इस शापग्रस्त पड़ौसी देश के लिए 10 सूत्री उपाय
एक बदनसीब व अभिशाप-ग्रस्त है पड़ौसी देश पाकिस्तान। वर्ष 1947 के बाद पिछले 78 वर्षों..
एक बदनसीब व अभिशाप-ग्रस्त है पड़ौसी देश पाकिस्तान। वर्ष 1947 के बाद पिछले 78 वर्षों में एक भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ जिसने पूरे पांच वर्ष सत्ता में काटे हों।
इस लोकतांत्रिक पड़ौसी देश में अब तक 19 प्रधानमंत्री हुए हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जिनका नाम शायद ज्यादातर भारतीयों ने सुना भी नहीं होगा। मसलन नूरुल हसन, शौकत अज़ीज, मुहम्मद अली बोगरा,फिरोज खां नून आदि। वर्तमान पाकिस्तान में कहीं भी एकरूपता नहीं है। बीस से अधिक भाषाएं हैं, 100 से अधिक बोलियां हैं। आधिकारिक रूप से उर्दू व अंग्रेजी ही राजभाषाएं हैं, मगर सत्ता के प्रमुख केंद्र पंजाब में अब भी मुख्य रूप में पजाबी बोली का ही चलन है। यहां अनेक शासक, जिनमें प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति भी शामिल हैं, त्रास्दियों का शिकार हुए।
प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को एक सार्वजनिक सभा में गोली मार दी गई थी। वहां के प्रथम गवर्नर जनरल कायदे आज़म जिन्ना सिर्फ 13 माह ही अपने देश के मुखिया नहीं रह पाए। जिस विमान से वह पहली बार बतौर राष्ट्राध्यक्ष यात्रा कर रहे थे, उसे कराची हवाई अड्डे पर उतारने के समय वहां कोई एम्बुलेंस भी मौजूद नहीं थी। वह उन दिनों टीबी से पीडि़त थे। जिस देश की बागडोर उन्होंने 14 अगस्त, 1947 को संभाली थी, उस देश के पास अपने सैनिकों व प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए एक माह का भी खर्चा-पानी नहीं था। अपनी करंसी भी नहीं थी और ‘भारत’ के नोटों पर पाकिस्तान की रबर-मुहरें लगाकर काम चलाया गया। पहले दो माह के प्रशासनिक खर्च के लिए जिन्ना साहब को भी अपने एक मित्र एवं बहावलपुर स्टेट के नवाब से कर्ज के रूप में मदद लेनी पड़ी थी। उस कर्ज को भी बाद में न तो जिन्ना की सरकार चुका पाई और न ही बाद की सरकारों ने ही कभी तवज्जो दी। जिन्ना के बारे में भी प्रचलित जानकारी यही थी कि प्रकट रूप में एक इस्लामी राष्ट्र के इस मुखिया ने अपनी जि़ंदगी में कभी रोजे नहीं रखे थे। कुछ अंतरंग लोगों (पीलू मोदी सहित) को तो यह भी संदेह था कि जिन्ना साहब को सही सलीके व सही उच्चारण के साथ नमाज पढ़ना भी आता था? हमारा यह अजब-गजब पड़ौसी अपना कोई स्वरूप स्थापित नहीं कर पाया। वहां पख्तूनवा प्रांत में कब पख्तूनिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाए, कुछ पता नहीं। बलूचिस्तान के लोगों ने तो विदेश में अब भी एक निर्वासित सरकार भी बना ली है। सरायकी क्षेत्रों वाले वहां के पंजाबियों से त्रस्त हैं। देश की प्रशासनिक सत्ता, सेना व कमोबेश सभी प्रमुख उद्योगों पर पंजाबियों का कब्ज़ा है।
एक सांस्कृतिक विसंगति यह भी है कि यहां के कट्टरपंथी यहीं के सूफी संतों के कट्टर विरोधी हैं। चाहे लाहौर में मियां मीर की मजार हो या पाकपट्टन में बाबा फरीद साहब की दरगाह, दोनों जगह आतंकी विस्फोट होते रहे हैं।
लम्बी अवधि तक दनदनाते हुए ज़ुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई थी। दो बार अपने देश की प्रधानमंत्री रही बेनज़ीर भुट्टो की भी हत्या कर दी गई थी। जनरल जिया- उल-हक का क्या हश्र हुआ, यह सर्वविदित है। चार बार ऐसा भी हुआ जब सेना-प्रमुख ही वहां के राष्ट्रपति बन गए थे। इन चारों ने कुल 78 वर्ष में 32 वर्षों तक देश पर शासन किया। कुल पांच प्रधानमंत्री ऐसे भी थे जो सेनाध्यक्ष-राष्ट्रपतियों के अधीन काम करते रहे। यहां यह भी जानना दिलचस्प होगा कि इस देश में पहला आम चुनाव होने में भी 23 वर्ष लग गए थे। पहले 11 वर्षों में 7 प्रधानमंत्री हुए लेकिन कोई भी आम चुनावों के जरिए सत्ता में नहीं आया। अब सवाल यह है कि इस शापग्रस्त देश को वर्तमान दलदल से निकालने का उपाय क्या है?
