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चमकी बुखार से नौ दिनों में 97 मासूमों की मौत

बस एक ही प्रार्थना है कि उनका बच्चा जल्द ठीक हो जाए, लेकिन दूसरी ओर बुखार रूपी मौत का पंजा बच्चों पर कसता ही जा रहा है।

04:08 PM Jun 17, 2019 IST | Desk Team

बस एक ही प्रार्थना है कि उनका बच्चा जल्द ठीक हो जाए, लेकिन दूसरी ओर बुखार रूपी मौत का पंजा बच्चों पर कसता ही जा रहा है।

मुजफ्फरपुर : उठ मेरे लाल…! उठ..! तू क्यों कुछ नहीं बोलता? ये वेदना है उस मां की जिसके बेटे को चमकी बुखार-एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम ने निगल लिया। बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चे लगातार दिमागी बुखार का लगातार शिकार हो रहे हैं। 7 जून से लेकर अब तक 97 से ज्यादा मासूमों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। कोई इसकी वजह लीची बता रहा है तो कोई दूसरी वजह बता रहा है।
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मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में अपने बच्चों को खो चुकी मांओं की दहाड़ सुनकर लोगों का कलेजा फटा जा रहा है। खो चुके बच्चों की माएं दहाड़ मार कर रो रही हैंए तो उनके पिता और परिजन उन्हें ढांढस बंधा रहे हैं। औलाद को खोने का घाव कितना गहरा होताए, उसका दर्द कितना असहनीय होता हैए ये तो कोई पीडि़त मां.बाप ही जानें! रोने, बिलखने, तड़पने, हांफने, कांपने और रोने की ये तस्वीरें चुभती हैं और जैसे कई सवाल पूछ रही हों कि क्यों एक दशक से ज्यादा समय के बाद बिहार एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को मात नहीं दे सका? क्यों आज भी इसके सामने प्रशासन बेबस नजर आ रहा है?
वहीं, इतने बच्चों की मौत के बाद भी प्रशासन को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वजह से बच्चों की मौत हुईं? सवाल के जवाब पर वे चुप हैं। इस बीचए केंद्र सरकार को भी होश आया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन रविवार को मुजफ्फरपुर के दौरे पर पहुंचे। इस दौरान हर्षवर्धन ने कहा कि बीमारी की पहचान करने के लिए शोध होना चाहिए, जिसकी अभी भी पहचान नहीं है और इसके लिए मुजफ्फरपुर में शोध की सुविधा विकसित की जानी चाहिए।
मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के कारण भयावह स्थिति बनी हुई है। आलम ऐसा है कि अस्पताल में एक ही बेड पर दो बच्चों का इलाज हो रहा है। हॉस्पिटल में जिधर देखो उधर चमकी बुखार से पीडि़त बच्चे ही बच्चे नजर आ रहे हैं और उनके साथ उनकी माएं बैठी हुई हैं। नम आंखों में बस एक ही प्रार्थना है कि उनका बच्चा जल्द ठीक हो जाए, लेकिन दूसरी ओर बुखार रूपी मौत का पंजा बच्चों पर कसता ही जा रहा है।
अस्पताल में डॉक्टरों की टीम बीमार बच्चों पर जरूरी दवाएं और ग्लूकोज चढ़ा रहे हैं। इस दौरान मां-बाप अपने-अपने बच्चों की तीमारदारी में लगे हुए हैं। लेकिन जब उनके बगल के बेड पर भर्ती किसी बच्चे की सांसें थमती हैं तो उन्हें भी अपने बच्चे के बिछड़ जाने का डर सताने लगता है। वो मन ही मन ईश्वर से अपने बच्चे के ठीक होने की प्रार्थना करते हैं।
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