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नहीं रुक रही टार्गेट किलिंग

05:46 AM Nov 02, 2023 IST | Aditya Chopra

सुरक्षाबलों के आतंकवाद विरोधी अभियानों, सीमाओं पर निगरानी और नियंत्रण रेखा पर सीमा पार घुसपैठ में गिरावट के कारण जम्मू-कश्मीर शांत एवं स्थिर दिखाई देता है। इसके बावजूद राज्य में एक के बाद एक टार्गेट किलिंग की घटनाएं हो रही हैं जाे कि चिंता का विषय है। लक्षित हत्याओं की शृंखला यह दर्शाती है कि आतंकवादियों के पास खुफिया जानकारी तो है ही, ​बल्कि आम लोगों की दैनिक दिनचार्या की भी पूरी जानकारी रहती है। 5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को एक झटके से खत्म कर दिए जाने के बाद कश्मीर में आतंकवादी समूहों ने लगातार अपनी रणनीति में बदलाव किया है। आतंकवादी समूह अब हाइब्रिड आतंकवादियों की भर्ती कर रहे हैं। जिन्हें पहचानना मुश्किल है। राज्य में पिछले 72 घंटों के भीतर आतंकवादियों ने तीसरी बार टार्गेट किलिंग को अंजाम दिया है। पुलिस हैड कांस्टेबल मोहम्मद डार की बारामूला जिले में उनके घर के निकट ही आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इससे पहले आतंकवादियों ने पुलवामा जिले के नोपोरा इलाके में ईंट भट्टे पर काम करने वाले उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के भट्टपुरा समाधा गांव निवासी मुकेश कुमार की हत्या कर दी। रविवार की दोपहर श्रीनगर के भीड़भाड़ वाले ईदगाह मैदान में पुलिस इंस्पैक्टर मसरूर अहमद वानी को गोली मारकर घायल कर ​िदया। घाटी में आतंकवादी रणनीति बदल-बदल कर हमले करने में कामयाब हो रहे हैं। तमाम सुरक्षा प्रबंधों को चुनौती देने के पीछे वे अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं।
प्रवासी मजदूरों काे इस तरह लक्ष्य बनाकर हमला करने के पीछे भी यह भय भर देना चाहते हैं कि वहां रहना उनके लिए खतरे से खाली नहीं है। वे प्रवासियों को प्रदेश से बाहर भगा देना चाहते हैं। कुछ महीने पहले घाटी में लौट रहे कश्मीरी पंडितों पर लक्षित हमले करके भी उन्होंने यही संदेश देने की कोशिश की कि वे घाटी से बाहर चले जाएं।
पिछले 8-9 सालों से घाटी में आतंकवाद रोकने के लिए सुरक्षा प्रबंध काफी कड़े किए गए हैं। सुरक्षाबल लगातार सर्च ऑपरेशन चलाए हुए हैं। टैरर फंडिंग करने वालों को जेलों में बंद किया जा रहा है। सीमा पार से मिलने वाली मदद पर भी काफी हद तक अंकुश लगाया जा रहा है। आए दिन मुठभेड़ों में आतंकवादियों के मारे जाने की खबरें मिल रही हैं। आतंकी कमांडरों का जीवन अब केवल कुछ महीने का ही रह गया है। इसके बावजूद हत्याओं का ​सिलसिला नहीं रुक रहा। ऐसे में सुरक्षा संबंधी कमियों पर नए सिरे से विचार की जरूरत है। आतंकवादी अपना रूप बदल-बदल कर काम कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद आतंकवादी संगठनों से जुड़े ​विदेशियों की संख्या कम हो गई है और अब संगठनों में स्थानीय युवाओं को भर्ती किया जा रहा है।
नए आतंकवादी समूह उभरे हैं, जिनमें यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ कश्मीर (यूएलएफके), द रेजिस्टेंस फोर्स (टीआरएफ), कश्मीर टाइगर्स और पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फोर्स (पीएएफएफ) शामिल हैं। लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जेईएम जैसे पुराने आतंकवादी संगठनों ने अपने आंदोलन को धर्मनिरपेक्ष बनाने के नए अवतार अपनाए हैं। ये समूह अपने पूर्व जिहाद या धार्मिक युद्ध की कहानी पर भरोसा करने के बजाय भारतीय कब्जे के खिलाफ प्रतिरोध पर ध्यान केन्द्रित करके खुद को कश्मीर के लोगों, उनके अधिकारों और पीड़ा के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा आतंकवादी समूहों ने अपनी सोशल मीडिया प्रचार रणनीति में बदलाव किया है। पहले उन्होंने एक आतंकवादी समूह में शामिल होने के बाद सार्वजनिक रूप से अपनी तस्तीरें साझा की थीं और तुरंत हमलों की जिम्मेदारी ली थी। यह देखते हुए कि इन युक्तियों ने उन्हें राज्य की पहचान के प्रति संवेदनशील बना दिया है, विद्रोही समूहों ने खुद को बचाने के लिए ऑनलाइन एक अज्ञात पहचान अपना ली है। वे नए नाम बनाकर या डी-प्लेटफॉर्मिंग से बचने के लिए नंद बॉक्स और टैमटैम जैसे अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करके सोशल मीडिया पर प्रतिबंधित होने से बचने में कामयाब रहे हैं। उनकी ऑनलाइन सामग्री अज्ञात प्रशासकों के माध्यम से प्रकाशित की जाती है। सोशल मीडिया की व्यापक पहुंच ने कश्मीरियों को क्षेत्र के लिए अपनी शिकायतों और उद्देश्यों को व्यक्त करने के लिए एक मंच भी दिया है। परिणामस्वरूप भारत ​िवरोधी भावनाएं मजबूत हुई हैं और बड़े पैमाने पर कट्टरपंथ बढ़ा है।
अक्तूबर 2021 में नागरिकों की लक्षित हत्याओं ने एक नए शब्द ‘हाइब्रिड उग्रवाद’ के उपयोग का मार्ग प्रशस्त किया है। हाइब्रिड उग्रवादी एक उग्रवादी समूह का एक असूचीबद्ध सदस्य होता है जो लक्षित हत्याओं को अंजाम देने के उद्देश्य से छोटे हथियारों का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। लक्षित हत्या को अंजाम देने के बाद आतंकवादी अपने पूर्णकालिक समकक्षों की तरह भूमिगत लौटने के बजाय अपनी दैनिक गतिविधि फिर से शुरू कर देता है। इस प्रकार का उग्रवाद सुरक्षाबलों के लिए चुनौतियां खड़ी करता है, क्योंकि हाइब्रिड उग्रवादियों की पहचान करना विशेष रूप से कठिन होता है। अक्तूबर 2021 में हत्याओं की शृंखला ने 1990 के दशक की हिंसा की भयावह यादें ताजा कर दीं और लगभग आधा दर्जन कश्मीरी पंडित परिवारों को भागने के लिए मजबूर कर दिया।
चिंता का विषय है कि आतंकवा​दी सुरक्षा चक्र के भीतर घुसकर निर्दोषों का खून बहा रहे हैं। सुरक्षाबलों को नए सिरे से अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि स्थानीय युवाओं को आतंकवादी बनने से कैसे रोका जाए।

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