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कर्नाटक-तमिलनाडु में जल युद्ध

कावेरी के जल को लेकर एक बार फिर उबाल आ चुका है। इस जल विवाद के चलते तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच दीवार खड़ी हो गई है।

01:34 AM Aug 22, 2023 IST | Aditya Chopra

कावेरी के जल को लेकर एक बार फिर उबाल आ चुका है। इस जल विवाद के चलते तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच दीवार खड़ी हो गई है।

कर्नाटक तमिलनाडु में जल युद्ध
कावेरी के जल को लेकर एक बार फिर उबाल आ चुका है। इस जल विवाद के चलते तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच दीवार खड़ी हो गई है। तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है कि कर्नाटक नियमों के तहत पूरा पानी नहीं दे रहा है जबकि कर्नाटक का कहना है कि खुद उसके पास पानी नहीं है। जब कर्नाटक सरकार ने तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी का पानी छोड़ने का फैसला किया तो वहां भाजपा और जद(एस) ने हंगामा खड़ा कर दिया।  कावेरी नदी जल मुद्दे काे लेकर जमकर राजनीति शुरू हो चुकी है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक विपक्षी इंडिया गठबंधन का प्रमुख हिस्सा है और कर्नाटक की कांग्रेस सरकार गठबंधन को बचाने के लिए तमिलनाडु को पानी देकर राज्य के किसानों और जनता के साथ धोखा कर रही है। इसी सियासत के बीच कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहंुच चुकी है। कर्नाटक राज्य में कमजोर मानसून के कारण पैदा हुई स्थिति और राज्य के जलाशयों में पानी की उपलब्धता पर एक विस्तृत रिपोर्ट दायर कर अपील दायर करेगी। उधर कावेरी बेसिन विशेषकर मांडया जिले में किसान संगठनों ने विरोध-प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। जल विवाद केवल कर्नाटक और तमिलनाडु में ही नहीं है। देश में कई राज्यों में  ऐसे विवाद हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में गोदावरी जल विवाद है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में रावी-व्यास जल विवाद है। सतलुज यमुना सम्पर्क नहर काे लेकर कई बार हिंसा के चलते खून भी बह चुका है। गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच महादाई जल विवाद है। कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के बीच कृष्णा नदी जल विवाद है। मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में भी नर्मदा नदी जल विवाद है। इन्हीं विवादों के चलते राज्यों को जबरदस्त सियासत का सामना करना पड़ता है। कावेरी जल विवाद 100 साल से भी लंबे समय से चल रहा है। नदी जल काे लेकर पहला समझौता मद्रास प्रैजीडैंसी और मैसूर राज के बीच 1892 में हुआ था, तब से यह विवाद चलते-चलते 2023 तक पहंुच चुका है।
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भारत की जलवायु दक्षिण में उष्ण कटिबंधीय है और हिमालयी क्षेत्रों में अधिक ऊंचाई के कारण अल्पाइन (ध्रुवीय जैसी), एक ओर यह पूर्वोत्तर भारत में उष्ण कटिबंधीय नम प्रकार की है तो पश्चिमी भागों में शुष्क प्रकार की। इसी कारण से इसके कुछ भाग में बरसात अच्छी होती है तो वहीं दूसरे भाग में सूखे का प्रकोप रहता है। बस इसी कारण की वजह से भारत में राज्यों के बीच अंतर्राज्यीय नदियों के पानी के बंटवारे का मामला, अपने आप ही प्रभावित आबादी की पानी की मूलभूत जरूरतों, खेती और आजीविका से जुड़ा मामला बन जाता है।
नदियों की विशेषता यह है कि वे इंसान द्वारा बनाई गई सरहदों को नहीं मानते। अपने बहाव क्रम में वह कई बार राज्य अथवा देश की सीमाओं का अतिक्रमण कर जाती हैं। दु:खद बात यह है कि जल प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग और नदी जल के अत्याधिक दोहन से नदियों के जलस्तर में लगातार कमी आ रही है।​ जिससे देश के सामने जल समस्या विकाराल रूप धारण कर चुकी है। पिछले 75 वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में 70 प्रतिशत की कमी आई है जबकि जनसंख्या में हम चीन को भी मात देने लगे हैं, यही कारण है कि जल के लिए लोग सड़कों पर आकर आगजनी करने लग जाते हैं।
संघीय भारत में नदी जल विवाद में अक्सर यह सवाल रहता है कि नदी जल के मामले में केन्द्र का नियम मान्य होगा या राज्य का ? यूं तो नदी जल को राज्य सूची में रखा गया है, किंतु नदी घाटी के नियमन और विकास को केन्द्र सूची का विषय माना गया है, इस कारण यह मुद्दा और उलझा हुआ नजर आता है। कुछ विद्वान नदी जल विवाद के बने रहने के पीछे इसे भी एक महत्वपूर्ण कारण मानते हैं। अत: उनकी मांग रहती है कि नदी जल को समवर्ती सूची में शामिल कर लिया जाए। सामुदायिक जल प्रबंधन की हमेशा से वकालत करने वाले जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने भी पानी को समवर्ती सूची में लाने का समर्थन किया है। वहीं सरकारिया आयोग ने इसे राज्य सूची में ही रखने की अनुशंसा की थी। केन्द्र सूची में इसे इस वजह से भी सीधे तौर पर शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि नदी जल का व्यापक उपयोग कृषि सिंचाई कार्यों में भी किया जाता है और कृषि सिंचाई को निर्विवाद रूप से राज्य सूची का विषय माना गया है। हालांकि मई 2016 में जल संसाधन संबंधी स्थायी संसदीय समिति ने नदी जल को समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफारिश की है। स्थायी समिति की राय है कि यदि पानी पर राज्यों के बदले केन्द्र का अधिकार हो तो नदी जल विवाद के साथ-साथ बाढ़-सुखाड़ जैसी स्थितियों से बेहतर ढंग से निपटना संभव हो सकेगा। पर क्या वाकई ऐसा होगा?
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जल संसाधन मंत्रालय जल विवादों के समाधान की दिशा में काफी सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। विवादों को सुलझाने के लिए अब समय आ गया है कि पानी की वास्तविक उपलब्धता आवश्यकता और खपत को मापने के लिए एक तंत्र स्थापित किया जाए और सभी संबंधित पक्षों को स्वीकार्य और भरोसेमंद डाटा उपलब्ध कराया जाए और देशभर में नदी जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाए। इस बार मानसून में कुछ राज्यों में भयंकर बाढ़ और कुछ राज्यों में अभी भी सूखा है। बारिश के पानी से लबालब भरी नदियों से इतना पानी इकट्ठा किया जा सके बशर्ते कि राज्य विवादों को सौहार्द पूर्ण तरीके से निपटा लें।
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Aditya Chopra

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