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सुरक्षा व्यवस्था में चूक कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं

05:44 AM Dec 20, 2023 IST | Sagar Kapoor
सुरक्षा व्यवस्था में चूक कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं

बीती 13 दिसंबर को दो युवकों ने संसद की सुरक्षा में सेंध लगाते हुए दर्शक दीर्घा से कूदकर लोकसभा में अराजक माहौल पैदा कर दिया। इस घटना से पूरा देश सन्न रह गया। इस घटना के बाद से अति सुरक्षित माने जाने वाली संसद की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पुलिस ने इस घटना में शामिल लोगों को पकड़ लिया है। जांच एजेंसियां आरोपियों से लगातार पूछताछ कर रही हैं लेकिन संसद की सुरक्षा जैसे गंभीर मामले में जिस तरह की राजनीति देखने को मिल रही है वो बड़ी चिंता की वजह है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद की सुरक्षा में चूक के मामले पर कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस घटना को लेकर राजनीति हो रही है। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, उच्चस्तरीय जांच के लिए समिति बनाई गई है और जांच जारी है। पहले भी जब इस तरह की घटनाएं हुई तो लोकसभा अध्यक्ष के ज़रिए ही उनकी जांच प्रक्रिया आगे बढ़ी।
11 अप्रैल 1974 में पिस्तौल के साथ संसद में घुसने वाली घटना को जनसंघ या तत्कालीन विपक्ष ने इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया। लोकसभा अध्यक्ष का इस्तीफ़ा नहीं मांगा? 5 मई, 1994 प्रेमपाल लोकसभा के दर्शक दीर्घा से कूदकर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव तक चला गया था, भाजपा ने लोकसभा अध्यक्ष का इस्तीफ़ा नहीं मांगा। प्रधानमंत्री व गृहमंत्री का ज़िक्र नहीं किया, क्योंकि संसद की सुरक्षा लोकसभा सचिवालय का अधिकार है, तत्कालीन लोकसभा के उपाध्यक्ष भाजपा के ही मल्लिकार्जुन थे। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का तो ज़िक्र तक नहीं किया, क्योंकि संसद की सुरक्षा केवल लोकसभा सचिवालय का काम है।
संसद में इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने नसीहत दी कि ऐसे विषयों पर वाद-विवाद या प्रतिरोध से सभी को बचना चाहिये लेकिन इस मामले में जमकर राजनीति हो रही है। जिसके चलते संसद की कार्यवाही बाधित है। इस मसले पर असंसदीय आचरण करने वाले 92 सांसदों को लोकसभा और राज्यसभा से निलंिबत किया गया है। संसद के बाहर विपक्षी नेता आरोपियों के पक्ष में बयानबाजी कर रहे हैं। अनेक विपक्षी नेताओं ने पकड़े गए लोगों को भटका हुआ बताकर बचाव भी किया और ये प्रचारित करने की कोशिश की कि बेरोजगारी से बढ़ते तनाव के कारण वे ऐसा कदम उठाने को मजबूर हुए।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश में बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को संसद की सुरक्षा में चूक की घटना के पीछे कारण बताया। उनके बयान के अनुसार इस घटना की वजह मोदी सरकारी की नीतियां हैं। वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि लोकसभा में विजिटर गैलरी से कूदने वाले आरोपी बेरोजगारी की समस्या पर देश का ध्यान खींचना चाहते थे। देश में लाखों-करोड़ों युवा बेरोजगार हैं और औसत परिवार महंगाई का दंश झेल रहा है, तो इसके मायने ये नहीं है कि वे संसद पर ही हमला कर दें। यकीनन ये राष्ट्रीय समस्याएं हैं लेकिन संसद में घुसपैठ करना तो जघन्य अपराध है।
यद्यपि ये दलीलें किसी के गले नहीं उतर रही क्योंकि ये युवक संसद के बाहर अर्थात जंतर-मंतर पर भी धरना-प्रदर्शन कर सकते थे। यदि उनका उद्देश्य महज चर्चाओं में आने का था तो उसके लिए वे और भी कोई उपाय तलाश सकते थे। उन सभी पर यूएपीए जैसे सख्त कानून के अंतर्गत कार्रवाई की जा रही है लेकिन विपक्ष के कुछ नेताओं सहित वामपंथी रुझान वाले यूट्यूब चैनल चलाने वाले पत्रकारों ने उनका बचाव करते हुए इस कृत्य को युवाओं में बढ़ते असंतोष का प्रदर्शन बताया जिससे लगने लगा है कि ये भी शाहीन बाग जैसे किसी प्रयोग की कोशिश है जिसे कांग्रेस, वामपंथी और मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों का मिलाजुला समर्थन था। किसान आंदोलन के समय भी आंदोलनकारियों की कारगुजारियों और गैरकानूनी कामों को देशविरोधी गैंग और ताकतों ने सही साबित करने की को​िशश की थी। किसान आंदोलन में लालकिले की घटना को देशवासी कभी भूल नहीं सकते।
