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लंबे इंतजार के बाद नहीं टूटने दी अपनों को मिलने की आस

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11:46 AM Aug 16, 2017 IST | Desk Team

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लुधियाना-फाजिलका: पंजाब के आखिरी छोर फाजिका सेक्टर की भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमावर्ती सरहद की सादक चौकी पर बीएसएफ और पाक रेंजरों की बंदूकों के साएं तले और कुदतरी तारों की छांव में आज माहौल उस वक्त भावुक हो उठा जब रिट्रीट सेरामनी के पश्चात दोनों मुलकों के 1947 में बिछड़े परिवारिक सदस्यों का आपसी मेलमिलाप हुआ। हर साल 14 अगस्त को भारत से पाकिस्तान जाने वाले बिछड़े परिवार यहां आपस में मिलते है परंतु इस बार दोनों मुल्कों के आपसी संबंधों में कटुरता होने के कारण सारे दिन की इंतजार उस वक्त खत्म हुई जब दोनों देशों के सैनिक अधिकारियों और हुकमरानो के दिलों में रहम आया और जीरो लाइन पर लंबे समय से बिछड़े परिवारों को एक दूसरे से मिलवा दिया।

दोनों देशों के बाशिंदे खुशी और गमी के इस माहौल में एक दूसरे को अलंगन करने के लिए उतावले थे किंतु सरहद पर बिछी तीन इंची सफेद लाइन और उसपर लगी लोहे का जाल वाली दीवार रूकावट बनी हुई थी। गमगीन माहौल में दोनों तरफ के लोगों ने एक-दूसरे को छुआ और जुगजुग जीओ की दुआएं दी। हालांकि यह मिलन कुछ वक्त का था। उल्लेखनीय है देश के बंटवारे के दौरान बिछड़े अपने करीबी रिश्तेदारों को मिलने के लिए हर वर्ष 14 अगस्त के दिन लोग सादकी चौंकी पहुंचते है। फाजिलका जिले में पंजाब के अलावा राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और अन्य राज्यों से पहुंचने वाले बूटा राम, नवाज मुहम्मद, बिंद्र, गुडडो और साहरसूह व कश्मीरा सिंह ने बताया वे पाकिस्तान में रह गए रिश्तेदार जो लाहौर में है उनसे मिलने आएं है।

दूसरी तरफ लाहौर वासी आलाजार, आसीव अली सारा दिन काफी कोशिश के बाद जीरो लाइन से ही एक दूसरे के दर्शन दीदार करते हुए लोहे की तारों के मध्य गले लगने की कोशिश में लगे रहे। उन्होंने बताया कि यह पल उन्हें कई वर्षो के बाद नसीब हुआ है। उन्होंने कहा कि कल हम अपने रिश्तेदारों को मोबाइल द्वारा सरहद पर आकर मिलने की तकीद की थी परंतु आज सारा दिन अधिकारियों से प्रार्थनाओं के पश्चात तारों की छांव में यह पल नसीब हुआ। बिछड़े परिवारों के पुराने सदस्यों ने नई पीढ़ी को अपने संगे-संबंधियों से रूबरू भी करवाया। दोनेां मुल्कों के बाशिंदे लोहे के तारों के अंदर से ही हाथ मिलाकर अपने-अपने जज्बात सांझे करते दिखे और आखिरी जाते वक्त दोनों तरफ के चेहरे भावुक हो गए और हर आंख नम थी, क्योंकि अब जाने का वक्त था।

– सुनीलराय कामरेड

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