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28 मई : मासिक धर्म और महिला स्वास्थ्य पर जागरूकता का प्रतीक

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस: जागरूकता से शर्म को दूर करें

08:51 AM May 28, 2025 IST | IANS

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस: जागरूकता से शर्म को दूर करें

28 मई   मासिक धर्म और महिला स्वास्थ्य पर जागरूकता का प्रतीक

हर वर्ष 28 मई को मनाया जाने वाला मासिक धर्म स्वच्छता दिवस महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वाभिमान को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता का प्रतीक है। डॉ. मीरा पाठक ने इस दिन के वैज्ञानिक महत्व और मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों पर प्रकाश डाला।

हर वर्ष 28 मई को जब दुनिया ‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस’ के रूप में इस दिन को मनाती है, तब यह केवल एक कैलेंडर तिथि नहीं रह जाती, बल्कि यह एक ऐसी मुहिम का प्रतीक बन जाती है जो महिलाओं के स्वास्थ्य, स्वाभिमान और स्वच्छता के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाने का प्रयास करती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि मासिक धर्म कोई शर्म का विषय नहीं, बल्कि जैविक सत्य है और इसके प्रति जागरूकता, समझ और स्वच्छता ही स्त्री सशक्तिकरण की बुनियाद है।

इस अवसर पर, समाचार एजेंसी आईएएनएस ने नोएडा स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, भंगेल की वरिष्ठ मेडिकल अधिकारी, डॉ. मीरा पाठक से विशेष बातचीत की। उन्होंने मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों, महिला स्वास्थ्य के विभिन्न चरणों और स्वच्छता से जुड़ी सावधानियों पर गहन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रकाश डाला।

‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ के बारे में बात करते हुए डॉ. पाठक ने बताया कि 28 मई को इस दिन के मनाने के पीछे एक प्रतीकात्मक महत्व है। मई वर्ष का पांचवां महीना होता है और मासिक धर्म की अवधि औसतन पांच दिन की होती है, वहीं एक सामान्य मासिक चक्र 28 दिनों का होता है। इसलिए 28 मई को यह दिन मनाकर समाज में मासिक धर्म से जुड़ी चुप्पी, शर्म और सामाजिक झिझक को दूर करने की कोशिश की जाती है।

उन्होंने सामान्य मासिक धर्म चक्र की जानकारी देते हुए कहा कि आमतौर पर 10 से 12 वर्ष की आयु में लड़कियों में पीरियड्स शुरू होते हैं। यदि आठ साल से पहले या पंद्रह साल के बाद तक पीरियड्स न आएं तो डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी होता है। मासिक चक्र की औसत लंबाई 28 दिन होती है, लेकिन यह 21 से 35 दिनों तक भिन्न हो सकती है। पीरियड्स की अवधि आमतौर पर पांच दिन होती है, जो दो से सात दिन तक भी हो सकती है। इस दौरान उपयोग किए जाने वाले पैड्स की संख्या और ब्लड फ्लो भी हर फीमेल में अलग-अलग हो सकता है।

मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रखना क्यों आवश्यक है, इस पर उन्होंने कहा कि यदि इस समय सफाई नहीं रखी जाती है तो फीमेल्स कई संक्रमणों की शिकार हो सकती हैं जैसे कि मूत्र मार्ग संक्रमण, प्रजनन तंत्र संक्रमण, फंगल संक्रमण, त्वचा पर रैशेज़ और खुजली। लंबे समय तक अनदेखी करने पर नलिकाएं ब्लॉक हो सकती हैं जिससे बांझपन और यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर तक होने की संभावना बढ़ जाती है।

डॉ. मीरा पाठक ने विभिन्न मासिक धर्म उत्पादों के उपयोग के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शहरी क्षेत्रों में सबसे सामान्य उपयोग होने वाला उत्पाद सैनिटरी पैड है, जिसे हर 4 से 6 घंटे में बदलना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में कॉटन पैड का प्रयोग होता है, जिसे साफ करना और धूप में सुखाना जरूरी होता है। टैम्पोन का इस्तेमाल आमतौर पर यौन रूप से सक्रिय महिलाएं करती हैं क्योंकि यह शरीर के भीतर डाला जाता है और लीक प्रूफ होता है, लेकिन इसे हर 3-4 घंटे में बदलना चाहिए और रातभर नहीं लगाना चाहिए। वहीं, मेंस्ट्रुअल कप पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है जिसे सही तरीके से उपयोग करने पर 8 से 10 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

उन्होंने मासिक धर्म स्वच्छता से जुड़ी सावधानियों पर बात करते हुए कहा कि कोई भी उत्पाद उपयोग करने से पहले और बाद में हाथ धोना जरूरी है। इस्तेमाल किए गए उत्पादों को सही तरीके से डिस्पोज करना चाहिए, जैसे कि अखबार में लपेटकर बंद डस्टबिन में डालना। इन सावधानियों से कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।

इसके बाद डॉ. मीरा पाठक ने ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस’ के अवसर पर महिला स्वास्थ्य के विभिन्न चरणों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महिलाओं के जीवन को तीन प्रमुख चरणों में बांटा जा सकता है, किशोरावस्था, प्रजनन काल और पेरिमेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति की पूर्व अवस्था)।

उन्होंने कहा कि किशोरावस्था (10 से 19 वर्ष) में लड़कियों को मासिक धर्म और यौन शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है। इस उम्र में मासिक धर्म अनियमित होना सामान्य है क्योंकि शरीर में हार्मोनल बदलाव हो रहे होते हैं, लेकिन यदि दो साल बाद भी अनियमितता बनी रहे तो डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है। इस उम्र में एनीमिया बहुत आम होता है, इसलिए आयरन, प्रोटीन और विटामिन सी से भरपूर आहार लेना जरूरी है। हरी पत्तेदार सब्जियां, दालें, दूध, अंडे, नींबू, संतरा आदि इसका अच्छा स्रोत हैं। साथ ही जीवनशैली में व्यायाम को शामिल करना भी आवश्यक है।

डॉ. मीरा पाठक ने कहा कि प्रजनन काल (20 से 40 वर्ष) के दौरान महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए वैक्सीन लगवानी चाहिए। 9 से 14 वर्ष की उम्र में दो डोज़ और 15 वर्ष की उम्र के बाद तीन डोज़ की आवश्यकता होती है। यदि महिला गर्भधारण की योजना बना रही हो तो मानसिक रूप से तैयार होकर डॉक्टर से सलाह लेकर फैमिली प्लानिंग करनी चाहिए। अगर गर्भधारण न हो तो सुरक्षित गर्भनिरोधक उपाय अपनाने चाहिए। यदि एक साल तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण नहीं होता है तो समय रहते बांझपन का इलाज कराना जरूरी है।

पेरिमेनोपॉज़ (40 वर्ष की आयु के बाद) के बारे में उन्होंने बताया कि इस समय महिलाओं को कम से कम एक बार डॉक्टर से चेकअप जरूर कराना चाहिए और सीबीसी, थायरॉइड, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल जैसे टेस्ट करवाने चाहिए ताकि किसी भी छिपे हुए मेडिकल डिसऑर्डर का समय रहते पता चल सके। इस उम्र में अनियमित मासिक धर्म को नजरअंदाज न करें क्योंकि यह कैंसर का संकेत हो सकता है। बोन हेल्थ कमजोर होने लगती है इसलिए कैल्शियम युक्त आहार लेना और नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। इस उम्र में हृदय संबंधी बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है, इसलिए हार्ट हेल्थ पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।

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