इस उपमहाद्वीप की भौगोलिक एवं राजनैतिक स्थिति पर पैनी नज़र रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान को वर्तमान दलदल से निकालने के 10 उपाय हैं-
1. जैश व लश्कर सरीखे आतंकी संगठनों की कमर लगभग टूट चुकी है। पहलगाम त्रास्दी के बाद उनके सभी प्रमुख आतंकी ठिकाने नेस्तनाबूद हो चुके हैं। बचेखुचे बड़बोले आतंकी मुखियाओं को किसी भावी भारतीय ‘सर्जिकल ऑपरेशन’ से बचाने के लिए वहां से तुर्किए या किसी अन्य हिमायती देश भेजा जा सकता है। बांस नहीं होंगे तो बांसुरियां भी कम बजेंगी। वहां की बदनाम व बदनुमा आईएसआई को भी नकेल डालना वहां के फौजी-जरनलों के लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए। यानि पहला उपाय है बचे-खुचे आतंकी मुखियाओं को वहां से निकालना या भारत के सुपुर्द करना।
2. पाकिस्तान को सिंधु-जल समझौते का लाभ तभी मिले, जब वह अपने देश को आतंकी तत्वों से मुक्त रखने की गारंटी दे।
3. वहां श्री करतारपुर साहब की तर्ज पर श्री ननकाना साहब व कटासराज तक कॉरीडोर खोलने पर विचार हो, ताकि तनाव घटे और पाकिस्तान को भी पर्यटन से चार पैसे की आय हो।
4. दोनों देशों के बीच व्यापार की सीमित स्तर पर शुरुआत हो।
5. सांस्कृतिक व अदबी आवाजाही सीमित रूप में आरंभ हो।
6. हड़प्पा-मोहेनजोदाड़ो और राखीगढ़ी के मध्य भी एक ‘कारीडोर’ पर विचार किया जाए ताकि दोनों देशों की नई पीढ़ी अपनी साझी विरासत को पहचान सके।
7. मुम्बई-कराची समुद्री मार्ग से हिंगलाज देवी यात्रा व मुल्तान के आदित्य मंदिर तक भी कॉरीडोर बने ताकि सिंध की संस्कृति में भी ताजा हवा की बयान बह सके।
8. यदि स्थितियां बेहतर होने लगें तो दरगाह-अजमेर-शरीफ की ओर भी एक कॉरीडोर पर विचार किया जाए ताकि ‘गरीब-नवाज़’ के दरबार में पाकिस्तान को अपने पुराने गुनाह बख्शाने का मौका मिल सके।
9. पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ व पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर के बीच भी शैक्षणिक स्तर पर आदान-प्रदान का रास्ता खुले।
10. सिंधु घाटी सभ्यता, हड़प्पा-सभ्यता, सरस्वती नदी सभ्यता व अन्य पुरातात्विक विषयों पर साझे शोध के लिए आयोग का गठन हो।
ये कुछ सूत्र हैं जिनसे पाकिस्तान अपने बचाव के लिए कोई तस्बीह बना सकता है और कोई 108 मनकों वाली माला हम भी पिरो सकते हैं।