तलाकशुदा मां के साथ रह रही बेटी भी ले सकेगी पेंशन, इलाहाबाद ने सुनाया अहम फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, तलाकशुदा मां की बेटी को मिलेगी पेंशन
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मां के साथ रह रही बेटी को पारिवारिक पेंशन मिल सकती है, अगर उसकी बड़ी बहन को नौकरी मिल जाती है. स्वाति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि स्वाति का दावा सही पाया जाए, तो उसे दो महीने के अंदर पेंशन का लाभ दिया जाए.
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. कोर्ट के अनुसार, अगर पिता की मृत्यु के बाद पारिवारिक पेंशन किसी बेटी को मिल रही है और वह नौकरी पर लग जाती है, तो यह पेंशन उस बहन को दी जानी चाहिए जो तलाकशुदा मां के साथ रह रही है. यह आदेश, न्यायमूर्ति अजित कुमार ने याची स्वाति की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला मेरठ की रहने वाली स्वाति नाम की युवती का है. स्वाति के पिता, गोपाल कृष्ण, मेरठ के जिला निर्वाचन कार्यालय में चपरासी के पद पर कार्यरत थे. उनका निधन 15 मार्च 2011 को हो गया था. वहीं माता-पिता का तलाक साल 2001 में हो चुका था.
बड़ी बहन को मिली नौकरी और पेंशन
इस दौरान पिता की मृत्यु के बाद बड़ी बहन चारु, जो पिता के साथ रहती थीं, को पारिवारिक पेंशन मिलने लगी. वर्ष 2013 में चारु को पिता की जगह अनुकंपा के आधार पर कनिष्ठ लिपिक की नौकरी मिल गई. इसके बाद उनकी पेंशन बंद कर दी गई. ऐसे में स्वाति, जो अब भी अविवाहित है और अपनी तलाकशुदा मां व छोटे भाई के साथ रहती है, उसने कोर्ट से गुहार लगाई कि अब वह पेंशन की हकदार है क्योंकि बड़ी बहन नौकरी पर लग चुकी है.
बार बालाओं के साथ अश्लील डांस करने वाले बब्बन सिंह पर बड़ा एक्शन, BJP ने पार्टी से निकाला
शासनादेश का हवाला
बता दें, कि राज्य सरकार के 16 मई 2015 के शासनादेश में यह स्पष्ट किया गया है कि अविवाहित बेटियां पारिवारिक पेंशन की हकदार हो सकती हैं. सरकारी वकील ने भी कोर्ट में इस बात का समर्थन किया कि मामले की जांच की जानी चाहिए. इस दौरान न्यायमूर्ति अजित कुमार ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि यदि याची स्वाति का दावा सही पाया जाए और कोई तकनीकी बाधा न हो, तो दो महीने के अंदर उसे पेंशन का लाभ दिया जाए.
एक महत्वपूर्ण कदम
कोर्ट द्वारा लिए गया ये फैसला उन परिवारों के लिए एक राहत भरी खबर है, जहां माता-पिता के बीच तलाक हो चुका हो और बच्चे मां के साथ रह रहे हों. कोर्ट का यह निर्णय महिला अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक सराहनीय पहल माना जा रहा है.