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Ahoi Ashtami 2025 Puja Muhurat: अहोई अष्टमी की इस समय करें विधिपूर्वक पूजा, जानें अहोई माता की कथा और उसका महत्व

04:03 PM Oct 12, 2025 IST | Shweta Rajput
Ahoi Ashtami 2025 puja muhurat

Ahoi Ashtami 2025 Puja Muhurat: अहोई अष्टमी का व्रत हिन्दू धर्म में माताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं।

शाम के समय अहोई माता की पूजा की जाती है और तारे दिखने के बाद जल ग्रहण किया जाता है। लेकिन इस व्रत को सफल और पूर्ण बनाने के लिए कुछ नियमों और परंपराओं का पालन करना बहुत जरूरी माना गया है। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें, नियम और Ahoi Ashtami 2025 Puja Muhurat क्या है।

Ahoi Ashtami 2025 Puja Muhurat: जानें किस समय करें अहोई अष्टमी की पूजा

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Ahoi Ashtami 2025 Puja Muhurat – (Source:- Ai Generated)

हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 13 अक्तूबर को रात 12 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी जिसका समापन 14 अक्तूबर को सुबह 11 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। ऐसे में अहोई अष्टमी का पर्व 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। अहोई अष्टमी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 53 मिनट से लेकर 7 बजकर 08 मिनट तक रहेगा।

वहीं दूसरी तरफ इस रात को तारों को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 05 बजकर 53 मिनट से शाम 07 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। तारों को देखने के लिए सबसे शुभ समय शाम का 06 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। वहीं अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय का शुभ समय रात 11 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।

Ahoi Ashtami Puja Vidhi in Hindi: जानें अहोई अष्टमी की पूजा विधि

Ahoi Ashtami Puja Vidhi in Hindi – (Source:- Ai Generated)

1. अहोई अष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनें। इसके बाद पूरे घर को साफ कर लें।

2. व्रती महिला अपने सामने जल का कलश, दीपक, फूल, रोली, चावल और अहोई माता की तस्वीर या दीवार पर बनी आकृति रखें।

3. अब अहोई माता की पूजा व्रत का संकल्प करें। इसके बाद दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं या तैयार तस्वीर लगाएं

4. पूजा के लिए कलश (जल से भरा हुआ), चावल, रोली, हल्दी, कुमकुम, दीपक, धूप, फूल,दूध, गुड़, फल, मिठाई, सिंदूर, सूत का धागा (अष्ट बंधन वाला), कथा पुस्तक रखें।

5. पूजा के लिए संध्या समय, जब तारे दिखाई देने लगें, उस समय पूजा करना शुभ माना जाता है। इस समय माता अहोई के चित्र या प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं।

6. कलश की स्थापना करें और उसके ऊपर नारियल रखें और अहोई माता को रोली, चावल, हल्दी और फूल अर्पित करें।

7. इसके बाद 5. सात बार सूत का धागा माता को समर्पित करें और अंत में माता की कथा सुनें या पढ़ें।

Ahoi Ashtami Katha in Hindi: यहां पढ़ें अहोई माता की कथा

Ahoi Ashtami Katha in Hindi – (Source:- Ai Generated)

अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद, यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने संतानों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को "अहोई माता" के नाम से प्रसिद्ध देवी की पूजा के रूप में भी जाना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक साहूकार था जिसके सात बेटे, सात बहुएं और एक बेटी थी। एक बार दिवाली से पहले मिट्टी लाने के दौरान उसकी बेटी से अनजाने में स्याऊ (सेही) के बच्चे की मृत्यु हो गई।

इससे क्रोधित होकर स्याऊ माता ने बेटी की कोख बांध दी। बेटी के स्थान पर छोटी बहू ने अपनी कोख बंधवाने का वचन दिया। उसके बाद जब भी उसे संतान होती, वो सातवें दिन मर जाती। एक दिन साहूकारनी ने पंडित से समाधान पूछा। पंडित ने कहा कि वो काली गाय (स्याऊ माता की भायली) की सेवा करे। बहू रोज गाय की सेवा करने लगी। प्रसन्न होकर गाय ने वर मांगने को कहा।

बहू ने अपनी कोख खुलवाने की विनती की। गौ माता उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याऊ माता के पास गईं। रास्ते में बहू ने सांप से गरुड़ पंखनी के बच्चों को बचाया। कृतज्ञ होकर गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुंचाया। वहां स्याऊ माता ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया “तेरे सात बेटे और सात बहुएं हों।” घर लौटकर बहू ने सात अहोई बनाईं, सात उजमान किए और सात कड़ाई चढ़ाईं। अगले ही दिन उसका घर बच्चों की किलकारियों से गूंज उठा। स्याऊ माता ने उसकी कोख खोल दी थी।

तभी से ये परंपरा शुरू हुई कि अहोई अष्टमी पर व्रत रखकर माता से संतान की रक्षा की प्रार्थना की जाती है। अहोई अष्टमी हमें ये सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा, सेवा और निस्वार्थ भावना से देवी कृपा प्राप्त होती है। जिस प्रकार स्याऊ माता ने साहूकार की बहू की कोख खोली, उसी प्रकार ये व्रत संतानहीन दंपतियों के लिए आशा और आशीर्वाद लेकर आता है।

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