जानिए जूस बेचने वाले के द्वारा 200 करोड़ के मोबाइल साम्राज्य की स्थापना करने वाले इस शख्स की अनोखी कहानी
यह कहानी एक ऐसे महान शख्स की है जिसने अपनी सहजता की परिधि से बाहर निकल कर कुछ बड़ा बनाने के की कोशिश की है।
12:45 PM Jul 22, 2019 IST | Desk Team
यह कहानी एक ऐसे महान शख्स की है जिसने अपनी सहजता की परिधि से बाहर निकल कर कुछ बड़ा बनाने के की कोशिश की है। हम किसी और की नहीं बल्कि भटिया मोबाइल और एचएसएल के फाउंडर और सीईओ संजीव भाटिया के बारे में बात कर रहे हैं। उनकी जिंदगी में संघर्ष उस समय शुरू हुआ जब उनके करोड़पति पिता एक दुर्घटना में अपंग हो गए और फिर वह संजीव बिल्कुल अकेले रह गए।
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शुरुआत किस वजह से हुई?
संजीव के पिता जिनका नाम श्री हरबंस लाल भाटिया था वह सूरत के काफी जाने-माने बिजनेसमैन थे। वह कपड़ो का काम करते थे। दुर्भाग्यवश 1986 के एक एक्सीडेंट होने के बाद से संजीव के पिता करीब तीन सालों तक बिस्तर पर ही पड़े रहे थे। उन्हें इलाज के लिए दिल्ली भी ले जाया गया लेकिन उस वक्त उनका बिजनेस को देखने वाला कोई भी नहीं था। इलाज के बाद भी उनके पिता अपंग हो गए।
इसके बाद साल 1989 में उनको अपने कारोबार में करीब 80 लाख रुपए का नुकसान हुआ और वे दिवालिया घोषित हो गए। वह अपनी सारी जमीन बेचकर वह कर्ज चुकाते रहे। जब ये सब कुछ हुआ तब संजीव महज 7 साल के थे। घर की हालात इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि वह पीसीओ बूथ से हो रही आमदनी से उन्हें दो समय की रोटी नसीब हो पाती थी। लेकिन जब कुछ विकल्प नहीं बचा तो संजीव की मां ने जूस की दुकान खोल ली और यही वो समय था जब संजीव की इंटरप्रेन्योर की यात्रा शुरू हुई।
संजीव अपनी मां के साथ सुबह चार बजे उठकर उनकी काम में मदद करते थे और दुकान खुलवाकर स्कूल चले जाते थे। करीब पांच सालों तक उन्होंने इस तरह की कड़ी मेहनत की थी उसके कुछ दिनों बाद संजीव ने घडिय़ां बेचनी चालू कर दी और ज्यादा पैसे कमाने के लिए उन्होंने एक फोटोकॉपी मशीन भी खरीद ली। इसके बाद सूरत में शहर संस्कृति के विकास की मांग बढ़ी हो उन्होंने ये सब सोचकर एक गिफ्ट की दुकान खोल ली।
12 साल की उम्र में लाया करते थे दिल्ली से सामान
संजीव 12 साल की उम्र में अपने छोटे भाई के साथ दिल्ली जाकर सामान लाते थे। उस वक्त मोबाइल फोन चलन बस शुरू ही हुआ था। मोबाइल की बढ़ती मांग को देखते हुए उन्होंने 1996-97 में मोबाइल एक्सेसरीज का बिजनेस शुरू कर दिया जो उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। मोबाइल एक्सेसरीज के बिजनेस में संजीव को सफलता हासिल हुई और उन्होंने 1998 में एक मोबाइल स्टोर खोला और उसका नाम रखा भाटिया मोबाइल। 20 साल की उम्र में संजीव फोन खरीदने पहली बार हांगकांग गए और उन्होंने करीब 1.5 लाख का मोबाइल खरीदा और उस पर सौ फीसदी मुनाफा भी कमाया।
आखिरकार संजीव की मेहनत रंग लाई और दिन-प्रतिदिन उनके बिजनेस में बढ़ोत्तरी होने लगी। जल्द ही भाटिया मोबाइल,सूरत में सबसे बड़ी स्वतंत्र मोबाइल फोन के खुदरा दुकानों के रूप में उभर कर सामने आई और वह धीरे-धीरे लोकप्रिय होती चली गई। इसके बाद साल 2003 में सूरत में उनके तीन स्टोर चलने लगेञ इसके बाद साल 2007 में वो एक फें्रचाइजी मॉडल बाजार में लेकर आए और दो साल के अंदर उनके स्टोर की संख्या 6 से बढ़कर 25 हो गई।
भाटिया मोबाइल के स्वाभिमानी मालिक
आज संजीव भाटिया 117 मोबाइल नामक स्टोरों के मालिक हैं , भाटिया कहते हैं कि वे अपने मोबाइल रिटेल व्यवसाय में पूरी तरह से तल्लीन थे और हमेशा अपने ऑफ़लाइन स्टोर के माध्यम से वह फोन की बिक्री करते हैं। लेकिन 2015-16 तक, उन्होंने अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों द्वारा अपनाई गई मूल्य निर्धारण रणनीतियों के कारण बनाई गई प्रतियोगिता का अनुभव करना शुरू कर दिया। भाटिया को लगा कि ऑनलाइन स्थानांतरित करने के लिए समय सही है।
वर्ल्ड वाइड वेब की ओर कदम
संजीव ने साल 2016 में ly 20 लाख के निवेश के साथ www.onlymobiles.com लॉन्च किया । ऑनलाइन रिटेलर मोबाइल फोन, टैबलेट और अन्य संबंधित सामान बेचता है।संजीव भाटिया की प्रारंभिक योजना गुजरात सीमाओं के भीतर सेवा करने की थी, लेकिन एक बार जब कंपनी ने अपने उत्पादों और ऑफ़र को वेबसाइट पर प्रदर्शित किया, तो उन्हें पूरे भारत से कॉल मिलना शुरू हो गए। इस पर उनको ऐसा लगा की वह बड़े भूगोल को पूरा कर सकते हैं और इस प्रकार, उनकी ऑनलाइन यात्रा शुरू हुई।
कड़ी मेहनत और लगन के बल पर संजीव ने आज ये मुकाम हासिल किया है। अपनी नजरों को आने वाले अवसर के लिए हमेशा खुला रखना बहुत जरूरी है। क्योंकि कोई भी नहीं जानता कि किस आइडिया में मिलियन डॉलर का साम्राज्य खड़ा हो जाए। हमें इस कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपना विश्वास कभी नहीं खोना चाहिए क्योंकि जीवन में जो भी परेशानी हमारे सामने आती है उसके पीछे कोई न कोई उद्देश्य जरूर छिपा होता है। यदि ऐसी सोच रखेंगे तो निश्चित रूप से आप भी अपने भविष्य को अपने सोच के रूप में ढाल सकेंगे।
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