ज्ञानवापी क्षेत्र में ‘आदिविश्वेश्वर’
कांशी के भगवान विश्वनाथ परिसर में स्थित कथित ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ के बारे में मेरा प्रारम्भ से ही यह दृढ़ विश्वास और मत रहा है कि इसे स्वयं मुस्लिम भाइयों द्वारा हिन्दू समाज को सौंप कर देश के भाई-चारे को मजबूत बनाना चाहिए
03:51 AM Nov 19, 2022 IST | Aditya Chopra
कांशी के भगवान विश्वनाथ परिसर में स्थित कथित ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ के बारे में मेरा प्रारम्भ से ही यह दृढ़ विश्वास और मत रहा है कि इसे स्वयं मुस्लिम भाइयों द्वारा हिन्दू समाज को सौंप कर देश के भाई-चारे को मजबूत बनाना चाहिए और हिन्दू– मुस्लिम एकता की मिली-जुली गंगा जमुनी संस्कृति का नमूना पेश करना चाहिए। परन्तु मुस्लिम समाज की मुल्ला ब्रिगेड और कट्टरपंथी तत्व यह कभी नहीं चाहेंगे और मस्जिद को लेकर पैदा हुए विवाद को चरम बिन्दू तक पहुंचाना चाहेंगे। जबकि ऐतिहासिक तथ्य यह है कि पूरे हिन्दोस्तान में यदि कहीं भी मुस्लिम आक्रमण का हिन्दू सांस्कृतिक पहचान पर प्रत्यक्ष और बोलता हुआ प्रमाण है तो वह कांशी में ही है और जिसे ज्ञानवापी मस्जिद खुद जबानी बयान कर रही है। इस मस्जिद की चार-दीवारी पर भीतर व बाहर से हिन्दू देवी देवताओं की आकृतियों से लेकर पूज्य प्रतीकों के चिन्ह अंकित हैं जबकि ऊपर मस्जिदनुमा गुम्बद कायम कर दिये गये हैं। कोई भी पुरातत्व वेत्ता पहली ही नजर में बता सकता है कि यह मस्जिद मन्दिर का विध्वंस करके ही तामीर की गई है। आजाद भारत में मध्य युग में हुए मुस्लिम आक्रमण के इस दाग को मिटाकर हम एेसे नये युग की शुरुआत कर सकते हैं जिसमें हर हिन्दू को अपने मुस्लिम भाई को गले लगाने में फक्र महसूस हो और 1947 में पाकिस्तान बनने की जो पीड़ा हर हिन्दोस्तानी को भीतर से सालती रहती है उसका दर्द खत्म हो। मगर क्या सितमगिरी हो रही है कि इस मस्जिद का कब्जा लेने के लिए 16 मुकद्दमे न्यायालयों में सुनवाई के लिए पड़े हुए हैं। सबसे पहले इन सभी 16 याचिकाओं का एकीकरण करके समन्वित रूप से यह मुकद्दमा चलना चाहिए जिससे एक बारगी मंे ही न्यायालय किसी अन्तिम निष्कर्ष पर पहुंच सके। लेकिन अहम सवाल यह है भी है कि क्या एेसे विवादास्पद मुद्दों को हिन्दू व मुस्लिम विद्वान आपस में बैठ कर नहीं सुलझा सकते ? जब मस्जिद के भीतर से भगवान शिव के आदि विश्वेश्वर स्वरूप की लिंग मूर्ति मिल रही है तो शक-ओ- शुबहा की गुंजाइश कहां रह जाती है मगर मुस्लिम पक्ष इशे फव्वारा बताकर भारत के समूचे हिन्दू समाज की धार्मिक भावनाओं का न केवल मजाक उड़ा रहा है बल्कि उनकी मान्यताओं को भी चुनौती दे रहा है। यह एेसा विवाद है जिसे हिन्दू पक्ष के कोई शास्त्र ज्ञाता व मुस्लिम उलेमा ही बैठकर सुलझा सकते थे। मगर मजहबी जुनून में मुस्लिम पक्ष में कुछ एेसे लोग