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Ae Watan Mere Watan Review: सारा अली खान की फिल्म एक गुमनाम नायक की अनसुनी कहानी

10:24 AM Mar 22, 2024 IST | Priya Mishra

सारा अली खान की फिल्म ए वतन मेरे वतन कल प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। इस फिल्म की ये एक ऐसी कहानी जो हमें बताती है कि देश की आजादी में सिर्फ गांधी, नेहरू और चंद दूसरे प्रसिद्ध लोगों का ही खून-पसीना शामिल नहीं है बल्कि ये आजादी मिली है उन तमाम ऐसे गुमनाम नायकों की भी हिम्मत और हौसलों से जिन्होंने अपने अपने इलाकों में डटे रहते हुए अंग्रेजी अत्याचार का मुकाबला किया। इस फिल्म में सारा गांधीवादी क्रांतिकारी उषा मेहता के रोल में हैं जिन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गुप्त रूप से रेडियो स्टेशन शुरू किया था। जो देशभर में क्रांतिकारियों को जोड़ने का काम करता था। अब आपको ए वतन मेरे वतन की रिव्यु बताते हैं

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भारत देश में चुनावी माहौल है कांग्रेस अलग अलग तरीके से अपने किले सहेजने में लगी है और ऐसे में प्राइम वीडियो पर प्रसारित हुई है एक ऐसी कहानी जो हमें बताती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत नौजवानों ने हिस्सा लिया था और देश की आजादी के लिए कुर्बानियां दी थीं। इनमें महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह जैसे नायकों को सारा देश जानता है, पर उन तमाम ऐसे गुमनाम नायकों की भी हिम्मत और हौसलों से जिन्होंने अपने अपने इलाकों में डटे रहते हुए अंग्रेजी अत्याचार का मुकाबला किया।

कौन हैं उषा मेहता?

ऐसे ही गुमनाम नायकों को समर्पित है प्राइम वीडियो की फिल्म ए वतन मेरे वतन। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली गांधीवादी क्रांतिकारी उषा मेहता की इस बायोपिक में उस दौर की नौजवान पीढ़ी के जज्बे और जुनून की कहानी दिखाई गई है, जो खास तौर पर महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रेरित थी, जज हरिप्रसाद मेहता की बेटी उषा मेहता जज की बेटी थी जिसका रोल सारा निभाती हुई देखेगी। 24 साल पहले यह लोक छोड़ गईं गांधीवादी कांग्रेस नेता उषा मेहता की कहानी कहती फिल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ शुरू से राम मनोहर लोहिया को नेहरू की नीतियों का विरोधी बताते हुए चलती है। जर्मनी से उनकी पढ़ाई को भी रेखांकित करती है और ये बताने की कोशिश करती है कि देश को आजादी असल में उन दिनों के संघर्ष से मिली, जब ये तमाम बड़े नेता तो जेल में थे। बता दें उषा मेहता को साल 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। फिल्म में उषा पिता की झूठी सौगंध खाकर गुप्त रूप से कांग्रेस से जुड़ी रहती है। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और कांग्रेस ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सबसे बड़े आंदोलन अंग्रेजों भारत छोड़ो की घोषणा करते हैं और देशवासियों को करो या मरो का नारा देते हैं।

एक रेडियो ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें दी थीं हिला

अंग्रेजी सरकार इस आंदोलन की ताकत भांप लेती है और गांधी समेत सभी बड़े नेताओं को जेल में बंद कर देती है, ताकि आंदोलन को कुचला जा सके। संवाद के सारे रास्ते बंद होने के बाद अंडरग्राउंड कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मदद से उषा अपने प्रेमी कौशिक और दोस्त फहद की मदद से बम्बई के बाबुलनाथ में सीक्रेट रेडियो स्टेशन शुरू करती है, जहां से नेताओं के भाषणों के जरिए अलख जगाये रखती है। ए वतन मेरे वतन सीक्रेट कांग्रेस रेडियो के बनने और इसके जरिए देशवासियों से संवाद करने की कोशिशों और ब्रिटिश सरकार के इस रेडियो तक पहुंचकर इसे बंद करवाने की कहानी दिखाती है आजादी की लड़ाई को केंद्र में रखकर हिंदी सिनेमा में काफी फिल्में बनी हैं, जो रोंगटे खड़े कर देती हैं। कन्नन अय्यर निर्देशित ए वतन मेरे वतन उस लिस्ट को सिर्फ लम्बा करती है, कोई खास असर नहीं छोड़ती। फिल्म में ऐसे पल कम ही आते हैं, जब रोमांच शीर्ष पर पहुंचे।

 

कैसा है फिल्म की स्क्रीनप्ले?

दारब फारुकी और कन्नन अय्यर लिखित ए वतन मेरे वतन की कथाभूमि मुख्य रूप से 30-40 के दौर की बम्बई है, जहां उषा अपने पिता और उनकी वयोवृद्ध बुआ के साथ रहती है। फिल्म उषा मेहता की निजी जिंदगी में ज्यादा ताकझांक नहीं करती।उषा मेहता के जीवन की उन घटनाओं को ही स्क्रीनप्ले में जगह दी गई है, जो कांग्रेस रेडियो के बनने के रास्ते की ओर जाती हैं। बीच-बीच में आंदोलनों और ब्रिटिश पुलिस से क्रांतिकारियों के टकराव के दृश्य फिलर्स के तौर पर आते हैं।'ए वतन मेरे वतन' का फर्स्ट हाफ धीमा है। उषा के क्रांतिकारी बनने के कारणों और घटनाओं को संक्षिप्त में दिखाया गया है। इन दृश्यों में रोमांच का अभाव खलता है। उषा का महात्मा गांधी की रैली में ब्रह्मचर्य की शपथ लेना एक हाइलाइट है। दूसरे हाफ में सीक्रेट कांग्रेस रेडियो के स्थापित होने और ब्रिटिश अफसरों के उसे खोजने के क्रम में गढ़े गये दृश्य फिल्म को गति देते हैं और रोमांच जगाते हैं। ट्रांसमीटर और ट्रांयगुलेशन के जरिए पुलिस और क्रांतिकारियों के बीच चूहे-बिल्ली का खेल ध्यान खींचता है।

अभिनय में कितना खरे उतरे कलाकार?

सारा ने उषा मेहता के बागी तेवरों को उभारने की कोशिश की है। हालांकि, उनका अभिनय दर्शक को कंविंस नहीं कर पाता कि वो 40 के दौर की एक ऐसी क्रांतिकारी को देख रहा है, जो सब कुछ दांव पर लगाकर देश आजाद करवाने निकली है। कौशिक के किरदार में अभय वर्मा और फहद के किरदार में स्पर्श श्रीवास्तव ने बराबर का साथ दिया है। स्पर्श हाल ही में रिलीज हुई फिल्म लापता लेडीज में मुख्य भूमिका में नजर आये थे। उनके हिस्से कुछ ऐसे सींस आये हैं, जिनमें स्पर्श को अदाकारी दिखाने का मौका मिला है। डॉ. राम मनोहर लोहिया के किरदार में मोटे फ्रेम का चश्मा लगाए इमरान हाशमी अच्छे और सच्चे लगे हैं। उनकी भूमिका लम्बी नहीं है, मगर दृश्यों को सम्भालने में अहम है। फिल्म का रेट्रो संगीत लुभाता है और गाने सुकून देते हैं।

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