असंतुलित हाथों में अमेरिका, और दुनिया
शायद ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के निर्वाचन पर दुनिया में इतनी खलबली मची हो…
शायद ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के निर्वाचन पर दुनिया में इतनी खलबली मची हो जितनी डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने पर मची है क्योंकि वह स्वभाव से सनकी हैं, अहंकारी हैं और अस्थिर हैं और अब वह दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गए हंै। निर्वाचित होने से लेकर अब तक वह कनाडा, चीन, भारत, पनामा, ग्रीनलैंड, ब्रिक्स देशों, डेनमार्क, मैक्सिको, रूस सब को धमकियां दे चुके हैं। रोज़ाना नया निशाना ढूंढा जा रहा है। चीन को वह टैरिफ़ अर्थात शुल्क बढ़ाने की धमकी दे चुके हैं, पर दिलचस्प है कि यह बढ़ौतरी कभी 60% बताई जाती है तो कभी 20% तो कभी 10% ! ब्रिक्स देश जिनमें भारत समेत चीन भी शामिल है, को 100% टैरिफ़ की धमकी दी जा रही है। पर इसी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ट्रम्प अपने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का न्योता दे चुके हैं और अपने पहले 100 दिनों में बीजिंग जाने की इच्छा जता चुके हैं। ट्रम्प के निशाने पर चीन और रूस से भी पहले दो पड़ोसी देश कनाडा और मैक्सिको हैं। ट्रम्प की शिकायत है कि दोनों अमेरिका की उदारता का लाभ उठा रहे हैं और अवैध घुसपैठ करवा रहे हैं। दोनों को धमकी दी है कि अगर वह बाज नहीं आए तो 25% टैरिफ़ लगाया जाएगा। इन दोनों देशों के साथ अमेरिका का व्यापार 1 ट्रिलियन डॉलर है। अमेरिका में सब्ज़ी और फल की आधी सप्लाई इन दो देशों से आती है। अगर इनके आयात पर शुल्क बढ़ाया गया तो अमेरिकी उपभोक्ता के लिए भी यह चीजें महंगी हो जाएंगी। पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने चेतावनी दी है कि “टैरिफ़ बढ़ाने की योजना अनिश्चितता को बढ़ाएगी जो वैश्विक आर्थिक स्थिरता को बाधित करेगी”। ट्रम्प कनाडा को अमेरिका का 51वां प्रांत बनाना चाहतें हैं जो मांग कनाडा की सरकार और लोगों ने दृढ़ता के साथ अस्वीकार कर दी है। पर अमेरिका का राष्ट्रपति ऐसी फ़िज़ूल मांग करें भी क्यों? वैसे भी कूटनीति पर्दे के पीछे से होती है, ट्रम्प तो लाउड स्पीकर के साथ करते नज़र आ रहे हैं।
दुनिया की अर्थव्यवस्था इस तरह जुड़ी हुई है कि ताकतवार से ताकतवार भी खुद को ज़ख्मी किए बिना इससे खिलवाड़ नहीं कर सकता। ट्रम्प का नारा है, ‘मेक अमेरिका ग्रेट’। पर यह होगा कैसे? क्या वह ऐसा दोस्तों और साथियों को नाराज़ किए बिना कर सकते हैं? अमेरिका में टैरिफ़ की वृद्धि से चीन या भारत या किसी और देश का उत्पादक तो प्रभावित होगा, पर चोट तो अमेरिका के उपभोक्ता को भी पहुंचेगी। वह विश्व स्वास्थ्य संगठन और पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकल आए हैं। यह दोनों कदम न केवल दुर्भाग्यपूर्ण हैं बल्कि ग़ैर ज़िम्मेवार भी हैं। दुनिया अब उस अमेरिका से निपट रही है जिसकी नीतियों में कोई स्थिरता नहीं है। अगर अमेरिका ‘ग्रेट’ बनना चाहता है तो जलवायु और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर दुनिया का नेतृत्व करना चाहिए, पर ट्रम्प तो पलायन कर गए हैं। न ही उन्होंने बताया है कि देश के अन्दर जो चुनौतियां हैं उनका सामना कैसे करना है। वहां हर सप्ताह कहीं न कहीं गोलाबारी में लोग मारे जा रहे हैं। स्कूल, कालेज, मॉल, अस्पताल सब पर हमले हो चुके हैं। दो साल में गन हिंसा में वहां 50000 लोग मारे गए हैं। यह गम्भीर तौर पर बीमार और अशांत समाज के लक्षण है। पिछले कुछ सप्ताह में बड़ा शहर लॉस एंजलस आधा जल गया है। यह कैसा सुपर पावर है कि जिस शहर में हॉलीवुड है, वह ही जल गया?
