आओ प्रण करें कोई भूखा न सोये...
NULL
एक मां होने के नाते मेरे पास शब्द नहीं जुड़ पा रहे कि हमारा कैसा देश, कैसी राजधानी और कैसा शहर जहां तीन नाबालिग बच्चियों ने भूख के कारण दम तोड़ दिया या हो सकता है कि ऐसा दवाई के कारण हुआ हो , 2-3 दिन में आरोप-प्रत्यारोप ही देख रही हूं कि कोई इसे सरकार की विफलता बता रहा है तो कोई सिस्टम की। सारे राजनीतिक दल अपने-अपने बयान दे रहे हैं। मैं तो सबको हाथ जोड़कर प्रार्थना करूंगी कि यह समय यह देखने का है कि यह बच्चियां तो चली गईं, समाज, सरकार को संदेश दे गईं कि अब तो देख लो कि कोई और बच्चे या व्यक्ति भूख के कारण न चले जाएं। मैं मानती हूं कि ‘नानक दुखिया सब संसार।’ बुजुर्गों और बेटियों का काम करते यही जाना है कि हरेक को कोई न कोई पीड़ा-दुःख है परन्तु भूख की पीड़ा, उफ! मैं तो हमेशा कहती हूं और ईश्वर से मांगती हूं कि काश! मुझे कोई जादू की छड़ी मिल जाए जिससे मैं सबके दुःख दूर कर सकूं। अश्विनी जी बार-बार मुझे प्रेरित कर रहे हैं कि किरण कुछ ऐसा करो जैसे करनाल में निर्मल कुटिया चलती है। करनाल का कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोता।
भूख से बच्चियों की मौत ने सचमुच एक ऐसे पहलू से पर्दा उठाया है जो इंसान को सावधान कर रहा है कि वह पहले इंसानियत का रिश्ता निभाना सीखे। इन बच्चियों की तबियत खराब होने के बारे में इन बच्चियों के पिता मंगल के दोस्त नारायण ने सबसे पहले जानकारी ली और उन्हें अस्पताल पहुंचाया। तीनों बच्चियां केवल खांसती ही रहती थीं जिन्हें डॉक्टरों ने दवा पिलाई लेकिन उनके अंदर अन्न का एक दाना तक नहीं गया था और पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सारा राज खोल दिया। किराए पर रहने वाला यह दंपति लोगों के रहमो-करम पर जीवित था। घर का मालिक मंगल रिक्शा चलाने का काम करता था, गरीब परिवार था परंतु उसने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। अमीर के सौ साथी होते हैं परंतु मंगल का तो कुछ दिन पहले रिक्शा भी लूट लिया गया था। अब पूरी दिल्ली, अनेक अधिकारी और नेता लोग भले ही हमदर्दी की बात कर लें, लेकिन यह सच है कि देश की राजधानी में तीन बच्चियां अकारण मौत का ग्रास बन गईं।
घटना के पहलू से हटकर इसी दिल्ली में मैंने अनेक मंदिरों, अनेक घरों और अनेक सामाजिक संगठनों के दफ्तरों के बाहर आए दिन भंडारे होते देखे हैं। गरीबों को भोजन देने का दावा करने वाले और महज दो-चार हजार रुपए का दान देकर अपने बारे में प्रचार करने वालों की कोई कमी नहीं है लेकिन इंसानियत के नाम पर जिसे सबसे ज्यादा जरूरत है उसकी मदद करने वाले लोग कम ही दिखाई देेते हैं। सच बात तो यही है कि ये लोग जानते ही नहीं कि इंसानियत और परोपकार किसे कहते हैं। मैं खुद एक वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब चलाती हूं। हमारा एक ही मकसद है कि बुजुर्गों का सम्मान बने रहना चाहिए और बुजुर्गों के सम्मान को उनके अपने ही ठेस पहुंचाते हैं तो हम उन्हें इस गम को भुलाने का प्रयास करते हैं। इस कोशिश में सैकड़ों बुजुर्ग हमने एडॉप्ट भी कर रखे हैं।
