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भगवान गणेशजी का इन कारणों से होता है जल में विसर्जन

पिछले 10 दिनों से देश भर में गणेश उत्सव की धूम छाई हुई है। लेकिन अब समय आ गया है बप्पा की विदाई लेने का।

06:46 AM Sep 12, 2019 IST | Desk Team

पिछले 10 दिनों से देश भर में गणेश उत्सव की धूम छाई हुई है। लेकिन अब समय आ गया है बप्पा की विदाई लेने का।

पिछले 10 दिनों से देश भर में गणेश उत्सव की धूम छाई हुई है। लेकिन अब समय आ गया है बप्पा की विदाई लेने का। इस वादे के साथ गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तुम जल्दी आना। गणेश चतुर्थी के खास मौके पर यानि 2 सितंबर के दिन घर-घर में गणेशजी की स्थापना की गई थी। 
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लेकिन अब उनके विसर्जन का समय आ गया है। अनंत चतुर्दशी यानि आज के दिन देशभर में धूमधाम के साथ गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा। 
करीब 12 दिनों तक घर के सदस्य की तरह गणेश जी की सेवा करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। सभी भक्तों के लिए काफी भावुक पल होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणपति का विसर्जन जल में ही क्यों होता है? अगर नहीं तो आइए जानते हैं इसके  पीछे की वजह। 
महाभारत व्यास का है संबंध
ऐसा कहा जाता है कि गणेशजी ने ही महाभारत ग्रंथ को लिखा था। महर्षि वेदव्यास ने गणेशजी को लगातार 10 दिन तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेशजी ने 10 दिनों तक इस कथा को हूबहू लिखा। 
करीब 10 दिनों के बाद वेदव्यासजी ने जब गणेशजी को छुआ तब देखा कि उनके शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ चुका था। तभी वेदव्यासजी ने उन्हें तुरंत कुंड में ले जाकर उनके शरीर के तापमान को शांत कर दिया। तभी से ऐसा माना जाता है कि गणेशजी को शीतल करने के  लिए उनका विर्सन किया जाता है। 
विसर्जन की वजह जीवन मृत्यु चक्र भी है…
विसर्जन का नियम इसलिए है कि इंसान यह समझ ले कि संसार एक चक्र के रूप में चलता है। भूमि पर जिसमें भी प्राण आया है वह प्राणी अपनी जगह पर फिर लौटकर जाएगा और फिर समय आने पर पृथ्वी पर लौट आएगा।
 विसर्जन का मतलब है मोह से मुक्ति आपके अंदर जो मोह है उसे विसर्जित कर दें। आप गणपति बप्पा की मूर्ति को बहुत प्रेम से घर लाते हैं। उनकी छवि से मोहित होते हैं लेकिन उन्हें आखिर जाना ही होता है इसलिए मोह को उनके साथ विदा कर दीजिए और प्रार्थना करें कि जल्दी से बप्पा फिर लौटकर आएं।
सभी देवी-देवताओं का विसर्जन जल में होता है। जल को नारायण रूप माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है संसार में जितनी मूर्तियां हैं इनमें देवी-देवता और प्राणी शामिल हैं,उन सभी में मैं ही हूं और अंत में सभी को मुझमें ही मिलना है।
 जल में मूर्ति विसर्जन से ऐसा माना जाता है कि जल में घुलकर परमात्मा अपने मूल स्वरूप से मिल गए है। इतना ही नहीं यह परमात्मा के एकाकार होने की और इशारा है।
 ज्ञान-बुद्घि के देवता
जल का संबंध ज्ञान और बुद्घि से माना गया है जिस कारक स्वयं भगवान गणेश हैं। जल में विसर्जित होकर भगवान गणेश साकार से निराकार रूप में घुल जाते हैं। 
जल को पंच तत्वों में से एक तत्व माना गया है जिनमें घुलकर प्राण प्रतिष्ठïा से स्थापित गणेश की मूर्ति पंच तत्वों में सामहित होकर अपने मूल स्वरूप में समाहित हो जाती है। 
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