Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

'आमार शोनार बांग्ला'

NULL

09:36 AM Jan 02, 2019 IST | Desk Team

NULL

नये साल 2019 का आगाज जिस अन्दाज से हुआ है उससे भारतीय उपमहाद्वीप के तमाम देशों में लोकतन्त्र और लोकशक्ति के ताकतवर होने की उम्मीद बन्धी है। पड़ौसी देश बांग्लादेश में बंग बन्धु शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग पार्टी की धमाकेदार जीत से साफ है कि यह देश आज भी उन्हीं सिद्धान्तों पर चल कर अपना आगे का सफर तय करना चाहता है जिनकी बुनियाद शेख साहब ने इस देश को पाकिस्तान के जालिम फौजी जबड़ों से मुक्त करा कर रखी थी। अब उनकी पुत्री शेख हसीना वाजेद इस पार्टी का नेतृत्व संभाले हुए हैं और पिछले दस वर्ष से बांग्लादेश के प्रधानमन्त्री के पद पर हैं।

अवामी लीग को बांग्लादेश की कांग्रेस पार्टी माना जाता है क्योंकि इसने 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान को स्वतन्त्र बांग्लादेश बनाया था तो महात्मा गांधी के प्रेम व अहिंसा के सिद्धान्त के धरातल पर धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की संरचना की थी जबकि उस समय भी यह मुस्लिम बहुल आबादी वाला था लेकिन 31 दिसम्बर को आये चुनाव परिणाम इस कारण आश्चर्य में डालने वाले हैं कि इस नये देश के उदय के 47 वर्ष बीत जाने के बावजूद इस्लामी व कट्टरपंथी ताकतों को यहां की जनता ने बंगाली समाज की महान संस्कृति को भ्रष्ट करने की इजाजत नहीं दी है और अपने मुक्ति संग्राम के रणबांकुरों की वीरगति से किसी भी प्रकार का समझौता करने को राष्ट्र का अपमान समझा है।

वस्तुतः बांग्लादेशियों की यह देशभक्ति भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए भी एक अनुकरणीय उदाहरण है जिसमें धर्म का देश प्रेम से कोई लेना-देना नहीं होता है। मगर 2018 के अन्तिम महीने में इस देश में हुए आम चुनाव साधारण नहीं थे क्योंकि इस देश की कथित राष्ट्रवादी कही जाने वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने इस्लामी जेहादी तंजीम जमाते इस्लामी के लोगों से पर्दे के पीछे से हाथ मिलाते हुए अपना चेहरा उन बैरिस्टर कमाल हुसैन को बनाया था जो बंग बन्धु की पहली बांग्लादेशी सरकार में कानून मन्त्री बनाये गये थे और इस देश का संविधान लिखने में जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

बीएनपी अपनी नेता बेगम खालिदा के भ्रष्टाचार के आरोपों में दस वर्ष की सजा पाये जाने के बाद विभिन्न विरोधी कट्टरपंथी ताकतों का मोर्चा बना कर यह चुनाव लड़ा था और उस जमात पार्टी के 22 नेताओं को चुनावी टिकट दिये थे जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी फौजों की मदद बुद्धिजीवियों की हत्या कराने से लेकर आम नागरिकों पर जुल्म ढ़हाने तक में की थी और वर्तमान में ये पाकिस्तान की शह पर उसकी आतंकी तंजीमों तक की वकालत तक करने से पीछे नहीं रहती थी। हालांकि शेख हसीना की सरकार ने जमाते इस्लामी पर प्रतिबन्द लगा कर उसे चुनाव लड़ने से खारिज कर दिया था मगर खालिदा जिया की बीएनपी पार्टी से उसका गहरा रिश्ता शुरू से ही रहा।

