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आखिर किस गली में जाएं मासूम

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09:22 PM Sep 10, 2017 IST | Desk Team

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न शिक्षा संस्थान सुरक्षित, न ही पार्क सुरक्षित, न ही खेल का मैदान सुरक्षित और न ही घर सुरक्षित। दिव्यांग बच्चों के संस्थान भी सुरक्षित नहीं। बच्चों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है। बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है। इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य क्या होगा कि अबोधों के साथ दुष्कर्म की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। अबोधों के साथ दुष्कर्म के बढ़ते मामले इस बात की गवाही हैं कि सामाजिक मूल्यों का पतन जारी है जिसके परिणामस्वरूप विकृत मानसिकता समाज में अपने पांव पसारने में कामयाब हो चुकी है। आखिर किस गली में जाएं मासूम। गुरुग्राम के रेयान इण्टरनेशनल स्कूल में 7 वर्षीय बच्चे प्रद्युम्न की गला रेत कर हत्या किए जाने पर बवाल अभी शान्त भी नहीं हुआ था कि दिल्ली के शाहदरा के गांधीनगर इलाके में निजी स्कूल परिसर में एक चपरासी द्वारा एक 5 वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार किए जाने की घटना सामने आ गई। छात्र प्रद्युम्न की हत्या के मामले में स्कूल की बस का कण्डक्टर पकड़ा गया है तो बच्ची से बलात्कार मामले में स्कूल के चपरासी को गिरफ्तार किया गया। बच्ची से दुष्कर्म भी उसने स्कूल की खाली क्लास में ही किया। इन घटनाओं से हर कोई अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिन्तित हो उठा है।

स्कूल गए बच्चे जब तक घर नहीं लौटते, तब तक मां को चैन नहीं आता। जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, लोग बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। कानूनों को सख्त भी किया गया, नीतियां भी बनीं। सोशल मीडिया पर भी गर्मागर्म बहस होती रहती है लेकिन न तो हम ऐसे हादसे रोक पाए और न ही समाज की विकृत मानसिकता में थोड़ा सा भी बदलाव ला पाए। एक मासूम बच्चा किस दर्द से गुजरता है, इसका अन्दाजा कोई नहीं लगा सकता। ऐसे हादसों में लड़की हो या लड़का, उसका मासूमियत भरा बचपन कुचल दिया जाता है और वह बच्चा एक दर्द के साथ युवा होता है। क्या भारत का भविष्य ऐसे दर्द में जीने वाले बच्चों के हाथ में राहत की सांस ले सकेगा? क्या निजी स्कूलों का धंधा फीस बटोरना ही रह गया है, क्या बच्चों की सुरक्षा की उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं? ऐसे कुकर्मों को अन्जाम देने वाले दरिन्दे कहीं बाहर से नहीं आते बल्कि वे हमारे आसपास के ही होते हैं। दरिन्दे कभी बस ड्राइवर, कभी कण्डक्टर, कभी शिक्षक, कभी पड़ोसी, कभी रिश्तेदार या कभी केयरटेकर के रूप में सामने आते हैं। सरकार ने बच्चों के साथ हो रहे संगीन अपराधों को देखते हुए वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था जो बच्चों को छेडख़ानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों में सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून को पास्को एक्ट के नाम से जाना जाता है, पर अहम सवाल तो यह है कि इस कानून के बावजूद बच्चों के यौन शोषण के मामलों में बढ़ौतरी क्यों हो रही है।

राष्ट्रीय अपराध रिकाड्र्स ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो भारत में पिछले 5 वर्षों में बच्चों से दुष्कर्म के मामलों में डेढ़ सौ फीसदी से भी ज्यादा बढ़ौतरी दर्ज की गई है। ये मामले वे हैं जिनमें लोगों ने शिकायत की और केस दर्ज हुआ लेकिन उन मामलों का कोई आंकड़ा नहीं है, जिनमें मासूमों ने छेड़छाड़ और बलात्कार से जुड़ी मानसिक और शारीरिक प्रताडऩा को सहा और खामोशी धारण कर ली। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान वे राज्य हैं जहां बच्चों के साथ सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज हुए। पास्को एक्ट में बच्चों के साथ दुष्कर्म किया गया हो, इसमें 7 साल की सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदण्ड भी लगाया जा सकता है। 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आता है और यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत कई मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है। जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, ऐसा लगता है कि सजा से अपराधी डरते ही नहीं। कुछ हद तक शायद उन्हें डर हो भी लेकिन ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि अपराधी सजा काटने के बाद और ज्यादा घातक हो जाता है, और ज्यादा सावधानी रखकर अपना शिकार करता है।

हर बदलती चीज के अच्छे और बुरे प्रभाव होते हैं। मोबाइल, इण्टरनेट पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी और सैक्स परोसने वाली सामग्री उपलब्ध है तो जाहिर है कि लोगों की मानसिकता विकृत होगी ही। अभिभावक भी बच्चों की सुरक्षा के प्रति दायित्व को समझते हुए बच्चों को ऐसी परवरिश दें ताकि वे जागरूक हों। वे अच्छे और बुरे स्पर्श को पहचान सकें और इस तरह के किसी भी व्यवहार से जुड़े अपने मानसिक अनुभवों को अभिभावकों से साझा कर सकें। मानकर चलें कि आज कोई जगह सुरक्षित नहीं है। कभी बच्चा देर से घर पहुंचे तो इसे हल्के में न लें। यह जानने की कोशिश करें कि कहीं वह आपसे कुछ छिपा तो नहीं रहा। बच्चों की दिनचर्या पर नजर रखनी ही होगी। अगर बच्चों के साथ कुछ ऐसा हो रहा है तो प्रतिष्ठा की खातिर चुप मत रहिए। तोडि़ए अपनी खामोशी, नहीं तो दरिन्दे बेखौफ हो जाएंगे और बच्चे असुरक्षित होंगे।

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