नॉर्थ ईस्ट में AFSPA पर सरकार के फैसले पर इरोम शर्मिला बोलीं- थोड़ा नहीं पूरा हटे.....
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानी AFSPA नॉर्थ ईस्ट राज्य- नागालैंड, असम और मणिपुर के कई हिस्सों से हट गया है। केंद्र की मोदी सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में AFSPA के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया..
02:14 PM Apr 01, 2022 IST | Desk Team
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानी AFSPA नॉर्थ ईस्ट राज्य- नागालैंड, असम और मणिपुर के कई हिस्सों से हट गया है। केंद्र की मोदी सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में AFSPA के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। इस बात का ऐलान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते दिन यानी 31 मार्च को किया था। बताते चले कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 लागू है। सरकार के इस फैसले का कई लोगों ने स्वागत किया है तो कई एक्टिविस्ट इसे अधूरी जीत बता रहे हैं।
16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला
आफस्पा को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने असम, नगालैंड और मणिपुर में इस कानून के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह ” कठोर, औपनिवेशिक कानून” पूरी तरह से वापस लिया जाना चाहिए।
लौह महिला के रूप में मशहूर शर्मिला
‘मणिपुर की लौह महिला’ के रूप में मशहूर शर्मिला ने आफस्पा को ‘दमनकारी कानून’ करार दिया और कहा कि यह कभी भी उग्रवाद से निपटने का समाधान नहीं रहा है। उन्होंने कहा, ”मैं आफस्पा के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं। यह सही दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। लेकिन कानून को निरस्त किया जाना चाहिए क्योंकि यह कोई समाधान नहीं है।”शर्मिला ने कहा, ”भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हम इस औपनिवेशिक कानून को कब तक बरकरार रखेंगे? लोग इसका खामियाजा क्यों भुगतें? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं जिनका उपयोग पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है। आफस्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है।”
शर्मिला ने आफस्पा के खिलाफ 16 साल चली अपनी भूख हड़ताल 2016 में समाप्त कर दी थी।
AFSPA लागू होने से केवल नौकरशाहों और राजनेताओं को ही लाभ मिलता-शर्मिला
नगालैंड में दिसंबर, 2021 में सेना के जवानों द्वारा 14 असैन्य नागरिकों के कथित तौर पर मारे जाने के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी और लोगों ने आफस्पा हटाने की मांग की थी। मांग पर विचार करने के लिये केंद्र ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी। शर्मिला ने कहा, ”मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब नहीं है कि आफस्पा लगाया जाए। इसके लागू होने से केवल नौकरशाहों और राजनेताओं को ही लाभ मिलता है। इससे बेरोजगार युवाओं में गलतफहमी पैदा होती है। आम लोग ही इसके शिकार होते हैं।”
उन्होंने कहा, ”आप ताकत के दम पर लोगों को नहीं जीत सकते। सरकार को पूर्वोत्तर के लोगों का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। एक बार जब आम लोगों और सत्ता में बैठे लोगों के बीच वास्तविक संबंध बन जाएंगे, तो चीजें बेहतर होंगी।”
16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला
आफस्पा को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने असम, नगालैंड और मणिपुर में इस कानून के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह ” कठोर, औपनिवेशिक कानून” पूरी तरह से वापस लिया जाना चाहिए।
लौह महिला के रूप में मशहूर शर्मिला
‘मणिपुर की लौह महिला’ के रूप में मशहूर शर्मिला ने आफस्पा को ‘दमनकारी कानून’ करार दिया और कहा कि यह कभी भी उग्रवाद से निपटने का समाधान नहीं रहा है। उन्होंने कहा, ”मैं आफस्पा के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं। यह सही दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। लेकिन कानून को निरस्त किया जाना चाहिए क्योंकि यह कोई समाधान नहीं है।”शर्मिला ने कहा, ”भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हम इस औपनिवेशिक कानून को कब तक बरकरार रखेंगे? लोग इसका खामियाजा क्यों भुगतें? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं जिनका उपयोग पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है। आफस्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है।”
शर्मिला ने आफस्पा के खिलाफ 16 साल चली अपनी भूख हड़ताल 2016 में समाप्त कर दी थी।
AFSPA लागू होने से केवल नौकरशाहों और राजनेताओं को ही लाभ मिलता-शर्मिला
नगालैंड में दिसंबर, 2021 में सेना के जवानों द्वारा 14 असैन्य नागरिकों के कथित तौर पर मारे जाने के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी और लोगों ने आफस्पा हटाने की मांग की थी। मांग पर विचार करने के लिये केंद्र ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी। शर्मिला ने कहा, ”मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब नहीं है कि आफस्पा लगाया जाए। इसके लागू होने से केवल नौकरशाहों और राजनेताओं को ही लाभ मिलता है। इससे बेरोजगार युवाओं में गलतफहमी पैदा होती है। आम लोग ही इसके शिकार होते हैं।”
उन्होंने कहा, ”आप ताकत के दम पर लोगों को नहीं जीत सकते। सरकार को पूर्वोत्तर के लोगों का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। एक बार जब आम लोगों और सत्ता में बैठे लोगों के बीच वास्तविक संबंध बन जाएंगे, तो चीजें बेहतर होंगी।”
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