दूसरी तरफ शेख हसीना की अवामी लीग ने अपने देश की एेसी अन्य धर्म निरपेक्षतावादी लोकतान्त्रिक पार्टियों से गठबंधन किया था जो बांग्ला संस्कृति को सर्वोच्च रखकर अपने देश का आर्थिक विकास चाहती थीं परन्तु इस कार्य में शेख हसीना को इतनी प्रचंड सफलता मिली कि बीएनपी के कम से कम 100 प्रत्याशियों ने चुनावी मैदान छोड़ना उचित समझा मगर उन्होंने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि देश में चुनाव किसी निष्पक्ष सरकार के निर्देशन में होने चाहिए थें जबकि इस देश के चुनाव आयोग ने सभी पार्टियों के लिए एक समान अवसर देने की पक्की व्यवस्था की थी। इस देश की संसद (जातीय परिषद) के कुल तीन सौ स्थानों के लिए हुए चुनावों में से 288 पर अवामी लीग की ऐतिहासिक जीत हुई है परन्तु बैरिस्टर कमाल हुसैन ने इन चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है और पुनः 90 दिन के भीतर मतदान कराये जाने की मांग की है।

उनका यह आरोप उन विदेशी ताकतों को खुश कर सकता है जो भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथी ताकतों को उभरते हुए देखना चाहती हैं और अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैं। आश्चर्यजनक रूप से कुछ पश्चिमी देश भी एेसे हैं जो बांग्लादेश की वर्तमान नेता शेख हसीना की उदारवादी नीतियों के आलोचक हैं परन्तु शेख हसीना ने अपने पिछले दस वर्ष के शासनकाल के दौरान जिस प्रकार कट्टरपंथी व पाकिस्तान परस्त ताकतों की नाक में नकेल डाल कर अपने देश का सर्वांगीण आर्थिक विकास किया है और अल्पसंख्यक हिन्दुओं को भयमुक्त करते हुए एक समान अधिकारों से उन्हें लैस किया है उससे लोकतान्त्रिक दुनिया में उनका सम्मान बढ़ा है और बांग्लादेश विदेशी निवेश का भी केन्द्र बना है। पूरे दक्षिण एशिया का यह फिलहाल सबसे तेज गति से विकास करता मुल्क है और इसकी ताजा विकास वृद्धि दर भारत से भी ज्यादा 7.8 प्रतिशत है।

भारत के साथ सम्बन्धों को लगातार मधुर बनाये रखने में शेख हसीना सरकार ने सबसे ज्यादा ध्यान दिया है और अपने देश में पड़ौसी म्यांमार के 11 लाख से भी अधिक रोहिंग्या मुस्लिम शर्णार्थियों के मुद्दे पर नई दिल्ली को भी साथ लेने में सफलता प्राप्त की है। इसके बावजूद म्यांमार और बांग्लादेश के सम्बन्धों में कहीं खटास नहीं है। लोकतन्त्र में यह किसी भी सरकार के लिए छोटी उपलब्धि नहीं है। इसके बावजूद शेख हसीना की सबसे बड़ी उपलब्धि यह कही जायेगी कि उन्होंने अपने देश का राजधर्म इस्लाम होते हुए भी (जो 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या किये जाने के बाद सैनिक सत्ता पलट के बाद फौजी शासकों द्वारा किया गया था ) कट्टरपंथी व आतंकवादी ताकतों को इस देश में जमने नहीं दिया और अपने देश की संस्कृति पर इसका साया नहीं पड़ने दिया। यह सब उन्होंने लोकतन्त्र के भीतर ही किया और लोगों के समर्थन से ही किया।

जबकि दूसरी ओर 2001 से 2006 तक बीएनपी भी बेगम खालिदा के शासनकाल में इस्लामी कट्टरपंथ चरम पर पहुंच गया था और पाकिस्तानी आतंकवादी तंजीमों ने अपने पैर जमाने शुरू कर दिये थे किन्तु शेख हसीना का केवल यही नारा पूरे चुनाव में रहा ‘आमार शोनार बांग्ला और जय बांग्ला’ इसके साथ ही उन्होंने अपने देशवासियों को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त किया और कृषि प्रधान बांग्लादेश को औद्योगिक मानचित्र पर लाने की तैयारी शुरू कर दी और भारत में अवैध बांग्लादेशियों के शोर के बावजूद नई दिल्ली के साथ दोनों देशों के बीच संचार, सड़क व रेलमार्गों का विस्तार किया और ऊर्जा व परिवहन के क्षेत्र में सहयोग से लेकर जल बंटवारे को शान्तिपूर्वक सम्पन्न किया। उनका पुनः सत्तारूढ़ होना भारत के लिए शुभ संकेत है जिसके चलते हमारी पूर्वी सीमा पर प्रेम व सौहार्द के गीत ही गाये जाते रहेंगे।

Advertisement
Advertisement
Next Article