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सरकारी नौकरी सदाचारी को

देश और राज्यों की अपराध की स्थिति का अगर अध्ययन किया जाए तो सबसे चिंताजनक और भयावह आंकड़े महिलाओं के प्रति अपराध या घरेलू हिंसा के मिलते हैं।

12:54 AM Aug 17, 2023 IST | Aditya Chopra

देश और राज्यों की अपराध की स्थिति का अगर अध्ययन किया जाए तो सबसे चिंताजनक और भयावह आंकड़े महिलाओं के प्रति अपराध या घरेलू हिंसा के मिलते हैं।

सरकारी नौकरी सदाचारी को
देश और राज्यों की अपराध की स्थिति का अगर अध्ययन किया जाए तो सबसे चिंताजनक और भयावह आंकड़े महिलाओं के प्रति अपराध या घरेलू हिंसा के मिलते हैं। महिलाओं के प्रति सामान्य छेड़छाड़, आपराधिक मनोभाव से पीछा करना जैसे सामान्य अपराधों से लेकर बलात्कार, गैंगरेप और फिर बेहद बर्बरतापूर्ण हत्या कर देने वाली घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। यह समस्या केवल एक राज्य या समाज की नहीं है बल्कि यह समस्या देशभर की है। स्थिति काफी भयावह है, शायद ही किसी दिन के अखबाराें के पन्नें ऐसी दिल दहला देने वाली खबरों से वंचित मिलें। सरकार और समाज ऐसी घटनाओं पर चिंतित हैं। महिला सुरक्षा की तमाम योजनाओं के बावजूद ऐसी घटनाओं में कमी नहीं आ रही, बल्कि इसकी बर्बरता बढ़ती जा रही है। कानून भी सख्त होते जा रहे हैं। मीडिया भी सजग होकर इन घटनाओं के खिलाफ मुहिम में अपनी भूमिका निभा रहा है। अदालतों ने भी अपना रवैया सख्त कर लिया है, फिर भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं। मणिपुर में महिलाओं से दरिन्दगी का वीडियो वायरल होने के बाद एक के बाद एक घटनाएं सामने आ रही हैं।
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इस तरह की मानसिकता के पीछे पितृसत्तात्मक समाज की बहुत गहरी पैठ है। वह पितृसत्तात्मक समाज जो स्त्री को सिर्फ और सिर्फ दासत्व के रूप में देखता है, वह मानसिकता अर्धनारीश्वर की बात नहीं करती। वह स्त्री को पुरुष के साथ जोड़कर संपूर्णता की बात नहीं करती। वह निरंतर इस बात को नहीं उठाती कि यदि पुरुष को अपनी पत्नी का साथ नहीं मिलेगा तो वह पूर्णत: अधूरा है। वह निरंतर सिर्फ इस बात को उठाती है कि यदि स्त्री ने अपने विवाहित जीवन में परिपूर्णता हासिल नहीं की तो उसका जीवन नगण्य है, उसका अस्तित्व अधूरा है।
महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान एवं उनकी अस्मिता बनाए रखना सरकारों की और समाज की प्राथमिकता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर घोषणा की है कि अब राज्य में महिलाओं, लड़कियों और बच्चियों से बलात्कार, छेड़छाड़ और अन्य अपराध करने वालों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। छेड़छाड़ करने वाले मनचलों का रिकार्ड रखा जाएगा और उनके कैरेक्टर सर्टिफिकेट में भी इसका उल्लेख किया जाएगा। इससे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ऐलान किया था कि राज्य में महिलाओं से छेड़छाड़ करने वालों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। राजस्थान सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लिए नए कानून ला रही है। जिसमें छेड़खानी करने वालों से हिस्ट्रीशीटरों की तरह व्यवहार करने का प्रावधान होगा। जिस तरह से हिस्ट्रीशीटरों की तस्वीरें थानों में लगती हैं उसी तरह महिलाओं से छेड़छाड़ करने वालों की भी तस्वीरें थानों में लगेंगी। इसका अर्थ यही है कि दोनों राज्यों में सदाचारी को ही सरकारी नौकरी मिलेगी। हाल ही में केन्द्र सरकार ने भी भारतीय दंड संहिता को बदलने के लिए तीन विधेयक पेश किए हैं। नए कानूनों में बालिकाओं से रेप और यौन उत्पीड़न के आरो​िपयों को फांसी तक की सजा देने के प्रावधान किए जाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार ने अच्छा कदम उठाया है लेकिन सबसे बड़ा अहम सवाल यह है कि महिलाओं के प्रति अपराध किस तरह से कम किए जाएं। अब सवाल आता है कि क्या महिलाओं के खिलाफ अपराध कम करने में समाज अपनी भूमिका निभाएगा। पहले कहा जाता था कि महिलाओं की दुर्दशा का बड़ा कारण अनपढ़ता है लेकिन समाज ने बहुत पहले ही शिक्षा के महत्व को स्वीकार कर लिया है। महिलाएं आज शिक्षा के मामले में पुरुषों से आगे निकल चुकी हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में तरह-तरह के कामकाज करती नजर आती हैं। एक ओर जहां वे साइकिल चलाती हैं, कार चलाती हैं तो फाइटर प्लेन भी उड़ाती हैं। जिस ग्लास सीलिंग को तोड़ने की बात अरसे से की जा रही है उसका कहीं नामोनिशान नहीं बचा है। छोटे शहरों की लड़कियां हर क्षेत्र में दस्तक दे रही हैं। वे बड़ी-बड़ी कंपनियों की सीईओ हैं, आईएएस और आईपीएस अफसर हैं, नेता हैं, डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, सैनिक, सेना में अफसर, वैज्ञानिक, अभिनेत्री, रेडियो जॉकी, टीवी एंकर, व्यापारी, स्टॉक मार्केट विशेषज्ञ- क्या नहीं हैं। इसरो के चंद्रयान अभियान में महिला वैज्ञानिकों ने बड़ी भूमिका निभायी थी।
सरकारी योजनाओं में गरीबों को जो घर दिए जाते हैं उनकी मालकिन भी महिलाएं होती हैं। कई तरह के कानून महिलाओं के पक्ष में हैं। महिलाओं की सहायता के लिए मुफ्त परामर्श केन्द्र और दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए क्राइसिस सैंटर भी बनाए जा रहे हैं लेकिन जब तक समाज अपनी मानसिकता नहीं बदलता तब तक महिलाओं के प्रति अपराध कम नहीं हो सकते। महिलाओं को अत्याचार से मुक्त करना है तो हमें बच्चों को बचपन से ही उनका आदर करने और संस्कार कूट-कूट कर भरने होंगे और उनका नजरिया महिलाओं के प्रति साकारात्मक बनाना होगा। नैतिक मूल्यपरक शिक्षा ही बढ़ती समस्या का स्थायी समाधान है।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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