वैष्णो देवी की प्राचीन गुफा खुलती है इस समय,यहां के दर्शन किस्मत वालों को होते हैं
माता वैष्णो देवी के दर्शन का काफी ज्यादा महत्व है। वैष्णो देवी के दरबार में अक्सर भक्तों का तांता लगा रहता है।
11:10 AM Dec 23, 2019 IST | Desk Team
माता वैष्णो देवी के दर्शन का काफी ज्यादा महत्व है। वैष्णो देवी के दरबार में अक्सर भक्तों का तांता लगा रहता है। ऐसे में यदि आप भी मां वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए जा रहे हैं तो सबसे पहले माता के दरबार से जुड़ी इन जरूरी बातों को जानने के बाद करें मां के दर्शन। तो चलिए आज हम आपको बताएंगे किस समय खुलती है मां वैष्णो देवी की प्राचीन गुफा।
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मां वैष्णो देवी का एक अन्य नाम देवी त्रिकूटा भी है। देवी त्रिकूटा मतलब मां वैष्णो देवी का निवास स्थान जम्मू में माणिक पहाडिय़ों की त्रिकुटा श्रृंखला में एक गुफा है। देवी त्रिकूटा के निवाह की वजह से इस पर्वत को त्रिकूट पर्वत कहा जाता है। माना जाता है कि इस पर्वत पर माता एक गुफा में वास करती हैं।
अक्सर ऐसा होता है जब मां के दरबार में भक्तों की लंबी कतार होने की वजह से दर्शन करने के लिए बहुत ही थोड़ा सा समय मिल पाता है। इस कारण इस गुफा से जुड़ी बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम है। तो आप भी मां के दर्शन से पहले इन जरूरी बातों को जान लें।
वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए इस समय जिस रास्ते का प्रयोग किया जाता है वह गुफा में प्रवेश का प्राकृतिक रास्ता नहीं है। श्रद्घालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कृत्रिम रास्ते का निर्माण 1977 में किया गया था। वर्तमान समय में श्रद्घालु माता के दरबार में प्रवेश इसी रास्ते से करते हैं।
ऐसे में कुछ ही ऐसे भक्त होते हैं जिन्हें प्राचीन गुफा से माता के भवन में प्रवेश करने का मौका मिलता है। दरअसल यह नियम है कि जब कभी भी दस हजार से कम श्रद्धालु माता के दरबार में होंगे उस समय ही प्राचीन गुफा का द्वार खोला जाएगा। इस प्राचीन गुफा का काफी महत्व भी है।
भक्त इस गुफा से माता के दर्शन की दिल से इच्छा रखते हैं क्योंकि कहा जाता है कि प्राचीन गुफा के समक्ष ही भैरों बाबा का शरीर मौजूद है। माता ने यहीं पर भैरों बाबा को अपने त्रिशूल से मारा था और उनका सिर उड़ाकर भैरों घाटी में चला गया जबकि शरीर यही पर रह गया था। अक्सर ऐसा दिसंबर और जनवरी महीने में होता है।
इस पवित्र गुफा की लंबाई करीब 98 फीट है। गुफा में प्रवेश और निकास के दो कृत्रिम रास्ते बने हुए है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा भी बना हुआ है और इसी चबूतरे पर देवी मां का आसन भी है। जहां पर देवी त्रिकूटा अपनी माताओं के साथ विराजमान रहती हैं।
इस प्राचीन गुफा का महत्व इस वजह से भी है क्योंकि इसमें पवित्र गंगाजल प्रवाहित होता रहता है। इस जल से पवित्र होकर भक्त मां के दरबार में पहुंचते हैं जोकि एक बेहद अलग अनुभव है। वैष्णो देवी की गुफा का संबंध यात्रा मार्ग में आने वाले एक पड़ाव से भी है जिसे अर्धकुंवारी कहते हैं।
इस गुफा को गर्भजून के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि माता यहां पर 9 महीने तक उसी प्रकार रही थी जैसे एक शिशु माता के गर्भ में 9 महीने तक रहता है। इस वजह से इस गुफा को गर्भजून भी कहा जाता है।
मान्यता यह भी है कि गर्भजून में जाने से इंसान को फिर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। यदि मनुष्य गर्भ में आ भी जाता है तो गर्भ में उसे कष्टï नहीं झेलना पड़ता और उसका जन्म सुख में भरपूर होता है।
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