चारों ओर जहरीले बयानों की बारिश
04:00 AM Sep 29, 2025 IST | Dr. Chander Trikha
बिहार में जहर की बारिश, पंजाब में जहर की बारिश, लेह-लद्दाख में जहर की बारिश, उत्तर प्रदेश में जहरीली बारिश। इन जहरीली बारिशों और कूड़े के पहाड़ों का कोई अंत नहीं। सत्य और तथ्य इन दिनों या तो आप ‘आईसीयू’ में हैं या ‘वेंटिलेटर’ पर।
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मर्यादाएं, आचार संहिताएं, सभ्य आचरण और सभ्य भाषा, सब ‘डायलिसिस’ पर हैं। कहीं कुछ भी तो ऐसा नहीं है, जहां खुले में स्वस्थ सांस ली जा सके।
‘एआई (ऑफिशियल इंटेलिजेंस)’ अर्थात ‘कृत्रिम बुद्धिमता’ के इस युग में सत्य व तथ्य को जीवित तलाश करना फिलहाल नामुमकिन है। इस सृष्टि का जो सिलसिला महाप्रलय या ‘ब्लैक होल’ से शुरू हुआ था, अब भी कमोबेश वहीं टिका है।
दुष्यंत की एक काव्य पंक्ति है
‘आप बचकर चल सके
ऐसी कोई तसूरत नहीं
रास्ता घेरे हुए मुर्दे
खड़े हैं बेशुमार’
वस्तुत: जिस तरह ‘कृत्रिम बुद्धिमता धीरे-धीरे हमारी सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक जिंदगी में प्रवेश करती जा रही है, हमारी हर सोच पर ‘एआई’ का कब्जा होने लगा है।’
हाल ही में वित्तमंत्री सीता रमण को ‘क्वेंटम एआई’ के माध्यम से जिस रूप में प्रस्तुत किया गया, वह इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में यह ‘एआई’ चुनाव भी लड़ेगा। ‘चैनल’ भी चलाएगा, प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं डिजीटल मीडिया भी चलाए।
इस समय विश्व की लगभग आधी आबादी ‘सोशल मीडिया’ से जुड़ी ह़ुई है। अब स्थिति यह है कि सत्ता पक्ष व विपक्ष की अधिकांश चुनावी-मशीनरियां ‘एआई’ के उपकरणों में प्रशिक्षित हो रही हैं।
नए ‘चुनावी-वाररूम’ अब नेता लोगों की ‘आवाज’ के नमूने एकत्र करने में लगे हैं। यह सारी प्रक्रिया कितनी खतरनाक सिद्ध हो सकती है, इसका सही-सही अनुमान लगाना हो तो ‘एआई’ को करीब से समझना पड़ेगा।
कल्पना करें कि विपक्ष के किसी एक दल के ‘एआई’ विशेषज्ञों के पास सत्तापक्ष के किसी प्रमुख नेता की ‘आवाज’ का ‘सैम्पल’ है। उसी ‘सैम्पल’ के आधार पर विपक्षी दल के एआई विशेषज्ञ एक ऐसी ‘स्क्रिप्ट’ या ऐसा बयान तैयार कर सकते हैं जो प्रकट होने में पूरी तरह वास्तविक लगेगा। मगर उसमें दर्ज बयान, अपने ही पक्ष के विरुद्ध नए बवंडर खड़े कर सकते हैं। हाल ही में वित्तमंत्री श्रीमती सीता रमण की आवाज व उनके अंदाज में एक ऐसी योजना घोषित की गई, जो वस्तुत: सरकारी नीति का कोई अंग नहीं है। इसमें वित्तमंत्री एक ‘एप’ पर 21 हजार रुपए की राशि जमा कराने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही दिखाई पड़ती हैं जो जमाकर्ता को आनन-फानन में लखपति बना देगा।
साहित्य में एआई की चुनौती : ‘डेथ ऑफ एन ऑथर’ यानी एक लेखक की मौत। वर्ष 2023 में आए ‘एडन मार्शीन’ के इस उपन्यास ने दुनिया भर के साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी, क्योंकि इस उपन्यास का 95 फीसदी हिस्सा ‘जेनरेटिव एआई टूल’ यानी चैटजीपीटी की मदद से लिखा गया था। इसी प्रकार जापान में उभरते हुए लेखकों को दिया जाने वाला प्रतिष्ठित अकुतागावा पुरस्कार 2024 में एक ऐसे उपन्यास को दिया गया जिसका थोड़ा हिस्सा एआई टूल चैटजीपीटी की मदद से लिखा गया था। इस उपन्यास का नाम है ‘द टोक्यो टॉवर ऑफ सिंपथी’ और इसकी लेखिका हैं री कुडन। कुछ लोगों ने इसे लेखक की प्रयोगशीलता माना तो कुछ अन्य लोगों ने इसे मौलिकता की क्षति के रूप में परिभाषित किया। इन घटनाओं के सामने आते ही यह बहस