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छठ पूजा विवाद पर AAP ने उपराज्यपाल को घेरा, सीएम के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर जताई कड़ी आपत्ति

‘छठ पूजा’ के बारे में ‘भ्रामक’ और ‘अपरिपक्व’ बयान के खिलाफ उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगाह करने के बाद आप ने गुरुवार को मुख्यमंत्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर आपत्ति जताते हुए पलटवार किया।

01:34 PM Oct 27, 2022 IST | Ujjwal Jain

‘छठ पूजा’ के बारे में ‘भ्रामक’ और ‘अपरिपक्व’ बयान के खिलाफ उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगाह करने के बाद आप ने गुरुवार को मुख्यमंत्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर आपत्ति जताते हुए पलटवार किया।

‘छठ पूजा’ के बारे में ‘भ्रामक’ और ‘अपरिपक्व’ बयान के खिलाफ उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगाह करने के बाद आप ने गुरुवार को मुख्यमंत्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर आपत्ति जताते हुए पलटवार किया।
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सीएम को गाली देकर कोई फायदा नहीं – आप 
आप की ओर से कहा गया कि हम उपराज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का कड़ा विरोध करते हैं। पार्टी ने आरोप लगाया कि उपराज्यपाल सार्वजनिक रूप से रोज सीएम को गाली देकर अपनी कुर्सी की गरिमा को कम कर रहे हैं।
उपराज्यपाल ने बुधवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस मुद्दे पर ‘भ्रामक और अपरिपक्व’ बयान के खिलाफ सलाह देते हुए यमुना पर निर्दिष्ट घाटों पर छठ पूजा की मंजूरी दी थी।
उपराज्यपाल सस्ते प्रचार के भूखे हैं – आप 
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पार्टी ने कहा कि सीएम के लिए एलजी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर हम कड़ी आपत्ति जताते हैं। वह हर रोज सीएम को गाली देकर अपनी कुर्सी की गरिमा को कम कर रहे हैं। राज्यपाल को यह ध्यान रखना चाहिए कि लगातार तीसरी बार सीएम बने केजरीवाल एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। पार्टी ने कहा कि उपराज्यपाल के पास रोज सीएम को सार्वजनिक रूप से फटकारने के अलावा कोई काम नहीं है। पार्टी ने आरोप लगाया कि उपराज्यपाल सस्ते प्रचार के भूखे हैं और रोज अखबारों में अपना नाम देखना चाहते हैं।
बुधवार को यमुना के निर्दिष्ट घाटों पर छठ पूजा की अनुमति देने के बाद उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि ‘भ्रामक’ और ‘अपरिपक्व’ बयान शासन की योजनाओं के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। ऐसे बयान स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, ऐसे मामलों में जो, अत्यंत संवेदनशील है और एक समाज के बड़े वर्ग के धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं से संबंधित है।
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