अमेरिका तभी ग्रेट बनेगा अगर वह अन्दर से शांत होगा, पर इस तरफ़ कोई ध्यान नहीं है। सामाजिक ग़ैर- बराबरी बहुत बड़ी समस्या है। राष्ट्रपति का सारा ध्यान दो बातों पर है, टैरिफ़ बढ़ाने और अवैध आप्रवासन को रोकने पर है। अवैध अप्रवासियों को वह सबसे बड़ा ख़तरा बता रहे हैं। यह कितने हैं, इसका कोई पक्का आंकड़ा नहीं है। इसे 1 करोड़ के लगभग समझा जाता है, पर ट्रम्प का अपना मानना है कि 2 करोड़ अवैध विदेशी अमेरिका में रह रहे हैं जिन्हें वह निकालना चाहते हैं। कथित ‘अवैध अपराधियों’ की वापसी शुरू भी हो गई है। लेकिन यह प्रक्रिया कई सवाल भी खड़े कर रही है।
ट्रम्प खुद अप्रवासी परिवार से हैं। अमेरिका तो बना ही अप्रवासियों के द्वारा है अब उन्हें ही खलनायक बनाया जा रहा है कि जैसे अमेरिका की हर समस्या के लिए वह ज़िम्मेवार हैं। ट्रम्प की नीति का वहां विरोध हो रहा है क्योंकि जिन्हें अवैध कहा जा रहा है उनके बिना अमेरिका चल ही नहीं सकता। वह कम वेतन लेते हैं और खेतों में, कारख़ानों में, होटलों में, दुकानों पर, रेस्टोरेंट में काम करते हैं। अगर वह सारे हटा दिए गए तो अमेरिका का पहिया रुक जाएगा। ट्रम्प ने एक और फ़रमान जारी किया है जो बहुत विवाद पैदा कर रहा है। अमेरिका में क़ानून है कि जो बच्चा वहां पैदा हुआ है उसे स्वत: नागरिकता मिल जाती है। पर अब ट्रम्प ने घोषणा की है कि अगर बच्चे के मां-बाप में से एक अमरीकी नागरिक नहीं तो बच्चे को स्वतः नागरिकता नहीं मिलेगी। कई महिलाएं अपनी गर्भावस्था छिपा कर वहां जाती हैं ताकि बच्चा वहां पैदा हो और वह अमेरिकी नागरिक बन जाए। ट्रम्प रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं, पर शुरू में ही झटका मिल गया क्योंकि एक अदालत ने उनके कदम को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए रोक लगा दी है।
अदालत के निर्णय से अमेरिका के राष्ट्रपति को स्पष्ट हो गया होगा कि उनकी मनमानी की भी सीमा है। पर उनकी दिशा तो स्पष्ट है। इस घोषणा से इतनी घबराहट फैल गई है कि समाचार है कि वहां गई कई भारतीय महिलाएं सीजीरियन करवा रही हैं ताकि आदेश के लागू होने से पहले बच्चा पैदा हो जाए जिसे नागरिकता मिल जाए। यह मुद्दा भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है क्योंकि मैक्सिको और अल सल्वाडोर के बाद अमेरिका में सबसे अवैध अप्रवासी हमारे ही हैं। पियू रिसर्च सैंटर के अनुसार वहां 725000 भारतवासी अवैध और बिना दस्तावेज़ों के रह रहे हैं। इन पर अब तलवार लटकेंगी। अभी से 18000 भारतीयों की सूची अधिकृत तौर पर भारत सरकार को सौंप दी गई है जिन्हें हमें वापिस लेना पड़ेगा।
