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साल में दो बार दाखिलेः अलग-अलग राय

05:40 AM Jun 21, 2024 IST | Shivam Kumar Jha

2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की गई थी। शिक्षा नीति के अनुरूप कई सुधार किए गए, कई बदलाव भी किए गए। अब अर्से से लंबित शिक्षा सुधारों को गति देने की तैयारी हो रही है। इस कड़ी में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का प्रस्ताव अब जल्द संसद की दहलीज तक पहुंच सकता है। इस संबंध में विधेयक को कैबिनेट में मंजूरी के लिए भेजने की तैयारी शिक्षा मंत्रालय की ओर से पूरी कर ली गई है। हालांकि कैबिनेट की मंजूरी और संसद में पेश करने के बाद भी सरकार इसे तुरंत पारित कराने की कोशिश नहीं करेगी, बल्कि सरकार का प्रयास होगा कि इसे संसदीय समिति के विचारार्थ भेजा जाए जिससे इसकी सूक्ष्मता के साथ स्क्रूटनी हो जाए। सरकार आयोग के गठन से पहले व्यापक विचार-विमर्श की प्रक्रिया पूरी कर लेना चाहती है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों के अनुरूप विद्यालयी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा स्तर पर कई बदलाव किए जा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने सभी बदलावों को लेकर विभागीय स्तर पर मंथन शुरू कर दिया है। शिक्षा सुधारों को लेकर शिक्षाविदों और विशेषज्ञों में हमेशा राय बंटी हुई नजर आती है। जब भी कोई नया प्रयोग या नई पहल की जाती है तो उसके विरोध में भी स्वर सुनाई देते हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने हाल ही में विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों को साल में दो बार दाखिला देने की अनुमति प्रदान कर दी है। एक बार जुलाई-अगस्त में और दोबारा जनवरी-फरवरी में। इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे उन बच्चों को लाभ होगा जो परीक्षा के नतीजे आने में देरी होने, स्वास्थ्य कारणों या किसी निजी कारण से जुलाई-अगस्त में दाखिला नहीं ले पाते हैं। अब वे बिना एक साल इंतजार किए अपने पसंदीदा पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकेंगे।

यूजीसी को उम्मीद है कि इस मॉडल को अपनाने से न केवल दाखिलों का अनुपात बेहतर होगा बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और छात्रों के आदान-प्रदान की स्थिति में भी सुधार होगा जिससे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा। इससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा मानकों के अनुरूप करने में मदद मिलेगी। हालांकि साल में दो बार दाखिला देने की व्यवस्था को अनिवार्य नहीं किया गया है और यह उचित ही है। यह विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को तय करना है कि वे नई व्यवस्था को अपनाना चाहते हैं या नहीं। कुछ विश्वविद्यालयों के बारे में खबर है कि वे अगले अकादमिक सत्र से इसे लागू करने पर विचार कर रहे हैं।

बहरहाल यह आशंका भी है कि नई व्यवस्था को अपनाने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती हैं। कई शिक्षक संगठनों का यह कहना है कि ​यूनिवर्सिटीज में पहले से ही लैब, क्लास रूम, फंड और प्राेफैसरों की कमी है। ऐसे में फैसला लागू होता है तो शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। यह फैसला सिर्फ ग्रॉसो, एनरोल्मेंट अनुपात ही बढ़ाएगा। दो बार एडमिशन ग्लोबल प्रैक्टिस भी नहीं है। फंड में कटौती और शिक्षकों की कमी के बीच दो सेशन को साथ-साथ चलाना इसलिए भी मुश्किल है कि संस्थानों के पास न बुनियादी ढांचा है और न ही मेन पाॅवर। यह स्पष्ट नहीं है कि ये छात्र-छात्राएं सामान्य बैच और उनके अकादमिक कैलेंडर के साथ तालमेल बिठा सकेंगे या नहीं या फिर क्या उन्हें अपने अकादमिक कैलेंडर के साथ एक नई शुरूआत का अवसर मिलेगा। दूसरी तरफ साल में दो बार दाखिले को लेकर समर्थन करने वाले प्रोफैसरों का कहना है कि जब दुनियाभर में संध्याकालीन और रात्रि में भी कक्षाएं लगाई जा सकती हैं तो भारत में भी ऐसा हो सकता है। जहां तक बुनियादी ढांचे का सवाल है, यह मुद्दा तो है लेकिन हमेशा ऐसे सवालों को लेकर नए प्रयोग रोके नहीं जाने चाहिए। देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में कमी की शिकार है। अधिकांश सरकारी संस्थानों का बुनियादी ढांचा भी बहुत अच्छा नहीं है। उनकी कक्षाएं बहुत भीड़ भरी हैं, वे हवादार नहीं हैं और साफ-सफाई की भी दिक्कत है। छात्रावासों की स्थिति भी बहुत संतोषजनक नहीं है।

साल में दो बार दाखिलों की प्रक्रिया शुरू करने और दो सत्र साथ-साथ चलाने के लिए शिक्षा संस्थानों को भारी-भरकम बजट की जरूरत होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि तीसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार जुलाई में पेश किए जाने वाले पूरक बजट में शिक्षा के लिए धन का आवंटन बढ़ाएगी और साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए और आवश्यक कदम उठाएगी। निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थान साल में दो सैिमस्टर चलाने में सक्षम हो सकते हैं। हो सकता है कि उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी का भी मौका मिल जाए। जो निजी शिक्षा संस्थान वर्ष में दो बार दाखिला देने की व्यवस्था कर सकते हैं उन्हें ​इसकी शुरूआत कर ही देनी चाहिए। सरकारी विश्वविद्यालयों को दाखिले के अलावा शिक्षकों और बुनियादी ढांचे की व्यवस्था में भी सुधार करना होगा तभी वे बेहतर नतीजे पा सकेंगे।

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