For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

अफगानिस्तान के एनजीओ में तालिबान की रोक के बाद भी महिलाएं दृढ़ लेकिन हताश

अफगानिस्तान में जब से तालिबान के हाथों में सत्ता आई है तब से ही औरतों का जीवन बहुत कठिन हो गया है, उनके मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए है, तालिबान के मुताबिक सभी महिलाओं को शरिया कानून का पालन करना होगा। तालिबान द्वारा यहां की महिलाओं को गैर सरकारी समूहों एनजीओ में कार्य करने से रोकने से पहले भी उनके लड़ाकों ने राजधानी काबुल स्थित एक स्थानीय संगठन के दफ्तर पर कई बार यह देखने आए है

05:00 PM Dec 29, 2022 IST | Desk Team

अफगानिस्तान में जब से तालिबान के हाथों में सत्ता आई है तब से ही औरतों का जीवन बहुत कठिन हो गया है, उनके मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए है, तालिबान के मुताबिक सभी महिलाओं को शरिया कानून का पालन करना होगा। तालिबान द्वारा यहां की महिलाओं को गैर सरकारी समूहों एनजीओ में कार्य करने से रोकने से पहले भी उनके लड़ाकों ने राजधानी काबुल स्थित एक स्थानीय संगठन के दफ्तर पर कई बार यह देखने आए है

अफगानिस्तान के एनजीओ में तालिबान की रोक के बाद भी महिलाएं दृढ़ लेकिन हताश
अफगानिस्तान में जब से तालिबान के हाथों  में सत्ता आई है तब से ही औरतों  का जीवन बहुत कठिन हो गया है, उनके मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए है, तालिबान के मुताबिक  सभी महिलाओं को शरिया कानून का पालन करना होगा। तालिबान द्वारा यहां की महिलाओं को गैर सरकारी समूहों एनजीओ में कार्य करने से रोकने से पहले भी उनके लड़ाकों ने राजधानी काबुल स्थित एक स्थानीय संगठन के दफ्तर पर कई बार यह देखने आए है कि यहां महिला कर्मी हिजाब को सही से पहन रही है या नहीं। पुरुषों और महिलाओं के काम करने का स्थल अलग है के नहीं।
Advertisement
एनजीओ की महिला ने अफगानिस्तान की आपबीती बताई 
एक एनजीओ की महिला कर्मी ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि महिलाएं पहले से ही कार्यालय में अधिक सतर्क थीं और तालिबान की समस्या से बचने की उम्मीद कर रही थीं। वे पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनती थीं और हिजाब के साथ नकाब पहनती थीं और कार्य स्थल पर तथा भोजन के समय पुरुष कर्मियों से अलग रहती थीं। पहचान गुप्त रखने की शर्त पर महिला कर्मी ने बताया,  यहां तक कि हमने कार्यालय आने और जाने का समय बदल लिया था ताकि तालिबान द्वारा हमारा पीछा न किया जाए।हालांकि, यह काफी साबित नहीं हुआ और शनिवार को तालिबान अधिकारियों ने महिलाओं को एनजीओ से अलग करने का फरमान सुनाया क्योंकि वे कथित तौर पर सही तरीके से हिजाब नहीं पहन रही थीं।तालिबान के इस कदम से अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों को अफगानिस्तान में अपना अभियान रोकना पड़ा है जिससे कड़ाके की सर्दी में लाखों लोगों के बिना खाने, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य जरूरी सेवाओं से महरुम रहने का खतरा पैदा हो गया है। अफगानिस्तान में विकास और सहायता कार्य समन्यव एजेंसी (एसीबीएआर) का आकलन है कि तालिबान के आदेश के बाद उसके 183 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सदस्यों (संगठनों) को मानवीय गतिविधियों और सेवाओं से निलंबित, रोकना या उनका कार्यभार कम करना पड़ा हैं।इन सदस्यों ने करीब 55 हजार अफगानों को काम पर रखा था जिनमें एक तिहाई महिलाएं थीं। एजेंसी ने कहा कि धार्मिक और परंपरा का सम्मान करते हुए एनजीओ की गतिविधियों और मानवीय सहायता में महिला कर्मियों की अहम भूमिका होती है।
स्थानीय संगठनों की महिलाओं की भूमिकाएं
Advertisement
कुछ स्थानीय संगठनों की महिलाएं तालिबान की निगरानी के बावजूद सेवाएं देने की यथासंभव कोशिश कर रही हैं और जब तक दानकर्ताओं का कोष जारी है, वे अपने कर्मियों को भुगतान कर रही हैं।एक एनजीओ महिला कार्यकर्ता, जिसके पास दो स्नातककोत्तर उपाधि और तीन दशक तक शिक्षा क्षेत्र में पेशेवर अनुभव है,वह आखिरी बार अपने कार्यालय जाना चाहती थीं ताकि वह अपना लैपटॉप ला सकें, लेकिन उनके निदेशक ने चेतावनी दी कि इमारत के बाहर तालिबान के सशस्त्र लड़ाके तैनात हैं। वह लोगों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और अब घर से काम कर रही हैं।उन्होंने कहा, यह मेरी जिम्मेदारी है कि महिलाओं और लड़कियों को सेवांए मुहैया कराऊं। मैं आखिरी दम तक काम करूंगी, इसलिए मैं अफगानिस्तान नहीं छोड़ रही हूं। मैं जा सकती थी लेकिन अन्य महिलाएं मदद के लिए मेरी ओर देखती हैं। अगर हम असफल हुएं तो सभी महिलाएं असफल हो जाएंगी। गौरतलब है कि इनका एनजीओ महिलाओं को उद्यमिता, स्वास्थ्य, सामाजिक और शैक्षणिक परमर्श देता है।
Advertisement
Author Image

Advertisement
×