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रतन टाटा का दिल 27 वर्षीय शांतनु के इस आइडिया ने जीता, जानें कैसे मिला साथ काम करने का मौका

भारत के लोकप्रिय बिजनेसमैन और फिलेनथ्रोपिस्ट रतन टाटा के साथ काम करना हर कोई चाहता है। हर किसी का सपना होता है कि वह एक दिन रतन टाटा के साथ काम करे।

08:46 AM Nov 21, 2019 IST | Desk Team

भारत के लोकप्रिय बिजनेसमैन और फिलेनथ्रोपिस्ट रतन टाटा के साथ काम करना हर कोई चाहता है। हर किसी का सपना होता है कि वह एक दिन रतन टाटा के साथ काम करे।

भारत के लोकप्रिय बिजनेसमैन और फिलेनथ्रोपिस्ट रतन टाटा के साथ काम करना हर कोई चाहता है। हर किसी का सपना होता है कि वह एक दिन रतन टाटा के साथ काम करे। अपने आप में ही उपलब्धि है उनके साथ काम करना। यह भी सपने की ही तरह है जब रतन टाटा खुद आपको फोन करके साथ काम करने का ऑफर दें। 
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साथ ही आपको वही काम करने के लिए कहें जिसमें आपकी खुशी हो। इन दिनों शांतनु नायडू नाम के 27 साल के लड़के की कहानी सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल शांतुन की जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। फेसबुकर पर शांतुन ने अपनी सफलता की कहानी के बारे में बताया है। 
मुलाकात हुई थी 5 साल पहले

शांतनु की कहानी बुधवार को फेसबुक पर साझा हुई। 19 घंटों में ही शांतनु की इस पोस्ट को 20 हजार से ज्यादा लाइक्स मिले। 1.7k से ज्यादा यूजर्स ने इस पोस्ट को शेयर किया। शांतनु ने अपनी कहानी सुनाई और बताया कि पहली मुलाकात रतन टाटा से उनकी 2014 यानी 5 साल पहले हुई थी। 
जिम्मा उठाया आवारा कुत्तों की जान बचाने का 

शांतनु ने बताया कि सड़क पर आवारा कुत्तों की लगातार पांच साल पहले मौत हो रही थी जिसकी वजह से वह बहुत दुखी हो गए थे। इस पर कुछ करने के लिए शांतनु ने एक आइडिया सोचा। शांतनु ने इस पर काम करना शुरु किया। रिफ्लेक्टर लगे हुए कॉलर्स कुत्तों के गलों पर शांतनु ने लगाने शुर कर दिए। उन्होंने कुत्तों के गलों पर इसलिए इसे लगाया क्योंकि सड़क पर कुत्तों के होने की जानकारी दूर से ही ड्राइवर्स को पता चल जाए। शांतनु के इस काम की बहुत तारीफ हुई थी। इतना ही नहीं उनकी यह स्टोरी टाटा ग्रुप ऑफ कंपनीज के न्यूजलेटर में भी छापी गई। 
चिट्ठी का जवाब आया दो महीने बाद

शांतनु ने कहा कि मुझे मेरे पिता ने उसी वक्त कहा कि रतन टाटा को एक चिट्ठी मैं लिखूं, क्योंकि कुत्तों से बहुत प्यार रतन टाटा को भी है। मुझे शुरुआत में तो थोड़ी झिझक हुई थी। लेकिन उसके बाद मैंन चिट्ठी लिख दी। मुझे चिट्ठी का जवाब दो महीने बाद मिला था। जैसे ही चिट्ठी का जवाब आया मैं उस पर यकीन नहीं कर पा रहा था। रतन टाटा के मुंबई दफ्तर पर शांतनु कुछ दिन बाद मिले। रतन टाटा के साथ उनकी इस मुलाकात ने पूरी जिंदगी ही बदल दी। 
विदेश गए शांतनु मास्टर्स की डिग्री लेने

शांतनु ने आगे कहा कि उनके काम की तारीफ रतन टाटा ने की। रतन टाटा ने कहा था कि बहुत प्रभावित वह शांतनु के काम से हुए हैं। निवेश करने की बात उन्होंने शांतनु के फ्यूचर वेंचर में करने को कहा। रतन टाटा के कुत्तों से भी शांतनु मिले। विदेश शांतनु रतन टाटा से मिलने के बाद चले गए थे। हालांकि रतन टाटा से वादा किया शांतनु ने कि वह टाटा ट्रस्ट के लिए ही वह भारत वापस आकर काम करेंगे। 
रतन टाटा ने उस दिन किया फोन


शांतनु बताते हैं कि जैसे ही भारत मैं आया उनका फोन मुझे आ गया। उन्होंने मुझसे कहा कि बहुत सारा काम मुझे ऑफिस में करवाना है, क्या तुम मेरे असिस्टेंट बनोगे? यह किसी सपने से कम नहीं था शांतनु के लिए। एक बार तो शांतनु को बिल्कुल भी यकीन नहीं हुआ। उसके बाद गहरी सांस ली शांतनु ने और कहा, हां जरूर। 
एक टीम बनाकर 18 महीने से काम कर रहे हैं

टाटा ट्रस्ट के लिए पिछले 18 महीने से रतन टाटा के साथ शांतनु काम कर रहे हैं। शांतनु बताते हैं कि कई बार मुझे अभी भी यकीन नहीं होता है। ऐसा लगता है कि मैं सपना देख रहा हूं। अच्छे दोस्त और गुरु की तलाश में मेरी उम्र के लोग बहुत कुछ जीवन में झेलते हैं। मुझे ये सब मिला इसके लिए मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूं। सुपरह्यूमन से कम नहीं हैं रतन टाटा। 
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