चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन ऐसे करें मां चंद्रघंटा की आराधना, जाने विधि-मंत्र से लेकर भोग
नवरात्रि के दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप यानी चंद्रघंटा माता की पूजा अर्चना की जाती है। आज यह पूजा दोपहर 1 बजकर 55 मिनट तक रहेगी।
11:39 AM Apr 04, 2022 IST | Desk Team
देशभर में इन दिनों चैत्र नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। नवरात्रि के दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप यानी चंद्रघंटा माता की पूजा अर्चना की जाती है। आज यह पूजा दोपहर 1 बजकर 55 मिनट तक रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मां चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाला कहा जाता है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होगी। तो आइये जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, मंत्र और भोग।
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मां चंद्रघंटा का स्वरूप
माता चंद्रघंटा का स्वरूप बहुत अलौकिक है। माता रानी के माथे पर घंटे के आकर का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसमें मां के दस हाथ हैं, जिसमें चार हाथों में कमाल फूल, धनुष, जप माला और तीर है। वहीं माता के पांचवें हाथ में अभय मुद्रा और बाकि चार में त्रिशूल, गदा, कमंडल व तलवार है। इसके अलावा माता के माथे पर चंद्र होने की वजह से इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।
माता चंद्रघंटा की पूजा और विधि
-नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
-इस दिन सुबह जल्दी उठकर निवृत्त होकर स्नान कर लें और साफ सुखे वस्त्र पहन लें। इसके बाद कलश की विधिवत तरीके से पूजा करें।
– अब नवरात्रि के तीसरे दिन पर मां दुर्गा और उनके स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा शुरू करें।
– सबसे पहले मां चंद्रघंटा को शुद्धिकरण के लिए जल अर्पित करें। फिर फूल, माला सिंदूर और अक्षत क्रमश: ;चढ़ा दें।
-अब माता रानी के आगे घी का दीपक और धूप जलाएं और चंद्रघंटा देवी के मंत्र, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ कर लें।
-पूजा कर लेने के बाद मां को दूध या इससे बनी चीजों का भोग लगाएं। इसके साथ ही फलों में सेब चढ़ा दें।
माता चंद्रघंटा के मंत्र (मां चंद्रघंटा के इस मंत्र का जाप 5, 7 या फिर 11 बार जरूर करें)
ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्घ
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ
स्तोत्र आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्घ्
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ्
कवच रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्घ
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धरं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकमघ
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
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