छिड़ गई कि लेखन की दुनिया में कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस अथवा एआई) की क्या भूमिका हो सकती है और क्या यह वाकई रचनात्मकता की दृष्टि से वास्तविक लेखकों जैसी रचनाएं प्रस्तुत कर सकता है। हिंदी का साहित्य जगत भी पीछे नहीं रहा और साहित्यिक पत्रिका वनमाली में लेखक अमित श्रीवास्तव की एआई की सहायता से लिखी गई एक कहानी प्रकाशित की गई। कहानी का शीर्षक था- आला बाला मकड़ी का जाला। इस कहानी के बारे में लेखक अमित श्रीवास्तव कहते हैं, इस कहानी को लिखने के पहले मैंने चैटजीपीटी को अपनी कुछ रचनाएं दी थीं जिनको समझकर उसने कहानी की भाषा विकसित की। इसे लिखने के लिए मुझे कुछ प्रॉम्प्ट भी देने पड़े।’
लेखक का अनुभव यह रहा कि पूरी कहानी लिखने के बजाय किसी चरित्र को विकसित करने में, किसी पात्र की कहानी बुनने में, संवाद लिखने में या कहानी को कोई मोड़ देने में इसका बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आप एआई को अच्छे तरीके से कोई प्रॉम्प्ट देते हैं तो कई बार बहुत चौंकाने वाले परिणाम सामने आते हैं। मुझे लगता है कि यह माध्यम ढेरों संभावनाओं से भरा हुआ है और आने वाले समय में इसका बहुत बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।
इन रचनाओं के लिए एआई (चैटजीपीटी या अन्य) जो वाक्य रचते हैं वे हमारी भाषाओं में रची गई उन अनगिनत पुस्तकों, लेखों तथा अन्य रचनाओं से लिए जाते हैं जो इंटरनेट पर मौजूद हैं। यह जो वाक्य पैराग्राफ या लेख लिख पाता है वह केवल इसलिए संभव हो पाते हैं कि वे इंटरनेट पर पहले से मौजूद हैं। यही इसकी ताकत भी है और इसकी कमजोरी भी।
कैसे लिखते हैं एआई टूल्स : चैटजीपीटी या अन्य एआई टूल्स का लेखन दरअसल हम सभी के लेखन से बना है। हमारे द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से या अन्य तरीकों से जो भी लिखित सामग्री इंटरनेट पर डाली जाती है, एआई टूल्स उन सभी को एकत्रित करके उसका इस्तेमाल करते हैं। मिसाल के तौर पर चैट जीपीटी लार्ज लैंग्वेज मॉडल यानी एलएलएम का इस्तेमाल करते हुए एकत्रित आंकड़ों का अध्ययन करता है और इस प्रकार वह अपने दम पर नई बात लिखने की क्षमता अर्जित करता है। इस प्रकार वह एक प्रकार के मशीनी लेखक की भूमिका निभाता है।
एक प्रमुख प्रकाशक का कहना है कि यह सही है कि हिंदी के कुछ लेखकों ने अपनी कहानी या अपनी रचना का ढांचा खड़ा करने के लिए एआई का प्रयोग किया है लेकिन निकट भविष्य में हिंदी साहित्य पर एआई के उपयोग या एआई के लेखन का कोई तात्कालिक प्रभाव या कोई तात्कालिक संकट नहीं नजर आता है। इसकी मुख्य वजह है मानव व्यवहार की अनिश्चितता और अपनी संवेदनाओं को अलग-अलग शब्द देने की उसकी क्षमता। उदाहरण के लिए मुझे यह भी दावा किया जा रहा है कि एआई कभी भी फणीश्वरनाथ रेणु या कहें गीतांजलि श्री जैसे लेखकों के शब्दों, उनके मुहावरों को दोहरा सकता है। फिलहाल तो वह केवल मानक शब्दों का ही प्रयोग करता दिखता है। एक युवा आलोचक के अनुसार, यह भी संभव है कि लेखक तथा अन्य रचनात्मक लोग खुद लिखने के स्थान पर अपने काम के कुछ हिस्से को इन एलएलएम से कराना शुरू कर दें। दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि अच्छे लेखक अपनी लिखी हुई सामग्री को जल्दी इंटरनेट पर जारी होने देने से बचना आरंभ कर दें, क्योंकि यह सामग्री इंटरनेट पर जाते ही चैटबोट के डेटा सेट का हिस्सा बन जाएगी और परोक्ष रूप से वास्तविक मौलिक लेखन के विरुद्ध जाएगी।
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