शिक्षा को बचाने की चुनौती
कोरोना महामारी ने शिक्षा के पूरे सत्र को ही प्रभावित कर दिया है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्पष्ट कह दिया है कि कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुए फरवरी 2021 में दसवीं और 12वीं की बोर्ड की परीक्षाएं कराना सम्भव नहीं है।
01:00 AM Dec 24, 2020 IST | Aditya Chopra
कोरोना महामारी ने शिक्षा के पूरे सत्र को ही प्रभावित कर दिया है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्पष्ट कह दिया है कि कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुए फरवरी 2021 में दसवीं और 12वीं की बोर्ड की परीक्षाएं कराना सम्भव नहीं है। फरवरी 2021 के बाद विचार करके बोर्ड परीक्षा की तारीखों की घोषणा की जा सकती है। यद्यपि कुछ छात्रों का कहना है कि ‘सर कृपया आनलाइन करें।’ यदि परीक्षा महत्वपूर्ण है तो जीवन भी महत्वपूर्ण है। आने वाले दिनों में आनलाइन परीक्षा ही उपाय लग रहा है।
दूसरी तरफ दिल्ली सरकार वर्ष 2021-22 के लिए नर्सरी और किंडरगार्टन के लिए दाखिले रद्द किए जाने पर विचार कर रही है। दिल्ली में जुलाई से पूर्व स्कूल खुलने की कोई सम्भावना नहीं है। यदि कोरोना वैक्सीन लगाने का काम जनवरी में भी शुरू करते हैं तो भी जुलाई तक सीमित लोगों का ही टीकाकरण हो पाएगा। शिक्षकों और छात्रों को जोखिम न डालते हुए परीक्षाएं किस तरह आयोजित की जाएं, इस संबंध में भी विचार-विमर्श किया जा रहा है। इसका अर्थ यही है कि स्कूल 2022-23 के शैक्षिक सत्र के लिए ही नर्सरी और किंडरगार्टन
के लिए दाखिले कर सकेंगे। शिक्षा के क्षेत्र में कोरोना महामारी के चलते अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है। दिल्ली में स्कूल मार्च में बंद हुए थे।जिन बच्चों ने इस वर्ष अप्रैल में नर्सरी कक्षाएं शुरू करनी थीं, उन्होंने तो शिक्षकों को सामने देखा ही नहीं। सब कुछ आनलाइन शुरू हुआ, उन्होंने जो कुछ देखा स्क्रीन पर ही देखा। छोटे बच्चों को इस बात का अहसास ही नहीं कि पूरी दुुनिया में हो क्या रहा है। दरअसल नर्सरी और किंडरगार्टन (केजी) की कक्षाएं सूचना प्रदान करने वाली होती हैं। बच्चे बहुत कुछ एक-दूसरे से सीखते हैं। यह अवसर उन्हें स्कूल खुलने पर ही मिल सकता है।दिल्ली में नर्सरी दाखिलों की एक निश्चित प्रक्रिया है। दिल्ली सरकार हर वर्ष नवम्बर में नर्सरी दाखिलों का शेड्यूल, मानदंड और दिशा-निर्देश जारी करती है। इस वर्ष सरकार ने इस संबंध में कोई बातचीत ही नहीं की। न तो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं और न ही स्कूल प्रबंधक कोई जोखिम उठाने को। लाकडाउन के चार महीने बाद मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरिजाघर सब खुल चुके हैं। बाजार और शॉपिंग मॉल भी खुल चुके हैं। बरायेनाम आनलाइन शिक्षा जारी है मगर स्कूल, कालेज, टैक्निकल इंस्टीच्यूट जाए बगैर क्या बच्चों को असल पढ़ाई-लिखाई करवाई जा सकती है? स्पष्ट है कि देश के करोड़ों विद्यार्थी तो नाेबेल पुरस्कार विजेता कवि, लेखक, पेंटर, दार्शनिक रवीन्द्रनाथ ठाकुर तो हैं नहीं जो घर पर मिली शिक्षा की बदौलत पूरी दुनिया से अपनी िवद्वता का लोहा मनवा लेंगे। लाकडाउन की मार से शिक्षा का तंत्र पस्त है। शिक्षण संस्थाओं के न खुलने से सबसे ज्यादा नुक्सान छात्रों को है, मगर बंद रहने से अनेक कालेज और इंस्टीच्यूट का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है।
आनलाइन शिक्षा भी उन मुट्ठी भर बच्चों तक ऐसे राज्यों में ही पहुंच रही है, जहां बच्चों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन के साथ इंटरनेट आैर ब्राडबैंड नेटवर्क मौजूद हैं। भारत के ज्यादातर गांवों में तो ब्राडबैंड हैं ही नहीं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में लगभग 7.7 लाख विद्यार्थियों ने ही निजी विश्वविद्यालयों में दाखिल लिया। इनमें लड़कियों की संख्या लड़कों की अपेक्षा कम रही। इससे स्पष्ट है कि महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट में बालिकाओं को सबसे पहले शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। निजी विश्वविद्यालयों की फीस सरकारी विश्वविद्यालयों की अपेक्षा कहीं अधिक है, मगर बेरोजगारी की इस घड़ी में मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए बच्चों को पालना दूभर हो रहा है तो वे उनकी फीस के लिए पैसों का जुगाड़ कैसे कर पाएंगे। भारत से अनेक विद्यार्थी विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जाते हैं। विदेशों में पढ़ रहे छात्र भारत लौट चुके हैं, यद्यपि उनकी कक्षाएं आनलाइन चल रही हैं। अब स्थितियां कब सामान्य होंगी, कुछ कहना मुश्किल है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के आर्थिक परिणामों के फलस्वरूप अगले वर्ष लगभग 2.4 करोड़ छात्रों की पढ़ाई हमेशा के लिए छूट जाने का संकट गहरा रहा है। निम्न-मध्य आय वाले देशों में लगभग 99 फीसदी छात्र फिलहाल शिक्षा नहीं पा रहे हैं।
वर्तमान में शिक्षा को बचाने की चुनौती समाज के आगे सबसे बड़ा संकट है। अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अच्छे पद पर नियुक्ति पाने या अच्छी नौकरी पा लेने का सपना देखने वाले छात्रोें में एक वर्ष खो देने से घोेर निराशा व्याप्त हो चुकी है। लाखों रुपए फीस चुका कर भी खाली बैठना छात्रों को लगातार सताने लगा है। शिक्षा तंत्र को बचाने का संकट बहुत विकराल है। सरकार और समाज को छात्र-छात्राओं की शिक्षा जारी रखने में मदद की ठोस पहल करनी होगी। सरकारों को शिक्षकों, शिक्षण संस्थानों और छात्रों की समस्याओं को हल करना होगा तभी भारत के होनहारों का भविष्य सुनिश्चित हो सकेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोरोना संक्रमण के बीच शिक्षा जगत में बहुत नए प्रयोग हुए हैं। दूरदर्शन के माध्यम से बच्चों को घर पर रहते हुए पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ, वहीं माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने मेरा मोबाइल, मेरा एप्प के माध्यम से बच्चों की शिक्षा जारी रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यह सब नए कदम सकारात्मक तो हैं, अभिभावक में इन पर ध्यान दे रहे हैं लेकिन यह स्कूल का िवकल्प नहीं बन सकते। शिक्षा को बचाने की चुनौती बहुत बड़ी है, इसके लिए सभी को एकजुट होकर आगे आना होगा।
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