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कर्नाटक में ‘योगी’ माडल

कर्नाटक के मुख्यमन्त्री श्री बासवराज बोम्मई ने यह कह कर पूरे देश की राजनीति में जलजला पैदा कर दिया है कि वह अपने राज्य में साम्प्रदायिक कट्टरपंथियों व राष्ट्रविरोधियों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश का ‘योगी माडल’ अपनाने से नहीं हिचकेंगे।

03:24 AM Jul 31, 2022 IST | Aditya Chopra

कर्नाटक के मुख्यमन्त्री श्री बासवराज बोम्मई ने यह कह कर पूरे देश की राजनीति में जलजला पैदा कर दिया है कि वह अपने राज्य में साम्प्रदायिक कट्टरपंथियों व राष्ट्रविरोधियों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश का ‘योगी माडल’ अपनाने से नहीं हिचकेंगे।

कर्नाटक में ‘योगी’ माडल
कर्नाटक के मुख्यमन्त्री श्री बासवराज बोम्मई ने यह कह कर पूरे देश की राजनीति में जलजला पैदा कर दिया है कि वह अपने राज्य में साम्प्रदायिक कट्टरपंथियों व राष्ट्रविरोधियों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश का ‘योगी माडल’ अपनाने से नहीं हिचकेंगे। कर्नाटक में पिछले एक साल से जिस तरह साम्प्रदायिक उग्रवादी खास कर इस्लामी जेहादी विचारधारा के लोग आतंकवादी रास्ते पर चल रहे हैं उससे राज्य की कानून व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही और निरीह व भोले-भाले लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। हाल में राज्य दक्षिण कनारा जिले में भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चे के 32 वर्षीय नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या नूपुर शर्मा का समर्थन करने के शक पर की गई है उसे लेकर राज्य के लोगों में बहुत गुस्सा है। इस गुस्से को हमें हिन्दू-मुसलमान में बांट कर नहीं देखना चाहिए क्योंकि नेट्टारू विचारों से किसी राजनैतिक दल के समर्थक एक जागरूक नागरिक होने की वजह से हो सकते थे। जिसका अधिकार उन्हें संविधान ही देता है, मगर उन विचारों को प्रकट करने के लिए उनकी हत्या यदि की गई है तो वह निश्चित रूप से मानवता की हत्या ही कहलायेगी। धर्मनिरपेक्ष भारत में हिन्दू या मुसलमान होना न किसी फायदे का सौदा है और न नुकसान का क्योंकि सभी नागरिकों को एक समान अधिकार प्राप्त हैं। प्रत्येक नागरिक को अहिंसक तरीके से अपने राजनैतिक विचार प्रकट करने और उनका प्रचार व प्रसार करने का अधिकार है। परन्तु यदि इस्लामी साम्प्रदायिक कट्टरपंथी खुलेआम भारत की सड़कों पर नूपुर शर्मा के विरोध में ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगाते हैं तो ऐसे  जुलूसों या प्रदर्शनों का आयोजन करने वालों से लेकर उनमें शिरकत करने वाले रहनुमाओं के खिलाफ भारत का फौजदारी कानून तुरन्त हरकत में आ जाता है।
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मगर हमें ध्यान रखना होगा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री  योगी आदित्यनाथ ने ऐसे  तत्वों को किस प्रकार नियन्त्रण में रखा हुआ है और उन पर कानून का अंकुश लगाया हुआ है। वह अपराधी प्रवृत्ति के साम्प्रदायिक नेताओं के प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाते और उनके खिलाफ कानून का जोरदार डंडा संविधान के दायरे में ही चलाते हैं। जो लोग अवैध तरीके से सम्पत्तियां बना कर खुद को अपने सम्प्रदाय का ठेकेदार बनने या उनकी नेतागिरी करने का रूआब प्रशासन पर  गालिब करने की कोशिश करते हैं बाबा का शासन उनकी ही खबर जम कर लेता है और उनकी अवैध सम्पत्तियों पर कानून के दायरे में रहते हुए बुलडोजर चला देता