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राष्ट्र हितों का पैरोकार संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश​भक्ति की भावना से ओतप्रोत संगठन हैै, जिससे जुड़ने पर आपके मन में राष्ट्रवादी और देेशभक्ति की भावना जागृत होती है।

01:53 AM Nov 27, 2022 IST | Aditya Chopra

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश​भक्ति की भावना से ओतप्रोत संगठन हैै, जिससे जुड़ने पर आपके मन में राष्ट्रवादी और देेशभक्ति की भावना जागृत होती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक ऐसा संगठन है जिसके वि​चार एवं गति​विधियां समाज की मानसिकता बदलने की ताकत रखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश​भक्ति की भावना से ओतप्रोत संगठन हैै, जिससे जुड़ने पर आपके मन में राष्ट्रवादी और देेशभक्ति की भावना जागृत होती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संघ को प्रतिबंधित किया गया लेकिन जांच समितियों ने उसे आरोप मुक्त कर प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया। आज इस संगठन की शाखाएं विदेशों में भी फैल चुकी हैं। लेकिन आज भी इसके​ ​खिलाफ झूठा और भ्रामक प्रचार जारी है। लेकिन यह भी सत्य है कि ​बिना सिर-पैर के झूठ देश में कभी नहीं टिके और संघ की आलोचना करने वाले ही मजाक का पात्र बन रहे हैं। अब यह कहा गया कि जनजातीय समुदाय के क्रांतिकारी टंटेया मामा को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया और अंग्रेजों का साथ देने वाली आरएसएस थी। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि क्रांतिकारी टंटेया भील ने 1889 में अपना बलिदान दिया था जबकि संघ की स्थापना करने वाले डॉक्टर केशव हेडगेवार का जन्म भी 1889 में ही हुआ था। उन्होंने टंटेया भील की शहादत के 36 वर्ष बाद यानि 1925 में संघ की स्थापना की थी।
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अब सवाल यह उठता है कि संघ जब था ही नहीं तब उसने अंग्रेजों की मदद कैसे की होगी। संघ ने देश को अनेक ख्याति प्राप्त स्वयंसेवक दिए हैं, जिनमें स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल ​बिहारी वाजपेयी, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, मुरली मनोहर जोशी और कई अन्य बुद्धिजीवी दिए हैं। फिर भी संघ को संविधान विरोधी और देश विरोधी कहकर निशाना साधा जाता है। जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने संविधान की शपथ लेकर ही पद सम्भाला था। उस दौर में मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण अडवानी और अन्य संघ पृष्ठभूमि के नेताओं ने भी संविधान में अपनी आस्था व्यक्त की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संघ की शाखाओं से होकर निकले और एक चाय बेचने वाला देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। 2014 में चुनाव जीतने के बाद मोदी जब संसद भवन पहुंचे तो घुटनों पर बैठकर उन्होंने उस भव्य इमारत को प्रणाम किया था जो सवा सौ करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। यह सम्मान न सिर्फ संसद का सम्मान था बल्कि वास्तविक अर्थों में संविधान का सम्मान था।
लोग उस क्षण को शायद ही भूल सकेंगे जब मोदी, एक आरएसएस का स्वयंसेवक, संसद की चौखट पर नतमस्तक था, भारतीय हमेशा अपने पूजा स्थलों/इबादतगाहों के सामने सर झुकाते रहे हैं न कि संसद जैसे संस्थानों के समक्ष जो संविधान द्वारा बनाई गई संस्था है। नरेन्द्र मोदी ने अपना आरम्भिक जीवन एक स्वयंसेेवक के रूप में बिताया है और अब वह संविधान की भावना और मूल्यों को नई ऊंचाई पर ले जाने वाले योद्धा के रूप में उभरे हैं। मोदी ने अपने जीवनीकार एंडी मरिनो को बताया कि उन्होंने इंदिरा गांधी के​ खिलाफ आपातकाल-विरोधी आंदोलन से जो कुछ सीखा है वह अब उनके डीएनए में समा गया है। उन्हीं के शब्दों में ‘‘संवैधानिक मूल्य क्या होते हैं… संविधान क्या है…अधिकार क्या है…मानो इस तरह से ये सब मेरे डीएनए में रच-बस गए हैं। क्योंकि इससे पहले मैं एक अलग ही दुनिया में रह रहा था, आपातकाल मेरे लिए एक विश्वविद्यालय के समान शिक्षा देने वाला था।’’
इसी वर्ष कुछ भारत विरोधी ताकतों ने यह झूठा प्रचार किया कि संघ संविधान विरोधी है। वर्तमान संघ चालक डाक्टर मोहन भागवत के ​चित्र के साथ एक पुस्तिका छापी गई जिस पर लिखा गया था नया भारतीय संविधान। इस पुस्तिका के जरिये यह प्रचारित किया गया कि संघ वर्तमान संविधान को खत्म करके नया संविधान लागू करना चाहता है। संघ को तिरंगा विरोधी करार दिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति पूर्ण निष्ठा एवं सम्मान रखता है। श्री मोहन भागवत ने यह कहकर संघ की स्थिति स्पष्ट कर दी थी ‘‘संघ का कोई एजैंडा नहीं है, वह भारत के संविधान को मानता है। हम शक्ति का कोई दूसरा केन्द्र नहीं चाहते। संघ के संविधान के अलावा कोई शक्ति केन्द्र होगा, हम उसका विरोध करेंगे।’’ इससे स्पष्ट दृ​ष्टिकोण और क्या हो सकता? समस्या यह है कि संघ नेताओं के हर वाकय का विश्लेषण विरोधी पक्ष अपनी नजर से करता है। संघ नेताओं को भी अपने विचार रखने का अधिकार उसी तरह से है जिस तरह देश के अन्य लोगों का है। यदि डा. मोहन भागवत या दत्तात्रेय होसबोले आरक्षण, जनसंख्या वृद्धि, हिन्दुत्व या अन्य मुद्दों पर अपने विचार रखते हैं तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें उन्हें नकारने क्यों लगती हैं। जो लोग संघ को हमेशा विभाजनकारी सिद्ध करने पर तुले रहते हैं, उन्हें स्वयं का आत्मविश्लेषण करना होगा। सुुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज के.टी. थॉमस ने कहा था कि संविधान और सेना के बाद केवल आरएसएस ही भारतीयों की रक्षा करने में सक्षम है।
उन्होंने तो आपातकाल के बाद देश को स्वतंत्र कराने का श्रेय भी संघ को ही दिया था। काैन नहीं जानता कि संघ ने 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सरकार का कितना साथ दिया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 की गणतंत्र​ दिवस परेड में संघ को शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था। बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं में भी संघ के स्वयंसेवक लोगों की रक्षा के लिए जुट जाते हैं। संघ अगर धर्म और संस्कृति के आधार पर हिन्दू समाज को शक्तिशाली बनाने की बात करता है तो इसमें गलत क्या है? संघ ने सामाजिक विषमता और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को भी उठाया है। संघ नेता मस्जिदों और मदरसों में भी जाकर संवाद कायम करते हैं। संघ हमेशा सभी समुदायों से संवाद का पक्षधर रहा है। संघ हमेशा सामाजिक न्याय का पक्षधर रहा है। देश को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के भ्रामक प्रचार से सतर्क रहना होगा। क्योंकि यह लोग जेहाद, धार्मिक कट्टरता, हिजाब, बुर्का आदि मामलों में खामोश रहते हैं, जबकि संघ अपना मुखर दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। संघ राष्ट्रहितों का पैरोकार है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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