उर्वरकों की बढ़ती कीमत
अब जबकि रबी की फसलों गेहूं, सरसों, जौ, चना, मसूर, आलू, लहसुन और जीरा आदि की बुआई का समय है लेकिन दुनियाभर में उर्वरक की बढ़ती कीमतों ने न केवल किसानों की बल्कि सरकार की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं।
12:11 AM Aug 16, 2023 IST | Aditya Chopra
अब जबकि रबी की फसलों गेहूं, सरसों, जौ, चना, मसूर, आलू, लहसुन और जीरा आदि की बुआई का समय है लेकिन दुनियाभर में उर्वरक की बढ़ती कीमतों ने न केवल किसानों की बल्कि सरकार की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। धरती माता ने हमेशा मानव जाति को भरपूर मात्रा में जीविका के स्रोत प्रदान किए। धरती की उर्वरकता को बहाल करने के लिए उसे खादों की जरूरत पड़ती है। खेतों के पोषण के लिए अन्नदाता भी तरह-तरह के उपाय और कड़ी मेहनत करता है। लगातार भू राजनीतिक स्थिति के चलते सप्लाई लाइन बाधित होने से और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि होने से उर्वरक की कीमतें वैश्विक स्तर पर बढ़ रहंी हैं। इससे सरकार पर उर्वरक सब्सिडी का बोझ लगातार बढ़ रहा है। किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए भारत सरकार भी किसानों को सब्सिडी देती है। 2014-15 में सरकार का उर्वरक सब्सिडी बिल 73,067 करोड़ रुपए था जो बढ़कर 2022-23 में 2,54,799 करोड़ रुपए हो चुका है। पिछले एक महीने में भारत में आयातित यूरिया की कीमत 318-320 डॉलर से बढ़कर 395-410 डॉलर प्रति टन हो चुकी है। जबकि जून के अंत तक इसकी कीमत 285-290 प्रति टन थी। इसी तरह डीएपी खाद की कीमत 2 जुलाई को 435-440 डॉलर प्रति टन थी। अब बढ़कर 560 डॉलर प्रति टन हो चुकी है। केवल रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ही नहीं बल्कि उर्वरक की कीमतों के बढ़ने के कई अन्य कारण भी हैं। पहले कोविड-19 महामारी की वजह से पूरी दुनिया में उर्वरकों का उत्पादन, आयात और परिवहन व्यापक तौर पर प्रभावित हुआ। इसका असर भारत सहित सभी देशों में देखा गया।
Advertisement
चीन जैसे प्रमुख निर्यातकों ने (जो भारत में फॉस्फेटिक आयात में 40 से 45 प्रतिशत का योगदान देते हैं) ने अपने निर्यात को कम कर दिया। ऐसा चीन में उर्वरक उत्पादन में कटौती और घरेलू आवश्यकता को पूरा करने को प्राथमिकता देने की वजह से हुआ। पूरे महामारी के दौरान लॉजिस्टिक चेन प्रभावित हुई। जिसने वैश्विक रूप से शिपिंग लाइनों में आवाजाही और इनकी उपलब्धता दोनों को प्रभावित किया। जहाजों के लिए औसत माल भाड़ा चार गुना तक बढ़ गया। इससे आयातित उर्वरकों की कीमत बढ़ गई। यूरोप, अमेरिका, ब्राजील और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों ने उच्च कीमतों पर भारी मात्रा में उर्वरक आयात करना जारी रखा, क्योंकि कृषि क्षेत्र विशेष रूप से मक्के की खेती ने अभूतपूर्व उछाल दर्ज किया। कई तरफ से मांग बढ़ने की वजह से भारत के लिए एक अजीब चुनौती पैदा हो गई।
चीन से आयात में कमी आने के बाद भारत ने रूस, मोरक्को, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजराइल, कनाडा आदि जैसे वैकल्पिक स्रोतों की संभावनाओं को टटोला। एनएफएल, आरसीएफ जैसे भारतीय पीएसयू ने रूस से डीएपी और एनपीके आयात के लिए दीर्घकालिक समझौते किए। पिछले रबी सीजन के दौरान कुछ उर्वरक आया और वर्तमान खरीफ सीजन के दौरान अधिक मात्रा में उर्वरक आने की उम्मीद है। मोरक्को की ओसीपी फॉस्फेटिक उर्वरकों का प्रमुख निर्यातक है। इससे संपर्क करके पिछले वर्ष के दौरान 15 एलएमटी (डीएपी, फॉस्फेटिक एसिड) का आयात किया गया। रूस-यूक्रेन संकट ने रूस से विशेष रूप से डीएपी और एनपीके की आपूर्ति को फिर से बाधित कर दिया। रूस से ओसीपी मोरक्को को अमोनिया की आपूर्ति न होने के कारण भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। मोरक्को से आपूर्ति में गिरावट की आशंका की वजह से भारत जॉर्डन, इजराइल, सऊदी अरब, कनाडा आदि देशों से उर्वरक की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए बातचीत करनी पड़ी। कच्चे माल की कीमतों में बढ़ौतरी से घरेलू बीएपी उत्पादन में इस्तेमाल किए जाने वाले अमोनिया की कीमतें 300 डॉलर से बढ़कर 400 प्रति डॉलर हो चुकी है। अगर उर्वरक की कीमतों में बढ़ौतरी का रुझान ऐसा ही रहा तो आयात बिल बहुत बढ़ सकता है। इसी दौरान पोटाश की कीमतें गिरकर 319 डॉलर प्रति टन रह गई है। जोकि इसी वर्ष मार्च में 590 डॉलर प्रति टन थी। रूस अभी तक पोटाश की सप्लाई को सामान्य बनाए हुए है।
केन्द्र सरकार लगातार इन चुनौतियों का सामना कर रही है और उसने दोहरी रणनीति से काम किया। एक ओर उसने आयात निर्भरता वाले उर्वरकों की पर्याप्त सप्लाई बनाए रखने के लिए आयातक कम्पनियों को एकजुट किया तो दूसरी तरफ यह सुनिश्चित किया कि मूल्य वृृद्धि का असर किसानों पर न पड़े। इसलिए अतिरिक्त सब्सिडी देकर किसानों को मूल्य वृद्धि के प्रभाव से बचाया। इसी वर्ष जून माह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने किसानों के लिए 370128.7 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की घोषणा की। इस योजना के तहत देश को यूरिया मामले में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया। अब कुछ राज्याें में विधानसभाओं के चुनाव आने वाले हैं और अगले वर्ष आम चुनाव होंगे। सरकार के सामने उर्वरक सब्सिडी बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। हालांकि सरकार प्राकृतिक और जैविक खेती पर जोर दे रही है और यूरिया की बोरी असली कीमत से कहीं कम कीमत पर किसानों को दे रही है लेकिन जब तक किसान पूरी तरह से जैविक खेती को नहीं अपनाते तब तक सब्सिडी बिल कम नहीं हो सकता।
Advertisement
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement