W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

ट्रम्प की ​‘बिचौलिया’ टर्र-टर्र

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर भारत के अन्दरूनी मामलों में टांग फंसाने की कुचेष्टा करके साफ कर दिया है कि वह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी गोलबन्दी चाहते हैं।

12:17 AM May 29, 2020 IST | Aditya Chopra

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर भारत के अन्दरूनी मामलों में टांग फंसाने की कुचेष्टा करके साफ कर दिया है कि वह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी गोलबन्दी चाहते हैं।

ट्रम्प की ​‘बिचौलिया’ टर्र टर्र
Advertisement
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर भारत के अन्दरूनी मामलों में टांग फंसाने की कुचेष्टा करके साफ कर दिया है कि वह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी गोलबन्दी चाहते हैं। यह भारत के साथ अपने दोस्ताना सम्बन्धों का नाजायज फायदा उठाने से ज्यादा कुछ नहीं है। दरअसल हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। जरूरत आज अमेरिका को खुद है कि वह चीन के साथ अपने गूढ़ विवादों को हल करने के लिए भारत की मदद ले क्योंकि भारत की भौगोलिक व आर्थिक हैसियत इस दर्जे पर है कि वह इन दोनों देशों के बीच शुरू हुए ‘शीतयुद्ध’ की ‘बर्फ’ पिघला सकता है। चीन भारत का ऐतिहासिक और सबसे निकट ऐसा पड़ौसी है जो भौगोलिक रूप से सामरिक प्रतिस्पर्धा को दोनों देशों के हितों के खिलाफ मानता है।  इस तथ्य से चीन भी भलीभांति परिचित है जिसकी वजह से बार-बार अपनी सैनिक हेकड़ी दिखा कर वार्ता की मेज पर आ जाता है। दोनों देशों के सम्बन्धों के बीच जब भी कोई कशीदगी पैदा होती है तो कूटनीतिक चैनलों के जरिये इसकी कड़वाहट कम कर दी जाती है लेकिन अमेरिका और चीन के बीच अब हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि वाशिंगटन में चीन के साथ आर्थिक सम्बन्धों को न केवल सीमित करने की बात कही जा रही है बल्कि चीनी कम्पनियों के खिलाफ व्यापक मुहीम छेड़ी जा रही है और बीजिंग से अमेरिकी कम्पनियों को बोरिया-बिस्तर बांधने की सलाह दी जा रही है। प्रशान्त-हिन्द महासागर क्षेत्र और अरब सागर में दोनों देशों के युद्धपोत डटे हुए हैं और हकीकत यह भी है कि चीन पूरे दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशों में अपनी आर्थिक गोलबन्दी से अमेरिका के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
Advertisement
अमेरिका अपने हित साधने के लिए भारत के साथ दोस्ताना सम्बन्धों का प्रयोग करना चाहता है जबकि भारत जानता है कि किसी एक के पक्ष में झुकने से पूरे एशियाई महाद्वीप की राजनीति में अस्थिरता आ सकती है और भारतीय उपमहाद्वीप जंगी अखाड़ा बन सकता है। अमेरिका की नीयत से भारतवासी शुरू से ही वाकिफ हैं और समझते हैं कि यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारी ( महाजन) देश है जिसका लक्ष्य अपनी कम्पनियों का कारोबार बढ़ाना रहता है और इसके लिए वह हर महाद्वीप व उपमहाद्वीप में ‘दबाव केन्द्र’ बना कर रखना चाहता है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के निर्माण से लेकर इसे सामरिक रूप से सशक्त बनाने में एंग्लो-अमेरिकी देशों की लाबी ने ही प्रमुख भूमिका निभाई है। इसकी असली वजह भारत की ताकत को कम रखे जाने के अलावा और कुछ नहीं रही है। अतः जब भी भारत को कमजोर आंका गया तभी पाकिस्तान की तरफ से आक्रमण करा दिया गया।
Advertisement
