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हवाई हड़ताल और यात्री

06:00 AM Dec 08, 2025 IST | Aditya Chopra
हवाई हड़ताल और यात्री
हवाई हड़ताल

भारत में विमानन उद्योग निजी क्षेत्र से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र तक में सैर करता रहा है मगर इससे पहले कभी ऐसी अफरा- तफरी का माहौल नहीं बना जैसा कि आजकल बना हुआ है। देश के सभी हवाई अड्डों पर यात्रियों की भीड़ है जो अपने गन्तव्य तक जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगर देश की निजी एयर लाइनों में से सबसे प्रमुख इंडिगो एयर लाइन ने हड़ताल कर रखी है जिसकी वजह से दूसरी एयर लाइनें मनमाना किराया वसूल रही हैं और हद यह हो गई है कि दिल्ली से मुम्बई तक की हवाई यात्रा का टिकट 60 हजार रुपए तक हो गया है। वास्तव में यह अराजकता का वातावरण है जिसकी तरफ भारत सरकार के नागरिक विमानन उड्डयन मन्त्रालय ने अब ध्यान दिया है। पिछले लगभग चार दिन से ऐसा ही माहौल बना हुआ है। देश में अब सरकार के हाथ में एक भी एयर लाइन नहीं है। घरेलू उड़ानों से लेकर विदेशी उड़ानों तक का कामकाज निजी एयर लाइनों के हाथ में है।

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इनमें से इंडिगो एयर लाइन के पास घरेलू उड़ानों का 65 प्रतिशत कारोबार है जबकि एयर इंडिया व अन्य विमानन कम्पनियों के पास शेष बाजार है। एयर इंडिया मुख्यतः विदेशी उड़ानों का कारोबार करती है। एयर इंडिया का निजीकरण हुए अभी कुछ वर्ष ही बीते हैं। इससे पहले यह सरकार के हाथ में थी मगर इसे टाटा समूह को बेच दिया गया। बाजार मूलक खुली अर्थव्यवस्था का नियम होता है कि इसमें उपभोक्ता मूलक बाजार संस्कृति को महत्व दिया जाता है अर्थात विभिन्न कम्पनियों के बीच जब प्रतियोगिता का माहौल बनता है तो उपभोक्ता को उत्पाद या सेवा प्रतियोगी दरों पर उपलब्ध होती है। मगर बाजार पर यदि किसी एक कम्पनी का ही अधिपत्य हो जाता है तो वह बेखौफ होकर उपभोक्ताओं से मनमाना मूल्य वसूल करती है। भारत के विमानन क्षेत्र में आजकल यही हो रहा है और भारत का प्रतियोगिता आयोग (कम्पटीशन कमीशन) सोया हुआ पड़ा है।

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1991 से पहले जब भारत मिश्रित अर्थव्यस्था में चल रहा था तो भी देश में एकाधिकर निरोधक आयोग( एमआरटीपीसी) था जो लगातार चौंकन्ना होकर किसी एक कम्पनी को बाजार पर एकाधिकार करने से रोकता था लेकिन खुली बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता आयोग द्वारा कलम हिलाने की शायद ही कोई घटना प्रकाश में आई हो जबकि बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में बाजार पर एकाधिकार जमाने की संभावनाएं भी सर्वाधिक बनी रहती हैं। केन्द्र सरकार का ध्यान अब इस तरफ गया लगता है तभी उसने घरेलू उड़ानों का किराया नियत करने की तरफ जरूरी कदम उठाया है। अब 500 कि.मी. तक की हवाई दूरी तक के लिए अधिकतम किराया 7500 रुपए होगा जबकि 500 से 1000 किमी. दूरी के लिए 12 हजार होगा और एक हजार से डेढ़ हजार कि.मी. दूरी तक के लिए यह 15 हजार रुपए होगा। इससे ऊपर दूरी तक के लिए यह 18 हजार रुपए होगा। भारत में दिल्ली से चैन्नई की दूरी डेढ़ हजार किमी से ऊपर है। सवाल यह है कि ऐसी स्थिति क्यों बनी जिसकी वजह से सरकार को हरकत में आना पड़ा? इसका कारण इंडिगो एयर लाइन में पायलटों की हड़ताल थी। पायलटों ने यह हड़ताल अपनी सेवा शर्तों में बदलाव की वजह से की।

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इसकी वजह से एयर लाइन ने अपनी उड़ानों को रद्द करने का नया रिकार्ड बना डाला और इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई। जाहिर है इसकी वजह से पूरे देश के हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी बननी ही थी और यात्रियों को परेशानी होनी ही थी। अब जाकर सरकार ने इंडिगो एयर लाइन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की जवाब तलबी की है और पूछा है कि उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई क्यों न की जाये। कारण बताओ नोटिस जारी करके सरकार के उड्डयन मन्त्रालय ने अपनी जान बचाने की कोशिश ही की है जिससे नागरिकों का गुस्सा उस पर न उतर सके। मगर लोकतन्त्र में अन्तिम जिम्मेदारी सरकार की ही होती है जिससे वह अपना पीछा नहीं छुड़ा सकती। वर्तमान में उड्डयन मन्त्रालय का कार्यभार तेलगूदेशम पार्टी के श्री राम मोहन नायडू के पास है। यह पार्टी केन्द्र की मोदी सरकार में शामिल है परन्तु लोकतन्त्र में सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी होती है जिससे सत्ता में बैठी कोई भी पार्टी अपना मुंह नहीं मोड़ सकती।

अतः केन्द्र सरकार को ही सामूहिक तरीके से यह सोचना होगा कि निजी विमानन कम्पनियों द्वारा किसी भी तरीके से उपभोक्ताओं या यात्रियों का शोषण न हो सके। इस बहाने सरकार यह भी जरूर सोचे कि देश की सभी विमानन कम्पनियों का निजीकरण करके कहीं उससे कोई चूक तो नहीं हो गई है। वास्तव में पिछली मनमोहन सरकार के दौरान ही एयर लाइनों के निजीकरण की आधारशिला रख दी गई थी। उस समय नागर विमानन मन्त्री राष्ट्रवादी कांग्रेस के श्री पटेल थे। उन्होंने एयर इंडिया व इंडियन एयर लाइनों का पहले विलीनीकरण किया और बाद में विलीनीकृत एयर इंडिया को घाटे में लाकर खड़ा कर दिया। श्री पटेल के कार्यकाल के दौरान लाभप्रद घरेलू व विदेशी हवाई रूट निजी कम्पनियों को आवंटित किये गये जिससे सरकारी एयर लाइन का घाटा बढ़ता ही गया और मोदी सरकार में स्थिति यह आ गई कि केवल दो निजी कम्पनियों का पूरे हवाई बाजार पर एकाधिकार हो गया। अतः इस स्थिति को भी बदलने की जरूरत है।

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