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साफ-सुथरी वोटर लिस्ट ही निष्पक्ष चुनाव की गारंटी

05:00 AM Sep 16, 2025 IST | Rohit Maheshwari

बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण यानी एसआईआर का काम पूरा होते ही चुनाव आयोग अब बिहार की तर्ज पर देशभर में एसआईआर कराएगा। इसकी शुरुआत अक्तूबर के पहले हफ्ते से हो सकती है। चुनाव आयोग ने बीते दिनों सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारियों के साथ चर्चा में एसआईआर से जुड़ी तैयारियों को जांचा। साथ ही बिहार में कराए गए एसआईआर के दौरान दिए गए दिशा-निर्देशों का बारीकी से अध्ययन करने के निर्देश दिए। एसआईआर पर विपक्ष लगातार विरोध जता रहा है। संसद के मानसून सत्र में सड़क से लेकर सदन तक एसआईआर का विपक्ष ने जमकर विरोध किया। विपक्ष के विरोध के बावजूद चुनाव आयोग ने एसआईआर का काम रोका नहीं। बिहार में एसआईआर का काम इसी महीने 30 सितंबर को पूरा रहा है। इस दिन बिहार की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित हो जाएगी। एसआईआर का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना और चुनाव आयोग को दिशा-निर्देश भी दिए।

एसआईआर पर विपक्ष का विरोध समझ से परे है। आाखिरकार अयोग्य मतदाताओं को वोटर लिस्ट में रखने का क्या औचित्य है? अगर फर्जी, डुप्लीकेट या मृत नागरिकों का नाम वोटर लिस्ट से हटा देने में बुराई क्या है? क्या राजनीतिक दल नहीं चाहते कि लोकतंत्र मजबूत हो। चुनाव निष्पक्ष और साफ-सुथरी वोटर लिस्ट के जरिये हों। आखिरकार विपक्ष का दर्द समझ से परे है। जो भी हो, आवश्यकता इस बात की है कि यह अभियान प्रभावी ढंग से चलाया जाए, भले ही इसमें कुछ विलंब हो। बिहार के अनुभव ने इस आवश्यकता पर और अधिक बल दिया है कि पूरे देश में मतदाता सूचियों का सत्यापन होना चाहिए। सच तो यह है कि यह कार्य एक निश्चित अंतराल के बाद होते ही रहना चाहिए। यह ठीक नहीं कि बिहार में 2003 के बाद अब जाकर मतदाता सूची के सत्यापन करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकी। चुनाव आयोग को देशव्यापी एसआईआर करते समय इसके लिए भी तैयार रहना होगा कि उसे विपक्षी दलों और साथ ही स्वयं को लोकतंत्र का स्वयंभू पैरोकार बताने वाले लोगों के विरोध और दुष्प्रचार का सामना करना पड़ सकता है।

इसमें दो राय नहीं कि देश में पड़ोसी देशों के नागरिकों की बड़े पैमाने पर घुसपैठ गाहे-बगाहे होती रही है। कुछ लोग बेहतर भविष्य की तलाश में गैर-कानूनी तरीके से भारत में घुस आते हैं। फिर कतिपय वोट बैंक के ठेकेदारों, दलालों व भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से जाली कागजात बनवाकर वोट डालने के अधिकारी बन जाते हैं। निस्संदेह, यह गैर-कानूनी है और इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगना ही चाहिए। ऐसे में दो राय नहीं हो सकती है कि मतदाता सूची में त्रुटियों और विसंगतियों को दूर करने करने के लिये तथा अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर मतदाता सूचियों में संशोधन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग को एसआईआर की प्रक्रिया आगे बढ़ाने में सत्तारूढ़ दल के असहयोग के साथ अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है। एक बड़ी चुनौती उन दस्तावेजों के सत्यापन की हो सकती है, जिनके आधार पर कोई अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा तय किए गए दस्तावेजों में आधार को भी शामिल कर लिया है और यह किसी से छिपा नहीं कि बंगाल में सर्वाधिक नकली अथवा फर्जी दस्तावेजों के सहारे आधार से लैस लोगों की संख्या सबसे अधिक होने की आशंका है।

यह कोई हैरानी की बात नहीं कि बंगलादेश से अवैध तरीके से आए लोगों ने मतदाता पहचान पत्र के साथ आधार और अन्य अनेक वे दस्तावेज हासिल कर लिए हैं, जिनसे सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया जा सकता है और साथ ही खुद को भारतीय नागरिक बताया जा सकता है। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कि अभारतीय नागरिक फर्जी प्रमाण पत्रों अथवा गलत जानकारी के आधार पर भारतीय नागरिक होने के पहचान पत्र हासिल कर लें और अंततः मतदाता भी बन जाएं। ऐसे लोग केवल भारतीय लोकतंत्र के साथ छल करने वाले ही नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी हो सकते हैं। कोई भी चुनाव हो, उसमें मतदान करने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही मिलना चाहिए। निस्संदेह, राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता सूचियों में संशोधन अपरिहार्य है लेकिन इसके साथ ही यह प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और सरल होनी जरूरी है। जिसमें वास्तविक नागरिकों के हितों तथा चिंताओं को प्राथमिकता दी जाए। इसके अलावा दिक्कत राजनीतिक दलों के मुखर विरोध की भी है। खासकर विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में एसआईआर क्रियान्वयन तो और ज्यादा मुश्किल होगा।

हाल के वर्षों में देखा गया है कि सीमावर्ती राज्यों में अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिये राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता विदेशी नागरिकों के जरूरी कागजात बनवाने में गुरेज नहीं करते। यह भी हकीकत है कि चुनाव आयोग को विश्वास की कमी को पाटने के लिये सभी हितधारकों को एक साथ लाने और इस धारणा को दृढ़ता से दूर करने की आवश्यकता होगी कि उसकी इस कार्रवाई से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर केंद्र के सत्तारूढ़ दल को लाभ नहीं पहुंचता है। बीते अगस्त में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल के नेता बिहार के सासाराम में चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाते हुए एक रैली को संबोधित कर रहे थे। इसके कुछ ही मिनटों के बाद सासाराम से क़रीब 900 किलोमीटर दूर देश की राजधानी दिल्ली में चुनाव आयोग की तरफ से इन आरोपों पर जवाब देने के लिए एक प्रेस कान्फ्रैंस की गई। राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी और चुनाव आयोग मिलकर ‘वोट चोरी’ कर रहे हैं और ‘बिहार में एसआईआर वोट चोरी करने की कोशिश’ है।

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