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नूंह : सदभाव बना रहे

हरियाणा के नूंह में फिर खौफ का माहौल कायम है। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं।

01:24 AM Aug 28, 2023 IST | Aditya Chopra

हरियाणा के नूंह में फिर खौफ का माहौल कायम है। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं।

नूंह   सदभाव बना रहे
हरियाणा के नूंह में फिर खौफ का माहौल कायम है। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। धारा-144 फिर से लगा दी गई है। पुलिस प्रशासन पूरी तरह से सतर्क है। प्रशासन ने 28 अगस्त को विश्व हिन्दू परिषद और अन्य हिन्दू संगठनों द्वारा ब्रजमंडल यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी है लेकिन हिन्दू संगठन यात्रा निकालने पर अड़े हुए हैं। गत 31 जुलाई को हिन्दू संगठनों द्वारा निकाली गई ब्रजमंडल यात्रा के दौरान हुई ​हिंसक झड़पों में 6 लोगों की मौत हो गई थी और करोड़ों रुपए की सम्पत्ति जलकर राख हो गई थी। इसे लेकर पुलिस का धरपकड़ अभियान लगातार जारी है और अब तक लगभग 292 आरोपी गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कानून-व्यवस्था की ​स्थति को देखते हुए ब्रजमंडल यात्रा की अनुमति नहीं दी गई है। सावन का महीना है सभी लोगों की श्रद्धा है और इसलिए मंदिरों में जलाभिषेक की अनुमति दी जाएगी। सभी लोग अपने-अपने स्थानीय मंदिरों में जलाभिषेक कर सकेंगे। उधर 3 से 7 सितम्बर के दौरान नंूह में होने वाली जी-20 शेरपा समूह की बैठक के दृष्टिगत कानून- व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए हरियाणा पुलिस पूरी तरह से चौकस है और वह कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं। हिन्दू संगठनों का कहना है कि शोभायात्रा जरूर निकाली जाएगी। ऐसे धार्मिक आयोजनों के लिए प्रशासन से कोई अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। वह प्रशासन को जुलूस के बारे में सूचित करेगा और इसकेे स्वरूप और आकार पर चर्चा करेगा। हिन्दू संगठनों का यह भी कहना है कि क्षेत्र के मुस्लमानों ने उन्हें सहयोग करने की पेशकश की है। ब्रजमंडल यात्रा कोई परम्परागत यात्रा नहीं है। वैसे तो ब्रजमंडल यात्रा जो कि हर साल हरियाणा के मेवात क्षेत्र में शुरू की जाती है। बता दें कि इस यात्रा का शुभारंभ विश्व हिंदू परिषद द्वारा लगभग तीन साल पहले करवाया गया है। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य मेवात व आसपास के मंदिरों को भव्य स्वरूप देना है। हरियाणा के नूंह जिले में काफी प्राचीन मंदिर हैं जो अपनी पहचान खोते जा रहे थे। मेवात दर्शन यात्रा के बहाने हरियाणा के अन्य जिलों से लोग आकर मेवात के पवित्र स्थलों के दर्शन कर सकेंगे व पुण्य लाभ कमाएंगे।
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सबसे पहले ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा नल्हड़ महादेव मंदिर पर जलाभिषेक करती है। उसके बाद झिरकेश्वर महादेव तथा गांव शृंगार में राधा कृष्ण मंदिर तथा श्रंगेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन कर जलाभिषेक कार्यक्रम किया जाता है। जैसे ही मेवात में यात्रा आने की सूचना लोगों को मिलती है तो उसकी तैयारियों के मद्देनजर लगभग दर्जनों जगहों पर मेवात के हिंदू श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत करते हैं वहीं इस यात्रा में ना केवल मेवात के लोग बल्कि दूर-दूर से आए लोग भी इस यात्रा में भाग लेते हैं। अब सवाल यह है कि क्या हिन्दू संगठनों की ब्रजमंडल यात्रा  फिर से स्थगित कर देनी चाहिए। शोभायात्रा निकालना हर किसी का अधिकार है लेकिन कानून व्यवस्था की​ स्थिति को देखते हुए हिन्दू संगठनों को भी सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए। भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को देखते हुए ही फैसला लिया जाना चाहिए।
गंगा-जमुनी तहजीब उत्तरी भारत के मैदानों, विशेषकर दोआब क्षेत्र की उस संस्कृति को कहते हैं जिसमें हिन्दू-मुस्लिम समुदाय पारस्परिक भाईचारे के साथ रहते हैं। यह नाम गंगा और यमुना (जिसे जमुना भी कहते हैं) नदी से आया है। इन नदियों के बीच के मैदानी इलाकों में रहने वाली आबादी मुस्लिम सांस्कृतिक तत्वों के साथ हिन्दू सांस्कृतिक तत्वों को मिश्रित रूप से अपनाती है। यह संस्कृति दक्षिण एशिया के इतिहास में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच मेल-मिलाप के कारण उभरी। इस तहजीब (संस्कृति) में भाषा की एक विशेष शैली, साहित्य, मनोरंजन, वेशभूषा, शिष्टाचार, विश्वदृष्टि, कला, वास्तुकला और व्यंजन शामिल हैं। यह कमोबेश हिन्दुस्तान क्षेत्र यानी उत्तरी दक्षिण एशिया के मैदानी इलाकों में व्याप्त है। भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों द्वारा एक-दूसरे के त्यौहार मना के सांप्रदायिक सद्भाव प्रकट करना गंगा-जमुनी तहजीब मानी जाती है। गंगा-जमुनी तहजीब के कुछ ऐतिहासिक उदहारण हैं, उर्दू भाषा का उद्भव, मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा अवधी भाषा में लिखी पद्मावत, भक्ति काल के कई कवि जैसे कि कबीर जिन्होंने मुसलमान और हिन्दू दोनों के तत्व के साथ रचनाएं लिखी। आधुनिक समय में लखनऊ या हैदराबाद की नवाबी संस्कृति इसका उदहारण मानी जाती है। गंगा-जमुनी तहजीब वाक्यांश का उद्गम अवधी भाषा से माना जाता है।
गंगा-जमुनी संस्कृति के संवाहक रहे अमीर खुसरो को आज के लोग याद करते हैं। अमीर खुसरो के पास हिन्दुस्तानी संस्कृति के तमाम रंग देखने को मिल जाते हैं। ऐसे रंग जिसमें न केवल  वह रंगे बल्कि लोग भी रंग गए। उन्होंने ही फारसी और हिन्दी ​मिलाकर खड़ी बोली का रूप दिया था। अगर हिन्दू संगठन अपनी आस्था के अनुरूप ब्रजमंडल यात्रा निकालना चाहते हैं तो मुस्लिम संगठनों को भी उन्हें पूरा सहयोग देना चाहिए और पुलिस प्रशासन काे भी हिन्दू-मुस्लिम संगठनों से बातचीत कर पूरी तरह से आश्वस्त होने और पहले से अधिक सतर्कता के साथ यात्रा के लिए  प्रबंध करना चाहिए। यह भी संभव है कि हिन्दू संगठन श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ न एकत्र कर सांकेतिक रूप से यात्रा निकाले और मंदिर में जाकर जलाभिषेक करें। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपने वक्तव्य से एक तरह से ऐसा करने का सुझाव​ दिया है। बेहतर यही होगा कि सभी संगठन संयम से काम लें और गंगा-जमुनी तहजीब का परिचय दें जिससे साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहे।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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