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ट्रेन यात्रा कब होगी सुरक्षित

06:43 AM Nov 04, 2023 IST | Aditya Chopra
ट्रेन यात्रा कब होगी सुरक्षित

गहराती रात, तेज गति से पटरियों पर दौड़ती ट्रेन और अचानक तेज आवाज ने सभी को दहला कर रख दिया। जैसे ही चादर तान कर सो रहे ट्रेन यात्रियों को पता चला कि ट्रेन हादसे का शिकार हो गई है तो अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया। चारों ओर चीख-पुकार मच गई और बाहर घना अंधकार। समाज क्या होता है और मानवता क्या होती है इस बात का अहसास होता है जब गांव के लोग ट्रेन यात्रियों की मदद के लिए पहुंचते हैं। घायल यात्रियों की आंखों में उम्मीद की चमक दिखाई पड़ती है जब लोग उन्हें एम्बुलैंस में चढ़ाने के लिए सहायता करते हैं। लगभग ऐसा ही दृश्य हर ट्रेन दुर्घटना के बाद दिखाई देता है। पिछले कुछ दिनों में तीन ट्रेन हादसे हो चुके हैं। जिनमें कई लोगों की जान गई है और अनेक लोग घायल हुए हैं। बिहार के बक्सर में हुए ट्रेन हादसे में चार लोगों की मौत हुई जबकि 100 से अधिक लोग घायल हुए। आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में दो ट्रेनों की टक्कर में 14 लोगों की मौत हुई जबकि 40 लोग घायल हो गए। ट्रेनों की पटरियों से उतर जाने की घटनाएं आम हो चली हैं। आंध्र की ट्रेन दुर्घटना सिग्नल की ओवर शूटिंग की वजह से हुई, जिस कारण ट्रेनें आपस में टकरा गईं।
सवाल एक बार फिर हमारे सामने है कि आखिर हमारी ट्रेनें कब सुरक्षित होंगी। जून महीने में ओडिशा के बालासोर जिले में तीन ट्रेनों की भीषण टक्कर में 275 लोग मारे गए थे। यह हादसे मानवीय गलती के कारण हुए। इन दुर्घटनाओं में स्वदेशी रूप से विकसित ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली यानि सुरक्षा कवच उपलब्ध नहीं था। बार-बार यह दावे किए जाते हैं कि भविष्य में कोई दुर्घटना नहीं होगी। इसके बावजूद एक के बाद एक हादसों में लोगों की जानें जा रही हंै। रेलवे बोर्ड अब तक रेल यात्रा को सुरक्षित करने के लिए कुछ खास नहीं कर पाया है।
कवच भारत में बनाया गया स्टेट ऑफ दी आर्ट इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है। इसका लक्ष्य है कि भारतीय रेलवे में शून्य फीसदी ट्रेन दुर्घटना हो । ये ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। अगर एक ही पटरी पर दो ट्रेनें आमने-सामने से आ रही हैं और अगर ट्रेन में कवच सिस्टम लगा हुआ है तो ट्रेन में ऑटोमैटिक ब्रेक लग जाएंगे। सभंव है कि लोको पायलट को यह काफी देर से पता चले तो इसमें कवच सिस्टम काफी मददगार साबित हो सकता है। बता दें भारतीय रेलवे ने 2022 में कवच सिस्टम को लॉन्च किया था। पिछले साल मार्च में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसका ट्रायल किया था।
रेलवे की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने वाले गहरे और पुराने मुद्दों का विश्लेषण किया जाना चाहिए। ऐसा विचार है कि सिग्नलिंग और दूरसंचार नेटवर्क के उन्नयन के साथ-साथ मानव संसाधन विकास को महत्व नहीं दिया गया है। परिचालन सुरक्षा से संबंधित पदों के लिए अप्रैल 2022 से जून 2023 के बीच लगभग 1.12 लाख उम्मीदवारों के पैनल में शामिल होने के बाद भी, 1 जुलाई 2023 तक लगभग 53,180 पद अभी भी खाली थे। लगभग 11, 100 स्तर की इंटरलॉकिंग जैसे उपाय किए गए हैं। क्रॉसिंग गेट (31 मई, 2023 तक), मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए ट्रैक मशीनों द्वारा ट्रैक बिछाने की गतिविधि का मशीनीकरण, मानवीय विफलता के कारण दुर्घटनाओं को खत्म करने के लिए 6,427 स्टेशनों पर बिंदुओं और सिग्नलों के केंद्रीकृत संचालन के साथ विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली का प्रावधान और रेलवे प्रणाली के कामकाज, विशेषकर सुरक्षा में सुधार के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा परिसंपत्तियों के प्रतिस्थापन, नवीनीकरण और उन्नयन के लिए राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष का कार्यान्वयन। लेकिन जब लोगों की जान जाती रहेगी तो इन कदमों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। ऐसी दुर्घटना होने पर कम से कम मंडल स्तर पर ही वरिष्ठ रेलवे प्रबंधन की जवाबदेही होनी चाहिए। हर ट्रेन में हर मिनट के संचार को पकड़ने वाली तकनीक स्थापित करने के अलावा सरकार को यह देखना चाहिए कि रेलवे बोर्ड के सदस्यों को रेलवे प्रणाली के बाहर के पेशेवरों और टेक्नोक्रेटों के समूह से चुना जाए।
समय-समय पर विशेषज्ञ इस ओर इशारा करते रहे हैं कि ट्रैक पर भारी ट्रैफिक है और आधारभूत ढांचा उसके अनुरूप नहीं है। पटरियां कमजोर पड़ रही हैं। आज भले ही हम तेज रफ्तार की गाड़ियां चला रहे हैं। बुलेट ट्रेन के सपने देख रहे हैं लेकिन यह तथ्य छिपा नहीं है कि देशभर में पटरियां अपनी क्षमता खो चुकी हैं और उन पर कई गुणा बोझ है। ऐसा नहीं है कि रेलवे का आधुनिकीकरण नहीं हुआ है लेकिन हादसों के मामले में तस्वीर नहीं बदली है। यह रेलवे की जिम्मेदारी है कि वह रेल यात्रा सुरक्षित बनाए। हर साल करोड़ों का मुआवजा देने की बजाय सुरक्षा प्रणाली पर अधिक ध्यान दें। आवश्यक सुधार तो उसे करने ही होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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