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बिहार के 65 लाख मतदाता !

04:38 AM Jul 27, 2025 IST | Aditya Chopra
बिहार के 65 लाख मतदाता
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के प्रथम दौर के बाद राज्य के लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से बाहर किये जा सकते हैं। देश और प्रदेश के विपक्षी दल मतदाता सूची पुनरीक्षण का भारी विरोध संसद से लेकर सड़क तक कर रहे हैं मगर चुनाव आयोग का कहना है कि एक निश्चित अन्तराल के बाद मतदाता सूची के सत्यापन करने का उसे अधिकार है जिससे यह पता चल सके कि चुनावों में फर्जी मतदाता वोट तो नहीं डालते हैं। बिहार में यह कार्य 22 साल बाद हो रहा है। पिछला पुनरीक्षण का कार्य 2003 में हुआ था। एक मायने में आयोग का कहना सही है कि मतदाता सूची में केवल भारत के जायज नागरिकों का नाम ही होना चाहिए क्योंकि संविधान मतदाता बनने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही देता है। सभी जानते हैं कि भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बंगलादेशियों की एक समस्या है। यह समस्या पिछले लम्बे अर्से से चली आ रही है। भारत में रोजगार की तलाश में आने वाले बंगलादेशी अपनी असली पहचान छिपा कर आधार कार्ड बनवा लेते हैं और अपना नाम मतदाता सूची तक में भी जुड़वा लेते हैं। इसके अलावा बिहार से रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने वाले बिहारियों की भी कमी नहीं है। इनमें से काफी बड़ी संख्या में बिहारी दूसरे राज्यों के स्थायी निवासी बन जाते हैं जिससे उनके नाम भी उस राज्य की मतदाता सूची में जुड़ जाते हैं। अतः भारत में दोहरे मतदाता कार्ड की भी समस्या है। इसके अलावा एेसा भी पाया जाता है कि जो लोग परलोक सिधार जाते हैं उनके नाम भी मतदाता सूची में दर्ज रहते हैं जिसकी वजह से फर्जी मतदाता मत डाल आते हैं।
चुनाव आयोग यदि इन सब विसंगतियों को दूर करने की कोशिश कर रहा है तो इसका विरोध क्यों किया जाना चाहिए? विपक्षी दलों का इसके विरोध में सबसे मजबूत तर्क यह है कि चुनाव आयोग ने बिहार में पुनरीक्षण का कार्य केवल एक महीने के भीतर ही 25 जुलाई तक कराया है। बिहार में कुल 7.8 करोड़ मतदाता हैं। एक महीने के भीतर इन सभी मतदाताओं तक पहुंचना बहुत मुश्किल कार्य है। फिर भी चुनाव आयोग ने यह कार्य किस प्रकार करा लिया। इस पर सभी को आश्चर्य है। चुनाव आयोग का कहना है कि उसने यह कार्य लगभग 78 हजार चुनावी बूथ स्तर के अधिकारियों की मदद से एक महीने के भीतर ही कराने में सफलता हासिल कर ली है। इस कार्य को करने के लिए बूथ स्तर के अधिकारियों पर राजनीतिक दलों के डेढ़ लाख से अधिक बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की भी नजर थी जो कि मतदाताओं के फार्म भरने में मदद कर रहे थे। चुनाव आयोग ने प्रत्येक मतदाता को एक फार्म भरने के लिए दिया था जिसमें उसका निजी विवरण पूछा गया था। पुनरीक्षण में पाया गया कि पुरानी मतदाता सूची के मुकाबले पुनरीक्षित सूची में आठ प्रतिशत के लगभग कम मतदाता वैध रूप में हैं। अवैध या सन्देहास्पद मतदाताओं की संख्या 65 लाख के करीब है जिनमें 22 लाख की मृत्यु हो चुकी है, सात लाख मतदाता एेसे हैं जिनके नाम दो राज्यों की मतदाता सूची में हैं और 35 लाख एेसे हैं जो अन्य राज्यों में स्थानान्तरित हो चुके हैं मगर उनका कुछ अता-पता नहीं है।
असल में भारत में यह समस्या बहुत सामान्य है क्योंकि किसी की मृत्यु के बाद भी परिवारजन उसका नाम मतदाता सूची से हटवाने की जहमत नहीं उठाते हैं। मगर चुनाव आयोग का भी यह फर्ज बनता है कि वह मतदाता सूची से सन्देहास्पद व्यक्तियों के नाम काटने का कार्य पूरी पारदर्शिता के साथ करे जिससे किसी को किसी प्रकार की आशंका न रहे। चुनाव आयोग पहली पुनरी​क्षित मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित कर देगा । इसके बाद 1 सितम्बर तक हरेक नागरिक को अधिकार होगा कि वह नाम काटे गये मतदाता के बारे में उसके वैध मतदाता होने का प्रमाण चुनाव आयोग को दे सके जिससे उसका नाम 30 सितम्बर को प्रकाशित होने वाली अन्तिम पुनरीक्षित सूची में जुड़ सके। इसे देखकर लगता है कि चुनाव आयोग सन्देहास्पद मतदाता को भी पूरा समय दे रहा है कि वह अपने वैध होने का प्रमाण प्रस्तुत कर सके। चुनाव आयोग का कहना है कि लगभग 7.23 करोड़ मतदाताओं ने अपने चुनावी फार्म उसके पास जमा किये। बाकी जिनके फार्म जमा नहीं हुए वे सभी सन्देहास्पद श्रेणी में डाले गये। इनमें से 22 लाख मतदाता मृतकों की सूची में हैं। केवल 1.2 लाख मतदाता ही एेसे हैं जिनके पास बूथ स्तर के अधिकारी नहीं पहुंच सके। इनके फार्म अगले एक महीने के भीतर जमा हो सकते हैं। इस प्रकार 99.8 प्रतिशत मतदाताओं का आंकड़ा चुनाव आयोग के पास पहुंच चुका है।
इस पूरी कवायद का मतलब यह भी निकलता है कि बिहार में 7.8 करोड़ मतदाता न होकर केवल 7.25 करोड़ के लगभग मतदाता हैं जिनमें फार्म न जमा करने वाले 1.2 लाख मतदाता भी शामिल हैं। मगर विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि यह सत्तारूढ़ दल भाजपा की साजिश है जो वह चुनाव आयोग के साथ मिलकर रच रहा है। इसी मुद्दे पर पूरे एक सप्ताह तक संसद का चालू सावन सत्र नहीं चल सका क्योंकि विपक्षी दल मांग कर रहे थे कि मतदाता पुनरीक्षण का काम बन्द किया जाये और चुनाव 2024 की उसी मतदाता सूची के अनुसार कराया जाये जिससे इस वर्ष में लोकसभा चुनाव हुए थे। इनका तर्क है कि जो सूची लोकसभा चुनावों में मान्य थी वह विधानसभा चुनावों में किस प्रकार अमान्य हो सकती है। सभी जानते हैं कि राज्य में विधानसभा चुनाव आगामी नवम्बर महीने में होने हैं।

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Aditya Chopra

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