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चुनाव आयोग पर पुनः हमला!

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11:41 PM Mar 27, 2018 IST | Desk Team

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भारत का लोकतन्त्र इतनी कमजोर नींव पर नहीं रखा गया है कि किसी भी पार्टी की सरकार खुद को देश का मुख्तार समझने लगे। वह हुकूमत की खुद मुख्तार भी इस शर्त पर होती है कि संसद के भीतर उसकी हर कार्रवाई की जवाबदेही होगी आैर इस तरह होगी कि हर एक वोट को डालने वाले मतदाता के सामने उसकी असलियत निकल कर बाहर आए। लोकतन्त्र और अधिनायकवादी व्यवस्था और कम्युनिस्ट प्रणाली में यही होता है।

इस देश के लोग पांच साल के लिए जिस भी पार्टी को सरकार बनाने का हुक्म सुनाते हैं उसे यह ताईद भी देते हैं कि वह संविधान के अनुसार गठित प्रत्येक संस्था की स्वतन्त्रता से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करेगी क्योंकि संविधान उसे एेसा करने के अख्तियार ही नहीं देता है। यही तो संविधान का शासन कहलाता है। इसलिए यह साफ होना चाहिए कि संसद से लेकर सड़क तक संविधान का राज ही होता है मगर कुछ लोग सत्ता की अकड़ में अपनी हदें भूल जाते हैं और हुकूमत के गरूर में उस हिन्दोस्तान के लोकतन्त्र की परीक्षा लेने लगते हैं जिनका वास्ता आम आदमी के सरोकारों से कभी नहीं रहा।

विभिन्न राजनीतिक दलों में जो सूचना प्रोद्योगिकी के संभाग स्थापित किए गए हैं वे टैक्नोलोजी उपयोग के नाम पर भारत के मतदाताओं को लगातार डरा रहे हैं कि उनका पूरा निजी विवरण उनके कब्जे में है और उनकी हर हरकत को देखा जा सकता है। यह टैक्नोलोजी का खुला दुरुपयोग है जिसकी इजाजत लोकतन्त्र में नहीं दी जा सकती मगर क्या कमाल हो गया कि चुनाव आयोग से पहले ही भाजपा के इस संभाग के प्रमुख ने कर्नाटक चुनावों की ति​िथ घोषित कर डाली।

यह तब हुआ जब मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ओम प्रकाश रावत राजधानी में ही इन तिथियों की घोषणा करने के लिए प्रेस कांफ्रैंस को सम्बोधित कर रहे थे। यह संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग का रुतबा किसी सरकारी विभाग की मानिन्द करने की कोशिश नहीं तो और क्या कही जा सकती है? जिस चुनाव आयोग पर स्वतन्त्र व निष्पक्ष मतदान कराने की संवैधानिक जिम्मेदारी है और जिसके अधिकारों में यह साफ-साफ लिखा गया है कि उसकी कार्यप्रणाली पर न तो किसी राजनीतिक दल और न किसी सरकार का कोई हस्तक्षेप हो सकता है, उसी के फैसलों को मालवीय ने चुनाव आयुक्त से पहले ही सुनाकर साबित कर दिया कि हुकूमत में रहने वाली उनकी पार्टी से ऊपर कुछ नहीं हो सकता?

मालवीय ने यह गंभीर अपराध किया है जो फौजदारी कानूनों के तहत आता है। यह ठीक वैसा ही अपराध है जैसा कि भारत की रक्षा से सम्बन्धित गुप्त जानकारियों को सुलभ कराने पर होता है। वह किसी भी न्यूज चैनल के सिर पर यह कहकर ठीकरा नहीं फोड़ सकते कि उन्होंने उसमें खबर सुनकर चुनावों की तारीख सार्वजनिक कर दी मगर वह न्यूज चैनल भी अपराध से बरी नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने भी चुनाव आयोग के फैसले को अनाधिकार रूप से उजागर करके न्यायिक पवित्रता को भंग किया है।

आयोग के पास न्यायिक अधिकार भी होते हैं। यह खबरों की प्रतियोगिता का मामला बिल्कुल नहीं है क्योंकि इसका सम्बन्ध सीधे आयोग के संवैधानिक अधिकारों से है। अदालत में किसी जज द्वारा फैसला सुनाये जाने से पूर्व ही उसके फैसले को कोई भी नहीं सुना सकता। मालवीय चुनाव आयोग द्वारा ही मान्यता दी गई एक राजनीतिक पार्टी के पदाधिकारी हैं और उनका दायित्व था कि वह चुनाव आयोग के फैसले की प्रतीक्षा करते। इसमें कहीं किसी प्रकार की गफलत नहीं है।

चुनाव आयोग कभी भी किसी भी सत्ताधारी दल का गुलाम नहीं हो सकता क्योंकि इसके आयुक्तों की नियुक्ति संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति करते हैं और इसकी जिम्मेदारी संविधान के प्रति ही तय करते हैं अतः आयोग के सामने मालवीय की हैसियत सिर्फ एक अपराधी की है। इस काम में आयोग के भीतर के किसी कर्मचारी का हाथ होने की संभावना की जांच करने का काम आयोग का है। आयोग न तो किसी सरकार के हाथ की कठपुतली बन सकता है और न ही किसी राजनीतिक दल के दबाव में आ सकता है।

भारत के चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में सन्देह से परे रही है। दुनिया के नवजात लोकतान्त्रिक देशों ने हमारे ही चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली का गहन अध्ययन करके अपने यहां लोकतन्त्र को मजबूत करने के निर्णायक कदम उठाये हैं मगर आज इसकी हालत एेसी बन गई है कि इसके फैसलों की पूर्व घोषणा राजनीतिक दलों के लोग ट्वीटर पर कर रहे हैं मगर सवाल किसी राजनीतिक दल के ‘बिगड़े दिल कारिन्दे’ का नहीं है बल्कि भारत के लोकतन्त्र के मूलाधार चुनाव आयोग का है।

यदि इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होता है तो पूरी लोकतान्त्रिक प्रणाली खतरे में आ जाती है जिसके आधार पर चुने हुए सदनों लोकसभा या विधानसभा का गठन होता है। इनमें जीतकर पहुंचने वाले प्रतिनिधियों की विश्वसनीयता सन्देह में आ जाती है और इससे सरकार की विश्वसनीयता खतरे में पड़ जाती है क्योंकि ये सदन ही केन्द्र व राज्य सरकारों का गठन करते हैं।

इसीलिए आज मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ किया कि ईवीएम मशीनों के साथ लगे वीवीपैट पर निकले रसीदी वोट की बाकायदा गिनती कराई जायेगी और चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे। सवाल जल्दी चुनाव परिणाम आने का बिल्कुल नहीं है बल्कि इनका सन्देह से परे होना प्रमुख है। इस कार्य से किसी राजनीतिक दल का कोई लेना-देना नहीं है और न ही सरकार का है। चुनाव आयोग चाहे तो पुनः बैलेट पेपर से चुनाव कराने की घोषणा भी कर सकता है। शर्त यही है कि इसकी विश्वसनीयता हर स्थिति में शक से ऊपर रहनी चाहिए। राजनीतिक दलों की शंकाओं के निवारण के लिए इसके पास पूरे अधिकार हैं और अख्तियार हैं।

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