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ये है बड़ी वजह, लोग यूपी-बिहार की इस नदी के पानी को छूने से डरते हैं

धार्मिक तौर पर नदियों को गंगा की पवित्रता का प्रतीक माना गया है। गंगा में श्रद्धालु विभिन्न व्रत-त्योहारों पर स्नान और पूजा करते हैं।

12:40 PM Jun 20, 2019 IST | Desk Team

धार्मिक तौर पर नदियों को गंगा की पवित्रता का प्रतीक माना गया है। गंगा में श्रद्धालु विभिन्न व्रत-त्योहारों पर स्नान और पूजा करते हैं।

धार्मिक तौर पर नदियों को गंगा की पवित्रता का प्रतीक माना गया है। गंगा में श्रद्धालु विभिन्न व्रत-त्योहारों पर स्नान और पूजा करते हैं। लेकिन गंगा की एक सहायक नदी है जिसे हाथ लगाने से भी लोग डरते हैं। इस नदी को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह शापित है और इसके पानी को हाथ लगाने से जो भी अच्छे काम किए होते हैं उन सभी का नाश हो जाता है।
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 इस नदी को लोगों का कहना है कि जब भी यहां पर बाढ़ आती है तो किसी ना किसी व्यक्ति की जान लेकर जरूर  जाती है। उत्तर प्रदेश की ऐसी ही एक नदी के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। इस नदी का नाम कर्मनाशा नदी है जिसके पानी काे छूने से भी लोग डरते हैं। 

नदी निकती है बिहार से 

बिहार के कैमूर जिले से कर्मनाशा नदी का उद्गम है। यह नदी बिहार के साथ उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बहती है। यूपी के सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर इन 4 जिलों से बहती है। फिर यह नदी बक्सर के पास गंगा नदी में मिल जाात है। 

काम बिगड़ जाता है छूने से 

लोगों का मानना है कि इस नदी को जो भी छू लेता है उसका बना बनाया काम बिगड़ जाता है। इस नदी को लेकर पुरानी कथा है कि यहां पर लोग सूखे मेवे खाकर रह जाते थे लेकिन भोजन बनाने के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल नहीं करते थे। इतना ही नहीं लोगों ने यह भी मान लिया था कि इस पानी को छूने से सारे पुण्य काम खराब हो जाएंगे। 

ऐसे प्रकट हुई थी कर्मनाशा नदी

इस नदी को लेकर एक पौराणिक कथा है। राजा हरिश्चन्द्र के पिता राजा सत्यव्रत थे। वह जितने पराक्रमी थे उनका आचरण उतना ही दुष्ट था। गुरु वशिष्ठ के पास राजा सत्यव्रत गए और उन्होंने सशरीर ही स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त कर दी थी। जब गुरु ने ऐसा करने से मना किया तो वह विश्वामित्र के साथ चले गए और उन्होंने उनसे सशरीर स्वर्ग भेजने की अपील की। विश्वामित्र की वशिष्ठ से शत्रुता थी और तप का अहंकार था जिसकी वजह से राजा को उन्होंने सशरीर स्वर्ग भेजना स्वीकार कर लिया। 

त्रिशंकु पास गए विश्वामित्र के

राजा सत्यव्रत सशरीर स्वर्ग विश्वामित्र के तप की वजह से चले गए थे। वहां उन्हें देखकर इंद्र भी क्रोधित हो गए और उन्हें धरती पर उलटा सिर लेकर भेज दिया। लेकिन राज को स्वर्ग और धरती के बीच में ही विश्वामित्र ने अपने तप से रोक दिया। राजा सत्यव्रत जो बीच में अटक गए वह त्रिशंकु कहलाए। 

नदी बन गई राजा की लार से 

त्रिशंकु धरती और आसमान के बीच देवताओं और विश्वामित्र की युद्ध में लटके रहे थे। धरती की तरफ राजा का मुंह था जिसकी वजह से उनके मुंह से लार टपक रही थी। यह नदी उनकी लार से ही प्रकट हुई। राजा को चांडाल होने का शाप भी ऋषि ने दिया था और यह नदी उनकी लार से बनी थी। यही वजह है कि इन्हें अपवित्र कहा जाता है। 

कर्मनाशा से संबंध है बौद्ध धर्म का

ऐसा कहा जाता है कि इस नदी के पानी से हरा भरा पेड़ भी छू जाता है तो वह भी सूख जाता है। इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ तो कर्मनाशा नदी के पास ही बौद्धों भिक्षुओं का निवास हो गया था। बौद्ध भिक्षु भी इस नदी से दूर रहते हैं। 
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