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विश्व विजयी नीरज चोपड़ा

विश्व एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप की ‘भाला फेंक’ प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर भारत के खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है वह इस देश की मिट्टी के ऐसे कोहिनूर हीरे हैं जिसकी चमक से पूरी दुनिया में उजाला हुआ है।

01:26 AM Aug 29, 2023 IST | Aditya Chopra

विश्व एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप की ‘भाला फेंक’ प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर भारत के खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है वह इस देश की मिट्टी के ऐसे कोहिनूर हीरे हैं जिसकी चमक से पूरी दुनिया में उजाला हुआ है।

विश्व एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप की ‘भाला फेंक’ प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर भारत के खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है वह इस देश की मिट्टी के ऐसे कोहिनूर हीरे हैं जिसकी चमक से पूरी दुनिया में उजाला हुआ है। विश्व विजयी का खिताब लेकर नीरज चोपड़ा ने सिद्ध कर दिया है कि यदि भारत की युवा शक्ति चाहे तो वह पूरी दुनिया से अपनी प्रतिभा का लोहा हर क्षेत्र में मनवा सकती है। उन्होंने 88.17 मीटर की दूरी पर भाला फेंक कर कीर्तिमान स्थापित किया और साबित कर दिया कि भारत की मिट्टी में जन्मे खेलों को यदि खुद भारतवासी ही इज्जत की नजर से देखें तो यह देश कमाल कर सकता है। यदि सच पूछा जाये तो नीरज चोपड़ा भारतीय मूल के खेलों के ‘महानायक’ बन चुके हैं। उनसे पहले यह रूतबा कुश्ती के पहलवान गुलाम मुहम्मद बख्श उर्फ ‘गामा’ को ही प्राप्त हुआ है या ओलम्पिक खेलों में शामिल हाकी के खिलाड़ी मेजर ध्यान चन्द के नाम रहा है किन्तु नीरज चोपड़ा का योगदान इसलिए महान है कि भारत में क्रिकेट के खेल को जिस तरह लोकप्रिय बनाने के लिए वाणिज्यिक प्रयास हुए और इसके साथ बनावटी चकाचौंध को जोड़ा गया उसके मुकाबले भाला फेंक जैसा खेल भारत में देशी और गांव के लोगों का खेल समझा जाता था। उन्होंने इसी खेल के प्रति अपना जीवन समर्पित करके भारत की नई पीढि़यों को नई दिशा देने का काम किया और सन्देश दिया कि भारतीय यदि चाहे तो ग्रामीण खेल कहे जाने वाली स्पर्धाओं को भी विश्व पटल तक पहुंचा सकते हैं।
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इस प्रतियोगिता में 2022 में नीरज चोपड़ा दूसरे स्थान पर रह कर रजत पदक ही जीत सके थे मगर उन्होंने निश्चय कर लिया था कि उन्हें स्वर्ण पदक तक पहुंचना है। उन्हें प्रेरणा देने में आदिल साहब की भी प्रमुख भूमिका रही है जो बताती है कि भारत की तासीर कभी भी हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव की नहीं रही। भारत के गौरव में ही इसके हर हिन्दू-मुसलमान नागरिक का गौरव होता है। एक साधारण किसान परिवार के नीरज चोपड़ा ने हरियाणा की मिट्टी में खेलते हुए अपनी लगन, निष्ठा व मेहनत से विश्व जूनियर खिताब से यहां तक का सफर जिस सफलतापूर्वक पूरा किया है उससे निश्चित रूप से भारत के लाखों गांवों के करोड़ों युवकों को प्रेरणा मिलेगी और एथेलेटिक्स की विभिन्न स्पर्धाओं में पारंगत होने का प्रयास करेंगे। इसके साथ ही हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में चल रही इस विश्व एथेलेटिक्स प्रतियोगिता में भारत के ही चार धावकों ने 400 मीटर की रिले दौड़ के फाइनल में पहुंच कर भी भारत का नाम रोशन कर दिया है। ये चार धावक हैं राजेश रमेश, मुहम्मद अजमल वरियाथोडी, अमोल जैकब व मुहम्मद अनस।  विश्व रिले दौड़ में शामिल इन चारों खिलाड़ियों के परिचय से ही पूरी दुनिया को भारत की असली ताकत का अन्दाजा हो जाना चाहिए। इसी से भारत की मिली-जुली संस्कृति का आभास भी पूरे विश्व को हो जाना चाहिए कि भारत की एकात्म शक्ति ‘हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई’ एकता ही है।
हमारे खेलों में जब कोई खिलाड़ी अपनी काबलियत के दम पर शिरकत करता है तो वह न हिन्दू होता है और न मुसलमान बल्कि हिन्दोस्तानी या भारतीय नागरिक होता है। भारत की एकता की ताकत दिखाने के लिए भी हमारे खेल और खिलाड़ी भी एक नमूना हैं। अतः मजहब या धर्म का वजूद हमारे लिए पक्के तौर पर निजी मामला ही है। नीरज चोपड़ा से कुछ पीछे पिछली बार भी पाकिस्तान का खिलाड़ी अरशद नदीम रहा था और इस बार भी यह खिलाड़ी रजत पदक जीतने में सफल रहा। पिछले वर्ष नीरज और नदीम की दोस्ती को लेकर कुछ लोगों ने उल्टे-सीधे कटाक्ष भी किये थे। उन्हें शायद यह इल्म नहीं था कि विश्व स्तर पर खेलों का आयोजन होता ही है आपसी सद्भाव बढ़ाने के लिए जिसमें खिलाड़ी एक-दूसरे की प्रतिभा का सम्मान करते हैं । खेलों में संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं होता। 400 मीटर की रिले दौड़ में तो चारों भारतीय हिन्दू, मुस्लिम व इसाई खिलाड़ियों ने अमेरिकी टीम को पछाड़ने के लिए जी-जान लड़ा दी जिससे भारत का परचम हर हाल में ऊंचा रहे। यही तो खेल भावना होती है जो खिलाड़ियों को आपस में बिना किसी बैर-भाव के बांधे रखती है। नीरज चोपड़ा ओलम्पिक भाला फेंक प्रतियोगिता के भी चैम्पियन है मगर बकौल उन्हीं के विश्व प्रतियोगिता ओलम्पिक से भी ज्यादा मुश्किल मानी जाती है अतः उन्होंने इसके लिए भारी मेहनत की थी।
दूसरी तरफ भारत के चारों धावकों ने भी देश को फाइनल तक पहुंचा कर भारतीय सन्दर्भ में नया रिकार्ड कायम किया है। उनकी सफलता के लिए भी पूरा देश कामना करता है। इससे यह भी सिद्ध हो रहा है कि जिस एथेलेटिक्स को क्रिकेट खेल के कथित बुखार के चलते अभी तक लापरवाही के साथ देखा जाता था उसकी तरफ अब भारत की युवा पीढ़ी का रुझान बढे़गा और वह इसकी स्पर्धाओं में महारथ हासिल करने की कोशिश करेगी। यह तो बिना शक कहा जा सकता है कि इस उपेक्षित क्षेत्र को चमकाने का काम सर्वप्रथम नीरज चोपड़ा ने ही किया है। इसलिए नीरज चोपड़ा निश्चित रूप से ही भारत के महानतम खिलाड़ियों में गिने जायेंगे।
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