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जी-20 : भारत बनेगा बॉस

विश्व में भारत की प्रतिष्ठा में लगातार बढ़ौतरी हो रही है।

02:36 AM Sep 15, 2022 IST | Aditya Chopra

विश्व में भारत की प्रतिष्ठा में लगातार बढ़ौतरी हो रही है।

विश्व में भारत की प्रतिष्ठा में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के सुझावों और घोषणाओं को वैश्विक समुदाय बेहद गम्भीरता से लेता है। वैश्विक मंचों पर भारत के प्रस्तावों पर मोहर भी लगती है। इसका अर्थ यही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की धमक बढ़ गई है। उथल-पुथल के इस दौर में करवट लेती अर्थव्यवस्था के साथ कदम बढ़ाना बहुत जरूरी है। ऐसे माहौल में विकसित और विकासशील देशों के बीच आपसी संवाद और बेहतर तालमेल होना बेहद अहम है और यही वजह है कि जी-20 एक वैश्विक आर्थिक मंच बन गया है। जी-20 सितम्बर 1999 में यह समूह अस्तित्व में आया। तब इसमें सात देशों ने भाग लिया था। फिर इस समूह में अमेरिका, कनाडा, ​ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली समेत 20 देश शामिल हो गए। जी-20 का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय नीति में सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना में सुधार, वैश्विक वित्तीय संकट को टालने के उपाय, सदस्य देशों के आर्थिक विकास और सतत विकास शामिल हैं। इस समूह का दुनिया की 85 प्रतिशत अर्थव्यवस्था और 75 प्रतिशत व्यापार पर नियंत्रण है। इस संगठन का महत्वपूर्ण काम विकसित और विकासशील देशों को एक मंच पर लाना और दुनिया के आर्थिक मुद्दों पर आम राय बनाने के प्रयास करना भी है। रोम में हुए जी-20 सम्मेलन और ग्लास्गो में कॉप-26 वर्ल्ड लीडर समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विशेष प्रोटोकाल प्रदान किया गया। जी-20 के सम्मेलनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार भाग ले चुके हैं। यह भारत के लिए गौरव का विषय है कि दिसम्बर में भारत जी-20 का बॉस बन जाएगा। अगले साल भारत में होने वाले शिखर सम्मेलन के आयोजन स्थल पर लगाई जा रही अटकलों पर विराम लग चुका है। पहले इस तरह की खबरें आई थीं कि यह आयोजन कश्मीर में या लद्दाख में हो सकता है, लेकिन भारत ने यह ऐलान कर दिया है कि शिखर सम्मेलन का आयोजन 9-10 सितम्बर 2023 को नई दिल्ली में होगा। अगले वर्ष जी-20 के शिखर सम्मेलन समेत भारत 200 से अधिक बैठकों की मेजबानी करेगा। इसके साथ ही भारत ने जी-20 की प्राथमिकताएं तय करने का काम भी शुरू कर दिया है।
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जी-20 में 19 देशों के विदेश मंत्री भाग लेते हैं, जबकि एक प्रतिनिधि यूरोपीय संघ का शामिल होता है। इस मंच से अगले वर्ष भारत अपनी आवाज बुलंद करेगा। समावेशी, सतत विकास, पर्यावरण के लिए जीवन शैली, महिला सशक्तिकरण, डिजीटल बुनियादी ढांचे एवं स्वास्थ्य एवं कृषि से लेकर​ विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी सक्षम विकास पर वार्ताएं पहले ही चल रही हैं। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में शिक्षा, संस्कृति, पर्यटन, जलवायु, वित्त पोषण, वैश्विक खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा आदि शामिल हैं।
भारत की अध्यक्षता के दौरान भारत इंडोनेशिया और ब्राजील ट्रोइका बनाएंगे। यह पहली बार होगा जब ट्रोइका के तीन विकासशील देश और उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल होंगी जो उन्हें वैश्विक पटल पर बड़ी आवाज प्रदान करेगी। इस शिखर सम्मेलन में अध्यक्षता करते हुए भारत कई लम्बित मसलों को सुलझा सकता है। विशेष तौर पर कृषि और खाद्य सबसिडी के क्षेत्र में यह भारत के लिए एक सुनहरी अवसर है। कृषि सबसिडी के मुद्दे पर मतभेद हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में अमेरिका में प्रति किसान 60 हजार 586 डालर का डोमेस्टिक सपोर्ट था जबकि यूके में यह 6762 डॉलर का था। महामारी कोरोना की वजह से अब इसमें काफी उछाल आ गया है। विकसित देशों में किसानों को मिलने वाली ज्यादा सबसिडी उनके कृषि उत्पादों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक तौर पर ज्यादा सशक्त बनाते हैं। जहां तक भारत की बात है तो कोरोना महामारी के बाद भारत में किसानों की सबसिडी मुश्किल से इन देशों के मुकाबले काफी कम है, जबकि चीन की सबसिडी भारत से करीब चार गुणा ज्यादा है।
 विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत व्यापार विकृतियों को पैदा करने वाली कृषि सबसिडी की अनुम​ति नहीं है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि सबसिडी को पूरी तरह खत्म कर देना सम्भव नहीं है। कोरोना महामारी के दौरान देश की 80 करोड़ आबादी को संकट से बचाने के ​लिए मुफ्त अनाज वितरण करने का नी​ितगत निर्णय मोदी सरकार को लेना पड़ा, जिससे कि अर्थव्यवस्था को बचाने में काफी मदद मिली। जहां तक जलवायु संकट का सवाल है भारत का स्पष्ट स्टैंड है कि वह वैश्विक उत्सर्जन के लिए पारम्परिक रूप से जिम्मेदार नहीं होने के बावजूद समस्या का समाधान करने का इरादा रखता है। हाल ही में बाली में हुई पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन के मामले पर जी-20 की मंत्री स्तरीय बैठक में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा था​ कि जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक असर उन गरीब  और  कमजोर देशों पर पड़ रहा है जो जलवायु संकट के लिए सबसे कम जिम्मेवार है। जी-20 की अध्यक्षता करना भारत के​ लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत इस समय दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत के विकास की गति को बढ़ाने के लिए  जी-20 के सदस्यों के साथ सहयोग बढ़ाना भी जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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