Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

एक राष्ट्र एक संविधान

NULL

08:05 AM Aug 27, 2017 IST | Desk Team

NULL

वर्ष 2017 में देश में महत्वपूर्ण बदलाव दिखाई दिए। पहले नरेन्द्र मोदी सरकार ने नोटबंदी की जिससे कालेधन पर काफी अंकुश लगा और सरकार को कर देने वालों की संख्या में बढ़ौतरी हुई। सरकार का राजस्व बढ़ा। फिर सरकार ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए गहन चिन्तन-मंथन के बाद जीएसटी लागू किया यानी ‘वन नेशन वन टैक्स’ अर्थात ‘एक राष्ट्र एक कर’। उसके बाद ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा इसे असंवैधानिक करार दिया गया। भले ही कट्टरपंथी मुस्लिम धर्मगुरु इसका विरोध करे लेकिन अधिकांश मुस्लिम महिलाओं ने इस फैसले का स्वागत किया। इस फैसले के दूरगामी प्रभाव होंगे। भारत में हिन्दू बदलें, आधुनिक बनें तो इसकी वजह समाज सुधार और सरकार के कानून दोनों हैं। हिन्दू महिलाएं पर्दे से बाहर हुईं। सती प्रथा बन्द हुई। विधवाओं का जीवन बदला, पुनर्विकार होने लगा, लड़कियां पढऩे लगीं, महिला-पुरुष अधिकारों में समानता, आजादी, सम्पत्ति उत्तराधिकार कानून कायदों से बहुत कुछ बदला। आधुनिक चेतना के जरिये ही हिन्दुओं ने आधुनिक स्वरूप पाया तो वह हिन्दू समाज और भारत द्वारा संविधान में बनाए गए हिन्दू सिविल कोर्ट जैसे कानूनों से हुआ।

ट्रिपल तलाक को कानूनी तौर पर अमान्य करार दिए जाने के बाद अब देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग उठ रही है। अब ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद विधि आयोग सम्मान नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करने में जुट गया है। विधि आयोग इस बात का आकलन करेगा कि सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक की परम्परा को खत्म करने के फैसले से इस पर रोशनी पड़ेगी कि क्या पर्सनल लॉ संविधान पीठ के अनुरूप है या नहीं। विधि आयोग समान नागरिक संहिता पर रिपोर्ट तैयार कर लेगा तब सरकार इसे आगे की कार्यवाही के लिए सर्वदलीय बैठक में पेश करेगी। विधि आयोग के पास इस मसले से जुड़े हजारों सुझाव पहले ही आ चुके हैं। काश! समान नागरिक संहिता आजादी के बाद से ही लागू की जाती तो देश काफी पहले बदल गया होता। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और राजेन्द्र प्रसाद से लेकर पुरुषोत्तम दास टण्डन तक में विवाद इस बात पर था कि राजेन्द्र प्रसाद और अन्य नेता नहीं चाहते थे कि केवल हिन्दू कोड बिल हिन्दुओं के लिए ही लागू हो। अगर आप हिन्दू कोड बिल बना रहे हैं तो मुस्लिम कोड बिल भी बनाइए।

उनका तर्क था कि हिन्दू कोड बिल या मुस्लिम कोड बिल की क्या जरूरत है। कॉमन सिविल कोड क्यों नहीं हो सकता? यह विवाद 1954-55 से चला आ रहा है। 2017 आ चुका है, आज तक इस बात का प्रारूप तैयार नहीं किया जा सका कि भारतीय नागरिकों के लिए कैसा कानून चाहिए। हम अभी भी हिन्दू, मुस्लिम , ईसाई, पारसी का ही सवाल उठाते रहे हैं। विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत का संविधान शुरू से ही धर्मनिरपेक्ष रहा है लेकिन इससे सेक्युलरिज्म शब्द भी जोड़ा गया तो फिर ये पर्सनल हो ही नहीं सकता। धर्मनिरपेक्षता और पर्सनल लॉ साथ-साथ नहीं चल सकते। या तो आयकर देश धर्मनिरपेक्ष होगा या धार्मिक। अगर देश धर्मनिरपेक्ष है तो आपके पास समान नागरिक संहिता का ही रास्ता है। भाजपा जनसंघ काल से ही एक राष्ट्र एक संविधान, धारा 370, राम मन्दिर निर्माण का मुद्दा उठाती रही है। संविधान निर्माताओं को अनुमान ही नहीं था कि उनके बाद की राजनीतिज्ञों की पीढ़ी इन सब को हिन्दूवादी एजेंडा करार देकर मुस्लिम वोट बैंक की सियासत करेगी।

संविधान सभा में काफी विचार-विमर्श के बाद संविधान के नीति निदेशक तत्वों में यह प्रावधान किया गया था कि राज्य सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लाने का प्रयास करेगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि सरकार पूरे देश में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी, हालांकि यह अब तक लागू नहीं हो पाया। इस मसले को धार्मिक पेचीदगियों से जोड़ दिया गया। अब देशवासी मोदी सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद इस दिशा में आगे बढ़ेगी। जहां तक जम्मू-कश्मीर में धारा 370 का सवाल है, उसको हटाने का रास्ता लम्बा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 370 के अनुच्छेद 35-ए के खिलाफ याचिकाओं और इसको बनाए रखने के लिए याचिकाओं को स्वीकार कर लिया गया है जिन पर सुनवाई दीपावली के बाद होगी। देखना है शीर्ष न्यायालय क्या रुख अपनाता है। समान नागरिक संहिता आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र का प्रतीक है, इसे लागू करने का मतलब होगा कि देश धर्म-जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता। देश में आर्थिक प्रगति जरूर हुई लेकिन सामाजिक रूप से कोई तरक्की नहीं हुई। एक धर्मनिरपेक्ष गणतांत्रिक देश में प्रत्येक व्यक्ति के लिए कानूनी व्यवस्थाएं समान होनी ही चाहिए। देश बदल रहा है दोस्तो और इसे बदलना ही चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Next Article