हैं जो खुद को न केवल मुसलमानों का खुदा समझते हैं बल्कि इस्लामी संस्कृति का भी सरपराह मानते हैं। कांशी का भारत की हिन्दू संस्कृति में वही स्थान है जो इस्लामी संस्कृति मंे काबा मुकद्दस का है। यदि कल वाराणसी की अदालत को यह कहना पड़ा है कि आदिविश्वेश्वर लिंग की पूजा-अर्चना करने की हिन्दू पक्ष की याचिका सुनवाई योग्य है तो इसका क्या मतलब क्या निकलता है? इसका तकनीकी अर्थ यही है कि हिन्दू पक्ष द्वारा दायर की गई याचिका में सुनवाई योग्य तथ्य हैं। शिवलिंग को फव्वारा बताने से उसकी हकीकत नहीं बदल सकती क्योंकि मस्जिद की दरो–दीवार खुद चीख–चीख कर गवाही दे रही हैं कि यहां मन्दिर ही था जिसे क्रूर शासक औरंगजेब के जमाने में नष्ट करने का प्रयास करते हुए इसका चरित्र ही बदल दिया गया और मुस्लिम इबादत खाने में तब्दील कर दिया गया। मगर भारत में एक तबका मुसलमानों में ऐसा भी मौजूद है जो औरंगजेब का महिमा मंडन करने में ही अपनी शान समझता है और खुद को पक्का मुसलमान समझता है। ऐसे गलतफहमी में जीते हैं क्योंकि औरंगजेब एेसा बादशाह हुआ जिसने अपनी ही सल्तनत को बियाबान में बदलने का सामान जुटाया और हिन्दू जमींदारों को मनसबदारी बांटने के बावजूद उनकी संस्कृति को पैरों तले रौंदने की नीति चलाई। इतना ही नहीं उसके पिता शाहजहां ने भी अपने बाप व दादा जहांगीर व अकबर के जमाने में बनाये गये सभी मन्दिरों को जमींदोज करने का फरमान जारी किया। जबकि शाहजहां की मां एक हिन्दू बेगम ही थी। इससे यही साबित होता है कि जहांगीर के बाद जो भी मुगल बादशाह गद्दीनशीं हुआ उसने हिन्दू संस्कृति के खालफ रंजिशी रुख अख्तियार किया और अपनी बहुसंख्यक हिन्दूरियाया को अपनी शाही रुआब के नीचे रखा। इसलिए यह मत गलत नहीं कहा जा सकता कि हिन्दू मुगल साम्राज्य के दौरान भी गुलामो जैसी जिन्दगी जीने को मजबूर किया जा रहा था जबकि पूरी सल्तनत की अर्थ व्यवस्था उन्हीं के पास थी। मगर आज सवाल यह नहीं है कि औरंगजेब ने क्या किया बल्कि सवाल यह है कि 21वीं सदी में हम क्या कर रहे हैं? मूल प्रश्न यह है कि जब कांशी की महत्ता इस्लामी विद्वानों तक को ज्ञात है और वे भी मानते हैं कि बनारस की हर सुबह-शाम बाबा विश्वनाथ के नाम ही होती है तो भारत के इस सत्य को उसी प्रकार स्वीकार किया जाना चाहिए जिस तरह मक्का शरीफ में काबे के सच को स्वीकार किया जाता है। भारत के मुसलमानों का तो यही मुल्क है और इनके पूर्वज हिन्दू ही रहे हैं तो ये अपने पुरखों पर जुल्म ढहाने वाले मुस्लिम आक्रान्ताओं को अपना ‘हीरो’ कैसे मान सकते हैं। इसलिए ज्ञानवापी क्षेत्र को आदिविश्वेश्वर का मानते हुए स्वयं ही इस मस्जिद को खाली कर देना चाहिए। जो गुनाह औरंगजेब ने किया उसकी इबरत आज की पीढ़ी क्यों भरे
Advertisement
रहमत अगर कबूल करें क्या बईद है
शर्मिन्दगी से उज्र न करना गुनाह का
Advertisement