आठवां वेतन आयोग
केन्द्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया…
केन्द्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। केन्द्रीय मन्त्रिमंडल की बैठक में इसका फैसला करके सरकार ने 48 लाख केन्द्रीय कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि का रास्ता अगले वर्ष 2026 से ही खोल दिया है। हर दस वर्ष बाद कर्मचारियों के लिए गठित होने वाले वेतन आयोग की सिफारिशें उनके जीवन को सुगम बनाने के लिए जरूरी होती हैं। वेतन आयोग गठित करने की परंपरा भारत के आजाद होते ही शुरू कर दी गई थी और पहला वेतन आयोग 1947 में ही गठित कर दिया गया था। वेतन आयोग कर्मचारियों की न्यूनतम व अधिकतम वेतन राशि समयानुसार तय करता है और अगले दस वर्षों के आर्थिक मानकों को ध्यान में रखकर यह कार्य करता है। इसमें सबसे प्रमुख सरकार के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का वेतन निर्धारित करने का होता है क्योंकि इस वर्ग के कर्मचारीगण न्यूनतम वेतन से अपने जीवन की गाड़ी खींचते हैं। अतः वेतन आयोग जो वेतन सीमा निर्धारित करता है उसका देश की अर्थव्यवस्था से सीधा लेना-देना होता है।
आज की पीढ़ी को आश्चर्य हो सकता है कि प्रथम वेतन आयोग ने चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का वेतन 55 रुपये तय किया था। मगर उस समय सोने का भाव मात्र 70 रुपये प्रति तोला के करीब था। वर्तमान में केन्द्र सरकार के एक चपरासी का मूल वेतन 18 हजार रुपये प्रतिमाह है जबकि सोने की कीमत 70 हजार रुपये प्रति दस ग्राम के बराबर है। अतः हम आसानी से अन्दाजा लगा सकते हैं कि भारत में रुपये की कीमत में कितनी और किस हद तक गिरावट आ चुकी है। भारत जब आजाद हुआ था तो रुपये की कीमत पौंड के बराबर थी। अर्थात एक रुपये में ब्रिटेन की मुद्रा पौंड को खरीदा जा सकता था। आजादी के समय भारतीय मुद्रा रुपये की कीमत पौंड के बराबर रखकर ही अंग्रेजों ने भारत से विदा ली थी। बाद में पौंड और डाॅलर की आपसी विनिमय दर के चलते रुपये की कीमत भी डाॅलर के मुकाबले तय होने लगी थी। आजकल एक डाॅलर की कीमत 86 रुपये से भी ऊपर है और सोने की कीमत 70 हजार रुपये प्रति दस ग्राम है। 1991 से पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था नियन्त्रित अर्थव्यवस्था थी मगर इसके बाद से यह बाजार मूलक हो गई जिसकी वजह से बाजार की शक्तियां विभिन्न वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने लगीं। अतः वर्तमान में इन्हीं शक्तियों का ध्यान रखते हुए आठवें वेतन आयोग को कर्मचारियों का वेतन अगले दस वर्षों के लिए तय करना पड़ेगा। समझा जा रहा है कि नवनिर्मित होने वाला आयोग चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी का वेतन 18 हजार से बढ़ा कर 34 हजार रुपये मूल वेतन तय करेगा जिससे इस वर्ग के कर्मचारी का जीवन सुगमता से चल सके।
वेतन आयोग दस वर्षों के दौरान बढ़ने वाली संभावित महंगाई को भी ध्यान में रखता है और व्यवस्था करता है कि हर वर्ष महंगाई भत्ते की दर भी समयानुसार बढ़ाई जा सके। वेतन आयोग की सिफारिशें जब लागू होती हैं तो बाजार में हर मोर्चे पर रौनक आती है। परन्तु इसकी वजह से महंगाई भी बढ़ जाती है अतः सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि महंगाई में ज्यादा वृद्धि न हो पाये । परन्तु बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में बहुत से आर्थिक अव्यव सरकार के हाथ में भी नहीं होते हैं। सातवें वेतन आयोग ने उच्चस्थ पदों जैसे सचिव स्तर का मूल वेतन ढाई लाख रुपये प्रतिमाह तय किया था। मगर पिछले दस वर्षों में महंगाई की दर को देखते हुए अब यह मूल वेतन साढ़े चार लाख रुपये प्रतिमाह तय किया जा सकता है। इस प्रकार न्यूनतम वेतन 34 हजार से शुरू होकर साढे़ चार लाख रुपये प्रतिमाह तक जायेगा जिससे बाजार में रोकड़ा की आवक बढे़गी जो महंगाई दरों पर प्रभाव डालेगी। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का असर निजी क्षेत्र पर भी पड़े बिना नहीं रह सकता है। इस क्षेत्र में कार्यरत कम्पनियों या फर्मों के कर्मचारियों का वेतन भी इसी के अनुरूप बढ़ता है जो कि बहुत स्वाभाविक प्रक्रिया है। केन्द्र ने आठवां वेतन आयोग गठित करने की मंजूरी एेसे समय दी है जबकि राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसका असर चुनावों पर कितना पड़ेगा? इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है । सेवारत कर्मचारियों के अलावा पेंशनधारी सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी इसका सीधा लाभ होगा जिनकी संख्या 68 लाख के करीब है। इन निवृत्त कर्मचारियों की पेंशन भी इसी के अनुरूप बढे़गी। जब 2016 में सातवां वेतन आयोग लागू किया गया था तो सरकारी खर्च में एक लाख करोड़ रुपये के लगभग वृद्धि हुई थी। आठवां वेतन आयोग अपनी रिपोर्ट इसी चालू वर्ष 2025 में सरकार को दे देगा जिससे 1 जनवरी, 2026 से यह लागू किया जा सके।
देखना होगा कि सरकार इस समय सारिणी का अनुपालन कैसे करेगी मगर इतना निश्चित है कि आयोग के गठन से कर्मचारियों को नया वेतन आयोग गठित करने के लिए किसी प्रकार का आन्दोलन नहीं करना पड़ेगा। भारत में कई मौकों पर वेतन आयोग गठित करने की मांग को लेकर कर्मचारियों को आन्दोलन भी करना पड़ा है। मगर इस बार सरकार ने ही पहल करके नये वेतन आयोग के गठन की घोषणा की है। यदि 1 जनवरी, 2026 से आठवें वेतन आयोग की सिफारिश की जाती हैं तो सरकार का खर्च कम से 2016 के मुकाबले दुगना हो जायेगा। मगर कर्मचारियों की जीवन की जरूरतों को देखते हुए इसे अधिक भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि सरकारी कर्मचारी भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत आम जनता के लिए सरकार का पहला चेहरा होते हैं और इनकी कार्यक्षमता व दक्षता से ही सरकार की छवि बनती है। प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने में इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। अतः इनका सन्तुष्ट होना लोकतन्त्र में बहुत महत्वपूर्ण होता है।