विपक्ष की राजनीति और सारे हो-हल्ले के बीच गंभीर प्रश्न छूटने नहीं चाहिए। सवाल है कि यदि आरोपित घुसपैठिए आतंकी हैं तो वे किस संगठन से जुड़े हैं? किसकी साजिश पर उन्होंने लोकसभा में कूदने और धुआं-धुआं करने जैसा हमलावर रुख अपनाया? यदि वे बीते डेढ़ साल से संसद में घुसकर उत्पात मचाने या सनसनी फैलाने की साजिश पर विमर्श कर रहे थे और देश के अलग-अलग शहरों में मुलाकातें कर रहे थे तो उनके खर्चे कौन उठा रहा था? कौन फंडिंग कर रहा था उन्हें? सवाल कई हैं और जांच के दौरान उन्हें जरूर खंगाला जाएगा लेकिन वे ‘बेचारे’, ‘बेरोजगार’ और ‘भूले-भटके नौजवान’ नहीं माने जा सकते। जब कश्मीर में आतंकवाद और जिहाद चरम पर था तब भी युवा आतंकियों को ‘भूले-भटके’ करार दिया जाता था लेकिन अकेले उस आतंकवाद ने ही करीब 45,000 जिंदगियां छीन ली थीं। यदि ऐसे विशेषण देकर विपक्ष इन घुसपैठियों का बचाव करेगा और माफ करने की पैरवी करेगा तो निश्चित ही देश में आतंकवाद कभी समाप्त नहीं हो सकता।
महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी या अन्य समस्याएं दो-चार साल में पैदा नहीं हुई हैं। देश की आजादी के समय से ही ये समस्याएं देश व समाज में मौजूद रही हैं। सभी सरकारों ने इन समस्याओं को दूर करने की अपने- अपने ढंग से कोशिश की है और देश में सबसे ज्यादा समय तक सरकार कांग्रेस ने ही चलाई है। ऐसे में देश की हर समस्या और परेशानी में उसकी भूमिका को नजरअंदाज बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता। अगर देश की जनता मोदी सरकार की नीतियों से परेशान है। युवाआें में बेरोजगारी को लेकर गुस्सा और नाराजगी है तो विरोध के कई लोकतांत्रिक तरीके हैं। अगले साल लोकसभा चुनाव में जनता मोदी सरकार के खिलाफ जनादेश सुना सकती है लेकिन जनता जमीनी सच्चाई को समझती है। ऐसे में वो विपक्ष के साथ खड़ी दिखाई नहीं देती है। संसद की सुरक्षा जैसे गंभीर मसले पर क्षुद्र राजनीति करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
निस्संदेह, संसद दीर्घा तक लोग सांसद द्वारा बनाये पास के जरिये ही पहुंचते हैं। वैसे संसद की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी लोकसभा के अधीन काम करने वाली पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस की होती है। सत्र के दौरान बाहर केंद्रीय सुरक्षा बलों, आईटीबीपी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, एसपीजी, एनएसजी आदि की उपस्थिति अलग से रहती है। संसद पर आतंकी हमले की 22वीं बरसी पर सुरक्षा व्यवस्था और चौक-चौबंद होना चाहिए थी लेकिन लापरवाही बरती गई। यह घटना गंभीर है। 22 वर्ष के बाद भी सुरक्षाकर्मियों ने सबक न लेते हुए अपने कर्त्तव्य पालन का सही निर्वहन नहीं किया। सुरक्षा व्यवस्था में और सुधार की गुंजाइश है, दर्शक दीर्घा में प्रवेश के लिए जांच और कड़ी करने की आवश्यकता है।
संसद में घुसे युवकों ने भले ही कोई हिंसा न की हो किंतु उनका अपराध राष्ट्रविरोधी कृत्य है जिसकी कड़ी सजा उनको तो मिलेगी ही किंतु इस प्रयास के पीछे जिन लोगों का दिमाग है उनकी गर्दन पर भी फंदा कसा जाना चाहिए। अफजल गुरु जैसे गद्दार से सहानुभूति रखने वाले नए-नए रूपों में सामने आते हैं। सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होने से देश को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। संसद ऐसा नियम बनाए जिससे भविष्य में ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण हालात फिर पैदा नहीं हों। संसद की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। सुरक्षा व्यवस्था में चूक कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। बेहतर तो यही होगा कि इस पर राजनीति करने की बजाय चूक के कारणों की समीक्षा तो हो ही, भविष्य में ऐसी घटना न हो इसका बंदोबस्त भी किया जाए।

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