मैं सबसे प्रार्थना करती हूं कि अपने आसपास सब देखें। अगर ऐसा कोई व्यक्ति स्पेशियली बच्चे नजर आते हैं या परिवार नजर आते हैं तो उन्हें पास के गुरुद्वारे भेजें। हर गुरुद्वारे में लंगर का प्रबंध है और चाहे बंगला साहिब हो, तिलकनगर गुरुद्वारा या कोई और, हर जगह लंगर की व्यवस्था है और वहां कोई फर्क भी नहीं। सभी जाति-धर्म, गरीब-अमीर सभी लोग लंगर खाते हैं। मेरी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके से अभी बात हुई। 10 ऐतिहासिक गुरुद्वारों में लंगर-प्रसाद चलता है आैर 200 सिंह सभाओं में भी लंगर-प्रसाद होता है। दूसरा मेरे भाई तुल्य राजकुमार भाटिया सब्जी मंडी वाले और सुधीर जी ने रोटी बैंक खोला है। उन्हें प्रार्थना की जा सकती है कि वह इस काम को आैर फैलाएं या आज से मैं प्रण लेती हूं कि उनके साथ मिलकर एक सप्ताह के अन्दर केसरी रोटी क्लब खोलूंगी जो वरिष्ठ नागरिक संस्था के अंतर्गत चलेगा और पहले सारी दिल्ली में काम करेगा फिर कोशिश करेंगे कि इन्हें आैर प्रदेशों में भी ले जाया जाए क्योंकि अमीरी-गरीबी को हम कर्मों का फल कह सकते हैं परन्तु इन्सान और इन्सानियत तो हम खुद ही स्थापित कर सकते हैं। राजकुमार भािटया जी से अभी-अभी बात हुई तो उन्होंने झट से कहा कि दीदी इसी सप्ताह से पंजाब केसरी से शुरूआत हो जाएगी।
शुरूआत हमारा पंजाब केसरी परिवार करेगा। पंजाब केसरी परिवार (ऑफिस) का एक-एक व्यक्ति अपने घर से दो रोटियां चुपड़ी हुई (घी लगा हुआ या परांठी) अचार के साथ लाएगा। उसे बॉक्स में रखा जाएगा आैर कोई भी व्यक्ति जो भूखा है उसे लेकर खा सकता है और गुरुवार यानी 2 अगस्त को राेटी बैंक के राजकुमार भाटिया और कुछ सामाजिक लोगों के साथ और जो भी व्यक्ति इसमें आना चाहे सुबह 10 बजे से आरम्भ करेंगे और जो व्यक्ति जगह-जगह पर केसरी रोटी बैंक की शाखा खोलना चाहते हैं हमारी हेल्पलाइन 9810107375, 9811030309, 9899441801 पर सम्पर्क करें ताकि राजधानी में तो हम यह आंदोलन चला दें कि कोई भूखा न सोये।
अभी-अभी चौपाल (जिसकी मैं संरक्षिका हूं) के निदेशक श्री भोलानाथ विज जी से बात हुई। अगर उन बच्चियों का पिता मंगल वापस आकर रिक्शा चलाना चाहता है तो चौपाल की सारी टीम मिलकर उसे रिक्शा देगी ताकि वह अच्छी तरह से जिन्दगी निर्वाह कर सके। पूर्णमासी को मैंने संत तरुण सागर जी महाराज के मंगल कार्य में हिस्सा लिया तो उन्होंने कहा कि मरने के बाद सब याद करते हैं, जीते जी कोई याद नहीं करता। यही बात साबित करते हुए इन बच्चियों ने अपनी जान देकर सारे समाज को हिलाकर रख दिया है। आओ आज प्रण करें :
‘‘किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना उसी का नाम है…’’।