 1965 का भारत-पाक का युद्ध अकारण और इसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की गरज से किया गया था। उस समय पं. नेहरू जैसे प्रभावशाली नेता के स्थान पर लाल बहादुर शास्त्री जैसे सीधे-सादे प्रधानमन्त्री को अमेरिका ने कमजोर समझा था और पाकिस्तान के जनरल अयूब ने बेवजह ही कश्मीर के इलाके में युद्ध छेड़ दिया था। यह युद्ध पाकिस्तान ने अमेरिकी पेंटन टैंकों के भरोसे लड़ा था जबकि इसकी वायुसेना के अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल नूर खां को खबर भी नहीं दी गई थी। दूसरा युद्ध 1971 की शुरूआत में तब पाकिस्तान ने लड़ने  का मन बनाया जब स्व. इन्दिरा गांधी केन्द्र में कम्युनिस्टों की मदद से अल्पमत सरकार कांग्रेस पार्टी के दोफाड़ होने के बाद चला रही थीं। तब पाकिस्तान ने श्रीनगर हवाई अड्डे से भारत के दो यात्री ‘फाकर विमानों’ को लाहौर लाकर जला डालने वाले दो भटके हुए कश्मीरी युवकों का ‘महानायकों’ की तरह स्वागत किया था मगर इन्दिरा जी ने इसके बाद पाकिस्तान के सभी विमानों के भारतीय वायु सीमा में उड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
Advertisement
 संयोग से तब पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) में अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को पूरे पाकिस्तान में हुए चुनावों में बहुमत हासि​ल हुआ था मगर तब के हुक्मरान जनरल याह्या खां  ने उन्हें प्रधानमन्त्री बनाने के बजाय कैद कर लिया था और पूर्वी पाकिस्तान में इसके बाद ‘मुक्ति आन्दोलन’ शुरू हो गया था। इन्दिरा जी ने इसका लाभ उठाते हुए मानवीय आधार पर पूर्वी पाकिस्तान में वहां की बंगाली जनता पर पाक सेना द्वारा ढहाये जा रहे जुल्मों के खिलाफ खुला समर्थन तब दिया जबकि भारत में भी लोकसभा के चुनाव मार्च 1971 तक हो गये थे, बाद में दिसम्बर महीने में जाकर पाकिस्तान और भारत की सेनाएं जब भिड़ीं तो अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में अपना ‘सातवां एटमी जंगी जहाजी बेड़ा’ उतार कर पाकिस्तान के हक में तेवर दिखाये। जहाजी बेड़ा खड़ा रहा मगर बंगलादेश बन गया और पाकिस्तान के एक लाख फौजियों ने भारत के सेनाध्यक्ष से अपने जान-माल की भीख घुटनों के बल बैठ कर मांगी।
इस इतिहास को भारतीय कभी नहीं भूल सकते कि अमेरिकी दोस्ती आज भी पाकिस्तान के साथ बाकायदा है और वह उसे चीन के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए लगातार सामरिक व वित्तीय मदद दे रहा है। चीन के साथ बेशक भारत के सम्बन्ध खट्टे-मीठे हैं मगर माफ कीजिये हमें ट्रम्प साहब की मदद की जरूरत नहीं है जिन्हें नवम्बर महीने में अपने देश में पुनः चुनाव लड़ कर कुर्सी पर बैठने की तमन्ना है। यह कोई राज नहीं है कि अमेरिका में अब यह चुनाव चीन के मुद्दे पर ही लड़ा जायेगा और ट्रम्प साहब अपने चुनावी फायदे के लिए इसमें भारत को भी लपेटना चाहते हैं। क्या तमाशा है कि हुजूरे वाला कभी कश्मीर  पर अपनी मध्यस्थता की पेशकश कर देते हैं और यहां तक कह जाते हैं कि उनसे नरेन्द्र मोदी व इमरान खान दोनों ने ही एेसा करने के लिए कहा था और बाद में जुबान पलट जाते हैं। इमरान खान तो उनके व्हाइट हाऊस की ड्योढी पर नाक रगड़ कर यह इल्तिजा करके आये थे मगर नरेन्द्र मोदी ने उनके मुंह पर ही फ्रांस  में कह दिया था कि जनाब होश में रहिये। अपने फायदे के लिए दोस्त की गरदन पर चढ़ कर ही वार करना कहां की और कौन सी कूटनीति है? ट्रम्प साहब अपने चुनावी लाभ के लिए चीन से ही भारत को भिड़ा देना चाहते हैं। इसकी केफियत कुछ इस तरह है :
‘‘हमको यां दर-दर फिराया यार ने,  ला-मकामें घर बनाया यार ने 
आप अपने देखने के वास्ते,  हमको ‘आइना’ बनाया यार ने 
अपने इक अदना ‘तमाशे’ के लिए,  हमको ‘सूली’ पर चढ़ाया यार ने।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×