बिहार में चमकी बुखार से मरने वालों की बढ़ी संख्या, अब तक 135 मासूमों की मौत
गुरुग्राम के कोलंबिया एशिया अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुदीप दास ने कहा, ‘‘मुजफ्फरपुर में हाल में फैला चमकी बुखार वायरल जैसा मालूम पड़ता है
07:25 AM Jun 20, 2019 IST | Desk Team
बिहार के बच्चों पर कहर बनकर टूट रहा चमकी बुखार (एक्यूट एनसिफेलाइटिस सिंड्रोम) से अब तक 135 बच्चों की मौत हो चुकी है। मुजफ्फरपुर में 117 बच्चों की मौत हुई, 12 मौतें मोतिहारी में और 6 मौतें बेगूसराय में हुई हैं। इस हाहाकार के बीच सरकार में किसी तरह की कोई हलचल नहीं दिख रही। राज्य और केंद्र सरकारों के पास इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है।
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एक्यूट एनसिफेलाइटिस सिंड्रोम के लक्षण
चमकी बुखार (एक्यूट एनसिफेलाइटिस सिंड्रोम) तंत्रिका संबंधी गंभीर बीमारी है जो मस्तिष्क में सूजन पैदा करती है। एईएस के लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, भ्रम की स्थिति, गर्दन में अकड़न और उल्टी शामिल है। यह बीमारी ज्यादातर बच्चों और नाबालिगों को निशाना बनाती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल (एनएचपी) के अनुसार, एईएस बीमारी ज्यादातर विषाणुओं से होती है लेकिन यह जीवाणुओं, फफुंदी, रसायनों, परजीवियों, विषैले तत्वों और गैर-संक्रामक एजेंटों से भी हो सकती है। एनएचपी के अनुसार, जापानी बुखार का विषाणु भारत में एईएस का मुख्य कारण है।
पोर्टल ने कहा कि भारत में एईएस के फैलने के कुछ अन्य कारण हरपीज, इंफ्लुएंजा ए, वेस्ट नील और डेंगू जैसे विषाणु हैं। हालांकि, एईएस के कई मामलों के कारणों का पता अब तक नहीं चल पाया है। गुरुग्राम के कोलंबिया एशिया अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुदीप दास ने कहा, ‘‘मुजफ्फरपुर में हाल में फैला चमकी बुखार वायरल जैसा मालूम पड़ता है। हालांकि, हमें अब तक यह पता नहीं चला है कि यह कौन सा विषाणु है।’’
गुरुग्राम के पारस अस्पताल में बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉक्टर मनीष मन्नान ने कहा कि इस बीमारी को लेकर दो अलग अलग बातें सामने आ रही हैं। एक कारण लू लगना जबकि दूसरा कारण लीची का विषैला तत्व है। मन्नान ने कहा, ‘‘कहा जा रहा है कि कुपोषण से ग्रस्त बच्चे जो लीची खाने के बाद भोजन किये बगैर सोने चले जाते हैं, वे सुबह चार से सात बजे तक मानसून से पहले के मौसम में बीमार पड़ जाते हैं।’’
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित 2017 के अध्ययन में कहा गया कि 2008 से 2014 के बीच इस रोग के 44 हजार से अधिक मामले सामने आए और इससे करीब छह हजार मौतें हुईं। पत्रिका में कहा गया कि 2016 में, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक अस्पताल में 125 से अधिक मौतें हुई थी।
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