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न्याय का ध्वज ऊंचा रहे

02:17 AM Feb 22, 2024 IST | Aditya Chopra
न्याय का ध्वज ऊंचा रहे

भारत के लोकतन्त्र की सबसे बड़ी खूबी यह रही है कि इसके चार पायों में एक स्वतन्त्र न्यायपालिका ने कभी भी न्याय का पलड़ा झुकने नहीं दिया है। बेशक इमरजेंसी के 18 महीनों के समय को हम अपवाद के रूप में देख सकते हैं। मगर कार्यपालिका या विधायिका यहां तक कि चुनाव आयोग भी जब अपनी जिम्मेदारी से गाफिल हुआ है तो न्यायपालिका ने दिशा दिखाने का काम किया है और लोकतन्त्र के ध्वज को ऊंचा फहराया है। चंडीगढ़ नगर निगम के महापौर के चुनाव में जो भी अन्यायपूर्ण कार्रवाई मतदान अधिकारी अनिल मसीह द्वारा हुई उसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने न केवल सुधारा बल्कि मसीह पर मुकदमा चलाने की तजवीज पेश करके भी एक मिसाल कायम की जिससे आगे कभी भी कोई मतदान अधिकारी ऐसी बेशर्मी और बेहयायी करके लोकतन्त्र का मजाक न बना सके। यदि और साफ शब्दों में कहा जाये तो सर्वोच्च न्यायालय ने अनिल मसीह पर लानत भेजने का काम किया है क्योंकि उसका काम भारत के लोकतन्त्र को पूरी दुनिया की निगाह में नीचे गिराने वाला था। जिस तरह उसने आप व कांग्रेस गठबन्धन के प्रत्याशी कुलदीप कुमार के पक्ष में पड़े आठ वोटों को अवैध घोषित किया था वह कार्रवाई नादिरशाही की याद दिलाती है।
इसी वजह से सर्वोच्च न्यायालय ने पिछली सुनवाई में पूरे मामले को लोकतन्त्र की हत्या भी कहा था। मुख्य न्यायाधीश श्री डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने अवैध किये गये आठ मतों को पूरी तरह से वैध मानते हुए कुलदीप कुमार को मेयर पद पर निर्वाचित घोषित करके ऐसी नजीर बनाई है जिसका अनुसरण लोकतन्त्र में आने वाली पीढि़यों को करना पड़ेगा। मगर जिस तरह से आप पार्टी के तीन पार्षदों का पाला बदलवा कर और पहले बेइमानी से घोषित मेयर मनोज सोनकर से इस्तीफा दिलवा कर बाजी को अपने ही हक में रखने की जो राजनैतिक शतरंद बिछाई गई थी, उसे न्यायमूर्तियों ने तार-तार करते हुए पुराने पड़े वोटों की ही पुनः गिनती करा कर सिद्ध कर दिया कि न्याय को किसी भी चाल से दबाया नहीं जा सकता है और सच लाख पर्दों से भी बाहर आने की क्षमता रखता है।
प्राकृतिक न्याय भी यही कहता था कि कुलदीप कुमार को विजयी घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें 16 के मुकाबले 20 वोट मिले थे। इन 20 वोटों में से ही आठ को अवैध घोषित करके अनिल मसीह ने हारे हुए प्रत्याशी मनोज सोनकर को विजयी बनाने का काम किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उन परिस्थितियों को आने ही नहीं दिया जिससे चंडीगढ़ के मेयर का चुनाव दोबारा कराया जाता। यदि ऐसा होता तो 36 सदस्यीय नगर निगम में दल बदल के बाद भाजपा के 19 वोट हो जाते और आप व कांग्रेस गठबन्धन के 17 वोट रह जाते जिससे पुनः मनोज सोनकर जीत जाते। विद्वान न्यायमूर्तियों ने प्राकृतिक न्याय की रूह से फैसला किया कि पुराने मतों की पुनः गिनती करायी जाये और विधायिका में खरीद-फरोख्त के भरोसे जो दल-बदल किया जाता है उस पर लानत फैंकी जाये। उन्होंने पुराने वोटों की ही गिनती करा कर वैध मतों को अवैध करार देने की प्रक्रिया को अलग करते हुए कुलदीप कुमार को विजयी घोषित किया। इससे यही साबित हुआ कि भारत का लोकतन्त्र कोई ऐसा दस्तावेज नहीं है कि इसे जो चाहे जिस तरह मोड़ कर अपनी जेब में रख ले। यह कुछ मान्य सिद्धान्तों और परंपराओं पर टिकी हुई शुद्ध प्रणाली है जिसका पालन करना हर राजनैतिक दल का परम कर्त्तव्य है। लोकतन्त्र के लिए लोकलज्जा इसीलिए जरूरी है जिससे जनता का इस पर हमेशा विश्वास जमा रहे। अगर चंडीगढ़ के छोटे से मेयर के चुनाव में ही कुल 36 वोटों में से आठ वोटों को बेइमानी से अवैध करार देने की जुर्रत मतदान अधिकारी करता है तो इसके पीछे के उद्देश्यों को देखना बहुत जरूरी हो जाता है। वह भी ऐसे समय में जबकि लोकसभा चुनावों में 100 दिन का समय भी नहीं बचा है। आखिरकार अनिल मसीह की मंशा क्या थी? अपनी कार्रवाई से उसने न केवल अपने दल को बदनाम किया है बल्कि देश की समूची राजनैतिक प्रणाली के मुंह पर कालिख पोत डाली है। ऐसे आदमी को सर्वोच्च न्यायालय यदि कानून के सामने खड़ा करने का काम करता है तो इसकी सर्वत्र प्रशंसा होनी चाहिए। न्यायपालिका का कार्य दूध का दूध और पानी का पानी करना होता है। अपने इस दायित्व में भारत की न्यायपालिका स्वतन्त्रता के बाद से अभी तक हमेशा खरी उतरती रही है। इसका काम राजनीति की परवाह न करते हुए न्याय करने का होता है। न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।

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Aditya Chopra

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