Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कांग्रेस की रणनीति में प्रियंका

05:25 AM Dec 26, 2023 IST | Aditya Chopra

लोकसभा चुनावों में केवल चार महीने का समय शेष रह जाने पर देश की प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी कांग्रेस जिस तरह से अपनी रणनीति बनाती हुई दिखाई पड़ रही है उसके स्पष्ट रूप से दो आयाम हैं। एक तो ‘इंडिया गठबन्धन’ में उसकी भूमिका और दूसरे निजी तौर पर उसका खोया हुआ जनाधार प्राप्त करने की रणनीति। इन दोनों ही मोर्चों पर कांग्रेस को नये प्रयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है और अपने वरिष्ठ नेताओं की भूमिका का भी पुनर्रेखांकन करना पड़ सकता है। यह तो स्वीकार किया जाना ही चाहिए कि वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता और प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की आम लोगों में जो लोकप्रियता है उसे देखते हुए कांग्रेस औऱ इंडिया गठबन्धन को ऐसा विमर्श खड़ा करना पड़ेगा जिससे भाजपा को चुनिन्दा मुद्दों पर घेरा जा सके। ये मुद्दे विपक्ष की निगाह में मोटे तौर पर महंगाई व बेरोजगारी हो सकते हैं परन्तु दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि स्वतन्त्रता के बाद से अभी तक देश का एक भी ऐसा लोकसभा चुनाव नहीं हुआ जिसमें महंगाई व बेरोजगारी को तत्कालीन विपक्ष ने मुद्दा न बनाया हो। इसलिए इन स्पष्ट मुद्दों के अलावा विपक्ष को ऐसे मुद्दे की तलाश करनी होगी जो भाजपा के हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद के विमर्श के आगे एक मजबूत लकीर खींचता हुआ लगे।
इस मामले में हमने हाल ही में सम्पन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में श्रीमती प्रियंका गांधी की भूमिका देखी। प्रियंका जी ने इन चुनावों में भाजपा के लोकप्रिय माने जाने वाले विमर्श को ‘लोक कल्याणकारी राज’ के विमर्श से काटने का भरपूर प्रयास किया। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिल पाई यह तो चुनाव परिणामों से साबित हो गया और चुनाव परिणाम ऐसे रहे कि उत्तर भारत की हिन्दी पट्टी के तीनों राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पराजय हुई मगर दक्षिण के तेलंगाना राज्य में कांग्रेस पार्टी ने यहां की क्षेत्रीय पार्टी भारत राष्ट्रीय समिति का पिछले दस साल का शासन उखाड़ कर फेंक दिया। इसका विश्लेषण करने पर हम जिस नतीजे पर पहुंच सकते हैं वह यह है कि तेलंगाना में कांग्रेस का विमर्श भारी पड़ा जबकि हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में इसका असर बहुत कम हो सका। चूंकि प्रियंका जी ही ने अपने चुनाव प्रचार में लोकतन्त्र में आम आदमी के आर्थिक व सामाजिक रूप से मजबूत होने के विषय को लोक कल्याणकारी राज की प्रतिस्थापना से सफलता के साथ जोड़ने की कोशिश की थी अतः हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस की पराजय के बावजूद इसके वोट प्रतिशत के कम न होने का श्रेय उन्हें दिया जा सकता है।
प्रियका गांधी फिलहाल कांग्रेस की महासचिव हैं और उत्तर प्रदेश की प्रभारी रही हैं। मगर इस राज्य के विधानसभा चुनावों में 2022 में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिल पाई थी। इन चुनावों के दौरान प्रियंका जी ने जो मुद्दे विधानसभा चुनावों में उठाये थे वे निश्चित रूप से राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दे ही थे। अतः कुछ विश्लेषकों की उस समय भी राय थी कि प्रिंयका गांधी 2024 के लोकसभा चुनावों की भूमिका बांध रही हैं। इस विश्लेषण में चाहे कोई तथ्य या सार हो या न हो मगर इतना निश्चित है कि प्रियंका गांधी राष्ट्रीय राजनीति की खिलाड़ी हैं और उनके सार्वजनिक भाषण कांग्रेस पार्टी के मान्य सिद्धान्तों के बहुत करीब होते हैं जिनमें वह वर्तमान समय की हिन्दुत्व की राजनीति का मुकाबला महात्मा गांधी के विचारों को केन्द्र में रखकर करना चाहती हैं। कांग्रेस को यह मान लेना चाहिए कि जाति जनगणना का मुद्दा लोक विमर्श में लोकप्रियता पाने में असमर्थ हो रहा है। इसके साथ ही इंडिया गठबन्धन की राजनीति में भी यह मुद्दा कोई अस्त्र का काम करता हुआ नहीं दिखाई पड़ रहा है क्योंकि उत्तर भारत में जातिगत राजनीति के ज्वार से केवल भाजपा को ही लाभ पहुंचा है और कांग्रेस को भारी नुक्सान उठाना पड़ है।
भारत युवाओं का देश माना जाता है इसके बावजूद राष्ट्रीय राजनीति में धार्मिक पुट के प्रभाव से विपक्ष अस्त्रहीन हो जाता है। इसकी काट ढूंढना आसान काम नहीं है क्योंकि श्री मोदी की लोकप्रियता सारे विपक्षी विमर्शों को कुन्द कर जाती है। इसलिए इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि श्रीमती प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनावों में अखिल भारतीय स्तर पर कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। आम जनता के साथ सहज हिन्दी में संवाद स्थापित करना उनकी विशेषता समझी जाती है। नई पीढ़​ के मतदाताओं में उनकी पकड़ अन्य नेताओं के मुकाबले भी ज्यादा गहरी आंकी जाती है। इसे देखते हुए यह हो सकता है कि इंडिया गठबन्धन की तरफ से चुनाव प्रचार में वह भी एक स्टार प्रचारक रहें। कांग्रेस का उन्हें उत्तर प्रदेश से हटाने का फैसला इसी रणनीति का अंग माना जा सकता है। लोकसभा के चुनाव निश्चित रूप से किसी क्षेत्रीय मुद्दे पर नहीं होंगे बल्कि ये अहम राष्ट्रीय मुद्दों पर ही होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Advertisement
Advertisement
Next Article