है। यह किसी को घर से बेघर करने का तरीका नहीं है बल्कि कानून तोड़ने वाले को कानून का सम्मान करने का पाठ पढ़ाने का कायदा है। इसी प्रकार बाबा के पिछले शासन के दौरान अपराधियों के साथ पुलिस मुठभेड़ों का मामला बहुत सुर्खियों में रहा था। पहला सवाल यह है कि पुलिस से मुकाबला करने या मुठभेड़ करने की जुर्रत कौन कर सकता है ? जाहिर है पुलिस अपराधी तत्वों की तलाश में ही रहती है। इनमें से कुछ अवैध गतिविधियों की मार्फत धन कमा कर समाज में अपने पैसे के बूते पर अपना आतंक तक कायम करने में कामयाब हो जाते हैं और कभी-कभी तो चुनाव तक जीत जाते हैं मगर मूल रूप से वे होते तो अपराधी ही हैं। ऐसे  लोग राजनीति से लेकर सत्ता के प्रतिष्ठानों तक में रसूखदारी कायम कर लेते हैं मगर अपनी असली फितरत नहीं छोड़ते। कुछ शातिर कातिल या नामी अथवा इनामी बदमाश होते हैं। ये लोग ही पुलिस से मुकाबला करने की जुर्रत करते हैं अतः मुठभेड़ों में ऐसे  ही लोग मारे जाते हैं। मगर धार्मिक कट्टरपंथ के चलते भी अब समाज में इज्जतदार कहलाये जाने वाले ऐसे  लोगों के चेहरों से नकाब उठ रहे हैं जो मजहब के नाम पर दूसरे मजहब के लोगों के कत्ल का सबाब का काम मानते हैं। ऐसे  लोगों को शुरू में ही दबाने की सख्त जरूरत है और उन्हें कानून की जद में लाकर सख्त सजा देने की दरकार है।
भारत एक सभ्य समाज है और यहां की मूल हिन्दू संस्कृति उदारता और विचार वैविध्य का पूरी दुनिया में अजीम नमूना मानी जाती है। ऐसी  संस्कृति वाले देश में कट्टरपंथियों को पनपने से रोकने के लिए कानून में समुचित प्रावधान भी हैं। योगी आदित्यनाथ ने केवल उनका प्रयोग करके ही अपना विशिष्ट प्रशासन माडल बनाया है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी भी अपराधी के अपराध की न्यायिक समीक्षा से भागें बल्कि मतलब यह है कि यदि अपराधी स्वयं को कानून की खिलाफ वर्जी करते हुए शासन से ऊपर समझता है तो कानून के दायरे में ही उसे माकूल सबक सिखाया जाये। योगी माडल यही है जिसका जिक्र श्री बोम्मई ने किया है और उनके उच्च शिक्षा मन्त्री श्री सी.एन. अश्वथनारायण ने बाद में विस्तारित खुलासा किया है। कर्नाटक में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया जैसा कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन बहुत सक्रिय है और यह मुस्लिम जनता को इस्लामी कट्टरपंथ के विचार पढ़ाता है जिसकी वजह से इस समाज की युवा पीढ़ी कट्टर हो रही है। स्कूली मुस्लिम कन्याओं में हिजाब का मुद्दा भी इसी संगठन ने खड़ा किया था। मजहब के नाम पर राज्य में जितनी भी हत्याएं हुई सभी में इस संगठन का हाथ होने की आशंका व्यक्त की जाती है। यह संगठन मुस्लिम युवकों को सैनिकों जैसी ट्रेनिंग बिना हथियार के भी देता है और उनके शिविर लगाता है। देश के प्रति निष्ठा जागृत करने की जगह यह इस्लाम मजहब के प्रति निष्ठा रखने की शिक्षा देता है। सबसे पहले यह समझा जाना चाहिए कि भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार सामूहिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत है। कोई भी हिन्दू या मुसलमान सबसे पहले भारतीय है और भारत के प्रति उसकी निष्ठा सभी अन्य मजहबी निष्ठाओं से बहुत ऊपर है। वैसे भी यह देश की धरती से लेकर उसकी आबो-हवा और व्यापार व वाणिज्यिक गतिविधियों से लेकर अन्य सुविधाएं ही हैं जो किसी भी नागरिक को जिन्दा रखती हैं। अतः देश के प्रति समर्पित रहना उसका पहला कर्त्तव्य होता है। मजहब इसके बाद आता है। योगी माडल वास्तव में यही तो कहता है।
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