दुनिया में आम राय है कि ट्रम्प के आने के बाद जिन देशों के साथ अमेरिका के सम्बंध ठीक रहेंगे उनमें भारत शामिल है। यह भी समझा जाता है कि भारत के साथ बेहतर सम्बंध रखने पर वहां की राजनीति के दोनों पक्षों की सहमति है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच अच्छी वार्ता हुई है और प्रधानमंत्री अगले महीने वाशिंगटन जा रहे हैं। चीन को लेकर दोनों के हित साझे हैं। पर बड़ी समस्या अमेरिका के राष्ट्रपति का स्वभाव है। कोई निश्चित नहीं कह सकता कि वह कहां टिकेंगे? प्रधानमंत्री मोदी के साथ वार्ता के कुछ घंटों बाद ही ट्रम्प ने चीन और ब्राज़ील के साथ भारत को भी ‘बड़ा शुल्क लगाने वाले देशों’ में शामिल कर दिया और साथ ही धमकी दी कि अमेरिका इसकी इजाज़त नहीं देगा। बड़ी समस्या अवैध भारतीयों को लेकर है। जिन्हें वापिस भेजना है वह संख्या 200000 तक जा सकती है। बड़ी संख्या में यह लोग गुजरात से गए हैं। बाक़ी दो प्रांत पंजाब और हरियाणा से हैं। बहुत लोग जिसे ‘डंकी रूट’ कहा जाता है, के द्वारा वहां प्रवेश की कोशिश करते हैं। भारत सरकार के लिए यह कथित ‘घर वापसी’ कड़वी गोली होगी जिसे निगलना ही पड़ेगा। अगर वह शुल्क बढ़ाते हैं तो भी हमारा उद्योग प्रभावित होगा।
लेकिन प्याला आधा भरा भी है। ट्रम्प को लेकर सकारात्मक संकेत भी है। अपनी पिछली अवधि में उन्होंने भारत के साथ सम्बंध बेहतर करने के लिए बड़े कदम उठाए थे। कई बड़े रक्षा समझौते हुए और क्वाड में फिर जान डाल दी गई। उन्होंने चीन के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया जिससे भारत और अमेरिका और नज़दीक आए। ट्रम्प के दो बड़े अधिकारी, विदेश मंत्री मार्को रूबियो और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माईकल वॉल्टस दोनों भारत के मित्र हैं और चीन को नियंत्रण में रखने के पक्षधर हैं। यह भी समाचार है कि चीन के विदेश मंत्री ने अमेरिका के विदेश मंत्री को एक प्रकार से ‘बिहेव’ करने को कहा है। इससे पता चलता है कि इनका रिश्ता कितना कड़वा है। मोदी और ट्रम्प के रिश्ते अच्छे हैं जो अगले चार वर्ष काम आ सकतें हैं। यह भी सम्भावना है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे मामलों में उन्हें दिलचस्पी नहीं होगी। बाइडेन सरकार भारत पर दबाव रखने के लिए ऐसे मामलों को जीवित रख रही थी। ट्रम्प यह भी कह चुके हैं कि ‘योग्य लोग अंदर आने चाहिए’। वह हमारे वैध प्रोफेशनल्स, जिनकी संख्या मामूली नहीं, का स्वागत करने को तैयार है।
ट्रम्प का कार्यकाल भारत के लिए मिश्रित हो सकता है। सबसे बड़ी समस्या उनका अस्थिर स्वभाव है। पिछली बार वह कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं। लेकिन अमेरिका आज भी सबसे ताकतवार देश है जो दुनिया की जीडीपी में 25% का योगदान डालता है। उनकी सेना सबसे घातक है। टेक्नोलॉजी और रिसर्च में वह बहुत आगे हैं चाहे चीन बराबर आने की कोशिश कर रहा है। पर कुछ सकरात्मक कदमों के बावजूद चीन हमें सीमा पर परेशान करता रहेगा इसलिए अमेरिका के साथ सम्बंध गहरे करना हमारे व्यापक हित में है। 2023-24 में 3.3 लाख भारतीय छात्र वहां पढ़ने गए थे। एच1-बी वीज़ाधारक तीन चौथाई भारतीय नागरिक हैं। अवैध अप्रवासियों और टैरिफ़ को लेकर तनाव होगा। इन सम्बंधों को न केवल सामान्य रखना बल्कि इन्हें और गहरा करना, हमारी कूटनीति के लिए जटिल पर प्रमुख कार्य होगा।