी भाजपा के लिए बहुत कठिनाइयों भरा माना जा रहा है। इस राज्य के जनसंघ के जमाने से आदिवासियों में लोकप्रिय नेता श्री ‘नन्द कुमार साय’ अब कांग्रेस पार्टी मे हैं। अतः भाजपा ने कांग्रेस के राज्य के मुख्यमन्त्री श्री भूपेश बघेल के सामने चुनौती फैंकने के लिए 21 प्रत्याशियों की घोषणा समय से बहुत पहले कर दी है।
दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य छोटा जरूर है मगर इसकी राजनीति कम उलझी हुई नहीं है। यह राज्य मुख्यरूप से आदिवासियों को सत्ता सौंपने के लिए ही बनाया गया था। श्री भूपेश बघेल इनके बीच खासे लोकप्रिय भी हैं क्योंकि इन्होंने आदिवासी समाज व किसानों के कल्याण से लेकर गरीब जनता के हित की बहुत सी योजनाएं शुरू की हैं। इस मामले में मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री शिवराज सिंह चौहान भी पीछे नहीं माने जाते। स्वयं शिवराज की छवि एक शरीफ राजनीतिज्ञ की मानी जाती है। एक समय था जब उनकी लाडली परियोजना को अखिल भारतीय स्तर पर पहचान तक मिली थी और जब श्री कमलनाथ 14 महीने के लिए ही मुख्यमन्त्री रह पाये थे तो उन्होंने इस योजना को और आकर्षक बनाने का प्रयास किया था तथा छोटे किसानों के कर्जे माफ कर दिये थे। राजनैतिक विश्लेषकों की राय मानें तो मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत को देखते हुए ही भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने समय से बहुत पहले ही चुनावी रण में अपने प्रत्याशियों को उतारने की योजना बनाई है और उन सीटों पर प्रत्याशी घोषित किये हैं जहां पिछले चुनावों में पार्टी हारी थी या मुश्किल से जीत दर्ज कर पाई थी।
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मध्य प्रदेश में 39 मे से 21 सीटें आरक्षित हैं जिन पर भाजपा प्रत्याशी घोषित किये गये हैं क्योंकि आरक्षित सीटों पर पिछली बार वह कांग्रेस से पिछड़ गई थी। मगर दूसरी तरफ हमें यह भी ध्यान रखना होगा 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे तो भाजपा ने दोनों राज्यों की एक को छोड़ कर सभी सीटें जीत ली थीं। इन चुनावों मे वोट प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर पड़ा था। इसलिए भाजपा के इन दोनों राज्यों मे मुख्य प्रचारक गृहमन्त्री श्री अमित शाह व प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी होंगे जबकि कांग्रेस की ओर से मध्य प्रदेश में कमलनाथ व छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के अलावा श्री राहुल गांधी व श्रीमती प्रियंका गांधी होंगे। ये चुनाव उत्तर भारत में कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए ही सांस फुलाने वाली दौड़ होंगे।
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