एक अनोखा जन्मोत्सव-100 वर्षों के प्रेम की विरासत
भगवान श्री सत्य साईं बाबा, जिन्हें हम प्यार से स्वामी या बाबा कहते हैं, का 100वां जन्मदिन 23 नवंबर, 2025 को आ रहा है। दुनियाभर से भक्तगण इस जन्मोत्सव के उत्साह और आनंद का अनुभव करने के लिए पुट्टपर्थी, आंध्र प्रदेश में एकत्रित हो रहे हैं।
जब भगवान राम या कृष्ण पृथ्वी पर थे तो कई लोगों ने उनकी दिव्यता को पहचाना और उसका अनुभव किया लेकिन रावण, कंस और शिशुपाल जैसे कुछ अन्य लोग भी थे, जिन्होंने यह स्वीकार नहीं किया कि वे भगवान विष्णु के अवतार हैं और उनसे शत्रुता का मार्ग चुना। इसी प्रकार जब भगवान श्री सत्य साईं बाबा पृथ्वी पर थे तो कई लोगों ने उनमें दिव्यता को पहचाना और उनके भौतिक रूप में ईश्वर के साथ रहने के आनंद का अनुभव किया। हम में से कई लोग भाग्यशाली रहे कि हमें उनके दर्शन, स्पर्शण और संभाषण का आनंद मिला। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने उनके बारे में बुरा-भला कहा लेकिन इससे उन पर कोई असर नहीं पड़ा।
बाबा, प्रेम के साक्षात स्वरूप थे। जब वे आपकी ओर देखते थे तो ऐसा लगता था मानो हज़ारों माताएं एक साथ आप पर अपना प्रेम बरसा रही हों, मानो आप दिव्य प्रेम के सागर में नहा रहे हों। जो लोग उनसे प्रेम करते थे और उनकी दिव्यता को जानते थे, उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे। बाबा की असंख्य शिक्षाओं का सार उनकी महासमाधि पर उत्कीर्ण चार शब्दों में समाहित है: लव ऑल-सर्व ऑल (सभी से प्रेम करो-सभी की सेवा करो)। वे अक्सर कहते थे कि यही वेदों का सार है। सादगी का जीवन जीकर उन्होंने बहुत ऊंचा मानदंड स्थापित किया। उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया। और जब से उन्होंने इस नश्वर शरीर को त्यागा है, स्वामी हमें एक ऐसा लक्ष्य दे गए हैं जिसे हमें पूरा करना है।
जीवन का अर्थ इसी सत्य को समझना है। बाबा ने कहा कि जीवन का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि मोक्ष मोह+क्षय है, जिसका अर्थ है सभी इच्छाओं और आसक्तियों से मुक्ति। इसलिए यदि हम अपने जीवनकाल में ही सभी आसक्तियों का त्याग कर सकें और यह समझ सकें कि हमारे आस-पास की हर चीज़ और हर व्यक्ति ईश्वर की अभिव्यक्ति है और सृष्टि का सृजन और विघटन केवल ईश्वर का खेल है तो हम कह सकते हैं कि हमें मोक्ष प्राप्त हो गया है।
जीवन चक्र के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य मां के गर्भ से भ्रूण के रूप में जन्म लेता है। हर मां पौधों, दूध आदि के आहार पर निर्भर रहती है। इसलिए पौधे और दूध उसके/हमारे शरीर का अभिन्न अंग हैं। हम इन्हीं से बने हैं। हमारे जीवन की यात्रा के दौरान, प्रकृति मां हमें भोजन, जल और वायु प्रदान करके हमारे शरीर के निर्माण में योगदान देती है। मृत्यु के बाद हमारे शरीर के पांच तत्व, अर्थात वायु, आकाश, पृथ्वी, जल और अग्नि, अपने मूल में वापस चले जाते हैं।
पृथ्वी तत्व किसी पौधे की जड़ों के माध्यम से अवशोषित होकर एक नया पौधा बन सकता है। विघटित तत्व आगे चलकर जीवन के नए रूपों में उपयोग में आते हैं। यदि हम इसे सूक्ष्म दृष्टि से समझें तो हमारा शरीर विघटित पौधों, जानवरों, पुनर्चक्रित जल और पुनर्चक्रित वायु से बना है। इन पांच तत्वों की मात्रा उतनी ही है जितनी ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना करते समय निर्धारित की थी और यह हमेशा बनी रहती है। शाश्वत सत्य यह है कि हम जन्म लेते हैं, जीते हैं और मरते हैं लेकिन आत्मा अमर है। यह मरती नहीं। स्वामी ने हमें सिखाया है कि हमें ऐसा जीवन जीना चाहिए जहां हम 'सदैव मदद करें, कभी किसी को दुःख न पहुंचाएं' और 'सबको प्रेम करें और सबकी सेवा करें', क्योंकि हम सभी एक ही परमात्मा के स्वरूप हैं।
मैं बाबा के साथ पली-बढ़ी हूं और मैंने अपने बेटों को बाबा की जानकारी दी है। मेरे पति संजय टंडन ने फैसला किया कि हमारे बेटों को पुट्टपर्थी में बाबा के स्कूल में दो-दो साल पढ़ना चाहिए। वे वहां ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा तक रहे। वहां बिताए उन दो वर्षों ने उन्हें एक आदर्श व्यक्ति बनाने का मार्ग सिखाया। इसी दौरान उन्होंने अच्छा आचरण करना सीखा। उन्होंने कड़ी मेहनत, लगन और अच्छे चरित्र का महत्व सीखा। बाबा द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान वास्तव में शिक्षा के मंदिर हैं। यहां समग्र शिक्षा पर ज़ोर दिया जाता है जहां उन्हें पाठ्यक्रम के साथ-साथ मानवीय मूल्यों की भी शिक्षा दी जाती है। श्री सत्य साईं संगठन के कई विभाग हैं जैसे शिक्षा विभाग, सेवा विभाग, चिकित्सा विभाग, जल परियोजना आदि।
पुट्टपर्थी और बैंगलोर में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल हैं जो गरीब लोगों की सेवा करते हैं। इन अस्पतालों की खासियत यह है कि दूर-दूर से जाने-माने डॉक्टर निर्धारित समय पर यहां आते हैं और मुफ्त में सर्जरी करते हैं। इन अस्पतालों में कोई बिलिंग सेक्शन नहीं है। सब कुछ ट्रस्ट द्वारा रखे कार्पस फण्ड पर चलता है। इन अस्पतालों द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं विश्वस्तरीय हैं। उपलब्ध चिकित्सा सलाह और शल्य चिकित्सा विशेषज्ञता दुनिया में उत्कृष्ट है और यह सब उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं, वह भी बिना किसी खर्च के।
स्वामी द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान, स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय कोई शुल्क नहीं लेते। छात्र प्रतिदिन साईं कुलवंत हॉल में स्कूल के बाद वेद पाठ और भजन गायन में भाग लेने आते हैं।
बाबा ने जो नेक काम किया है और जो विरासत हमें आगे ले जाने के लिए छोड़ी है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हम वास्तव में उनके आशीर्वाद से धन्य हैं। दुनियाभर में उनके 100वें जन्मदिन का जश्न मनाया जा रहा है। इसमें शामिल हों और इस आनंद का आनंद लें, चाहे व्यक्तिगत रूप से या वर्चुअल रूप से। दुनियाभर से लोग इसमें शामिल होने के लिए आ रहे हैं। ऐसे जन्मोत्सव का जश्न संसार ने पहले कभी नहीं देखा होगा।

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