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दिल्ली हिंसा: मोहिंदर सिंह ने 80 मुस्लिम लोगों की इस तरह बचाई जान, कहा- हिंसा ने 1984 की याद दिलाई

दिल्ली के दंगों की बातें हर तरफ हो रही हैं। दिल्ली दंगों में 42 लोगों की मौत और 250 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। दिल्ली दंगों के बीच में एक सिख पिता और बेटी की जोड़ी खूब सुर्खियां बटोरी रही है।

07:47 AM Mar 01, 2020 IST | Desk Team

दिल्ली के दंगों की बातें हर तरफ हो रही हैं। दिल्ली दंगों में 42 लोगों की मौत और 250 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। दिल्ली दंगों के बीच में एक सिख पिता और बेटी की जोड़ी खूब सुर्खियां बटोरी रही है।

दिल्ली के दंगों की बातें हर तरफ हो रही हैं। दिल्ली दंगों में 42 लोगों की मौत और 250 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। दिल्ली दंगों के बीच में एक सिख पिता और बेटी की जोड़ी खूब सुर्खियां बटोरी रही है। इस बाप-बेटे की जोड़ी ने दिल्ली दंगों के दौरान ऐसा काम किया है जिससे इंसानियत की नई मिसाल पेश दिखाई दी है। उन्होंने दंगों के दौरान कई लोगों की जान बचाकर इंसानियत दिखाई है। 
सुरक्षित स्‍थान पर अपन पड़ोसियों को पहुंचाया

दिल्ली दंगों के दौरान मोहिंदर सिंह और उनके बेटे इंद्रजीत सिंह ने अपने आसपास के लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया। खबरों की मानें तो 60 से 80 लोगों को सुरक्षित स्‍थान पर अपनी बाइक और स्कूटी से उन्‍होंने पहुंचाया। 
मुझे लोग दिख रहे थे ना कि हिंदू-मुस्लिम 

इलैक्ट्रॉनिक्स की दुकान मोहिंदर सिंह की है। उन्होंने कहा कि, मुझे हिंदू-मुस्लिम नहीं, मुझे वो सिर्फ लोग दिखते हैं। मैंने एक बच्चे को देखा। उसे मदद चाहिए थी। मुझे लगा जैसे वो मेरा बच्चा है। उसे कुछ नहीं होना चाहिए। हमने ये सब इंसनियत के लिए किया। 
लोग फंस गए थे

दंगों से सुरक्षित लोगों को स्कूटी और मोटरसाइकिल पर मोहिंदर सिंह और उनके बेटे ने बिठाकर पर पहुंचाया। लगभग 1 घंटे में उन्होंने 20 ट्रिप लगाए। हालांकि इस दौरान कई मुस्लिम लड़कों को उन्होंने सिर पर कपड़ा पहनने को कहा ताकि वह सिख लगें। 
देखे हैं 84 के दंगे

1984 के दंगे भी मोहिंदर सिंह ने देखे हैं। इसलिए वह जानते हैं कि बस लोग ही दंगों में मरते हैं। इंसान मारे जाते हैं। दंगों में हिंदू-मुस्लिम नहीं मरता। किसी मां का बेटा मरता है तो किसी मासूम बच्चे का पिता मरता है। उन्होंने कहा कि अपने गुरुओं की सीख के चलते यह सब उन्होंने किया। इंसानियत का संदेश गुरुओं ने दिया है। मोहिंदर सिंह जैसे लोगों को देखकर दिल से सलाम किया जाता है क्योंकि जो इंसान को वह इंसान की तरफ से देखते हैं ना कि मजहब का ठप्पा लगाकर देखते हैं। 
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